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इंदौर में दीपावली की परंपरा से जुड़े हिंगोट युद्ध में बरसे देशी रॉकेट, 17 योद्धा जख्मी

माना जाता है कि प्रशासन हिंगोट युद्ध पर इसलिए पाबंदी नहीं लगा पा रहा है क्योंकि इससे क्षेत्रीय लोगों की धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं। हिंगोट युद्ध की परम्परा इंदौर के पूर्ववर्ती होलकर राजवंश के जमाने से पिछले 300 साल से चल रही है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Nov 01, 2024 21:40 IST, Updated : Nov 02, 2024 6:25 IST
hingot festival- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO हिंगोट युद्ध

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में दीपावली के मौके पर होने वाले पारंपरिक हिंगोट युद्ध में शुक्रवार शाम 17 लोग मामूली तौर पर घायल हो गए। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। विकासखंड चिकित्सा अधिकारी (BMO) डॉ. अभिलाष शिवरिया ने बताया कि इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में पारंपरिक हिंगोट युद्ध के दौरान 17 योद्धा झुलस गए। शिवरिया के मुताबिक इन लोगों को मामूली चोटें आईं और मौके पर पहले से मौजूद चिकित्सा दल ने उन्हें प्राथमिक उपचार देकर उनके घर रवाना किया। गौतमपुरा कस्बे में बड़ी तादाद में उमड़े दर्शक हिंगोट युद्ध के गवाह बने जिनकी सुरक्षा के लिए पुलिस ने प्रशासन के साथ मिलकर युद्ध स्थल पर जरूरी इंतजाम किए थे।

क्या होता है हिंगोट?

डीएसपी उमाकांत चौधरी ने बताया कि हिंगोट युद्ध का रणक्षेत्र बने एक मैदान के आस-पास दर्शकों की सुरक्षा के वास्ते ऊंची जालियां एवं बैरिकेड लगाए गए थे और हालात की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए थे। डीएसपी ने बताया कि मौके पर करीब 300 पुलिस कर्मियों की तैनाती के साथ ही पर्याप्त संख्या में दमकलों और एम्बुलेंस को भी तैयार रखा गया था। हिंगोट, आंवले के आकार वाला एक जंगली फल होता है। गूदा निकालकर इस फल को खोखला कर लिया जाता है। फिर इसे सुखाकर इसमें खास तरीके से बारूद भरी जाती है। नतीजतन आग लगाते ही यह रॉकेट जैसे पटाखे की तरह बेहद तेज गति से छूटता है और लम्बी दूरी तय करता है।

पारम्परिक हिंगोट युद्ध के दौरान गौतमपुरा के योद्धाओं के दल को "तुर्रा" नाम दिया जाता है, जबकि रुणजी गांव के लड़ाके "कलंगी" दल की अगुवाई करते हैं। दोनों दलों के योद्धा रिवायती जंग के दौरान एक-दूसरे पर जलते हिंगोट दागते हैं। हिंगोट युद्ध में हर साल लोग घायल होते हैं। गुजरे बरसों के दौरान इस पारम्परिक आयोजन में गंभीर रूप से झुलसने के कारण कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है।

300 साल से चली आ रही परंपरा

माना जाता है कि प्रशासन हिंगोट युद्ध पर इसलिए पाबंदी नहीं लगा पा रहा है क्योंकि इससे क्षेत्रीय लोगों की धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं। गौतमपुरा नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष विशाल राठी ने बताया कि हिंगोट युद्ध की परम्परा इंदौर के पूर्ववर्ती होलकर राजवंश के जमाने से पिछले 300 साल से चल रही है। उन्होंने बताया,‘‘किंवदंती है कि बारूद से भरे हिंगोट को हथियार में रूप में इस्तेमाल करने की शुरुआत स्थानीय छापामार योद्धाओं ने की थी। ये योद्धा मुगल आक्रांताओं के घुड़सवारों को तत्कालीन होलकर साम्राज्य की सीमाओं में घुसने से रोकने के लिए उन पर छिपकर हिंगोट दागते थे।’’ (भाषा इनपुट्स के साथ)

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