Thursday, March 28, 2024
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गंगा दशहरा: स्नान के बाद करें इस गंगा स्त्रोत का पाठ, होगी हर मनोकामना पूर्ण

गंगा दशहरा: आज के दिन गंगा स्नान कर इस गंगा स्त्रोत को पाठ करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: May 24, 2018 6:28 IST
gnanga river गंगा दशहरा- India TV Hindi
Image Source : PTI ganga river

धर्म डेस्क: हिंदू धर्म में दशहरा बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह पूर्णरुप से देवी गंगा को समर्पित पर्व है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इसे सामान्यतौर पर मई या जून पर पड़ता है। इस बार गंगा दशहरा 24 मई, गुरुवार को है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस बार गंगा दशहरा अद्भुत और महाफल दायक है। इस साल गंगा दशहरा में गर करण, वृषस्थ सूर्य, कन्या का चंद्र होने से अद्भुत संयोग बन रहा है, जो महाफलदायक है। इस बार योग विशेष का बाहुल्य होने से इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है।

आज के दिन गंगा स्नान कर इस गंगा स्त्रोत को पाठ करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।

गंगा स्त्रोत

देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले।।1।।

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात:।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम।।2।।

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।
दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम।।3।।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।।

पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे।
भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये।।5।।

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे।।6।।

तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात:।
नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे।।7।।

पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे।
इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये।।8।।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे।।9।।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवास: खलु वैकुण्ठे तस्य निवास:।।10।।

वरमिह: नीरे कमठो मीन: कि वा तीरे शरट: क्षीण: ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीन:।।11।।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो य: सजयति सत्यम।।12।।

येषां ह्रदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुख मुक्ति:।
मधुराकान्तापंझटिकाभि: परमानन्द कलितललिताभि:

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम ।
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त:।।

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