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जमीन को लेकर अगर किसानों से नहीं बनी बात तो रद्द हो सकती है जेवर हवाई अड्डा परियोजना

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में बहुप्रतीक्षित जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की परियोजना के निरस्त होने का खतरा मंडराने लगा है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : August 16, 2018 18:16 IST
Zewar International Airport- India TV Paisa

Zewar International Airport

लखनऊ उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में बहुप्रतीक्षित जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की परियोजना के निरस्त होने का खतरा मंडराने लगा है। इस एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों से बात नहीं बनी तो सरकार इस परियोजना को छोड़ सकती है। यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यीडा) के अध्यक्ष प्रभात कुमार ने बताया कि हमने जेवर हवाई अड्डा परियोजना के लिए प्रस्तावित इलाके में पड़ने वाले छह गांवों के प्रधानों और करीब 100 किसानों से मुलाकात करके उन्हें जमीन के प्रस्तावित खरीद मूल्य और अन्य लाभों के बारे में बताया है। अगर वे हवाई अड्डे के लिए जमीन देने को तैयार नहीं होते तो यह परियोजना रद्द भी हो सकती है।

कुमार ने कहा कि किसानों को आश्वस्त किया गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के मुताबिक उनकी जमीन को उनकी मर्जी के बगैर नहीं लिया जाएगा। किसान हमारे प्रस्ताव पर विचार करने के बाद हमें अपने निर्णय के बारे में बताएंगे। हमें अच्छे परिणाम की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि जेवर एयरपोर्ट के निर्माण के लिए किसानों को 2300 से 2500 रुपए प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन का मुआवजा दिए जाने की पेशकश की गई है।

प्रदेश सरकार पहले चरण में आठ गांवों- रोही, परोही, बनवारीबस, रामनेर, दयानतपुर, किशोरपुर, मुकीमपुर शिवरा और रणहेरा में 1441 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण करना चाहती है। सरकार इस परियोजना के लिये कुल पांच हजार हेक्टेयर जमीन लेना चाहती है।

करीब 15 से 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से प्रस्तावित इस हवाई अड्डे पर विमान सेवाओं का संचालन वर्ष 2022-23 तक शुरू होने की उम्मीद की जा रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगर किसानों ने सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को मंजूर कर लिया तो अगले महीने ही जमीन की खरीद मुकम्मल कर ली जाएगी और किसानों को फौरन भुगतान कर दिया जाएगा। अक्‍टूबर में इस परियोजना के निर्माण की शुरुआत भी कर दी जाएगी।

जेवर हवाई अड्डे की परिकल्पना सबसे पहले वर्ष 2001 में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रि काल में की गई थी। तब से अब तक यह परियोजना अनेक हिचकोलों से गुजर चुकी है। खासतौर पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मतभेदों से इस परियोजना को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। हालांकि, भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बाद यह परियोजना अधर में लटक गयी।

वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस परियोजना को फिर से शुरू करने की कोशिश की लेकिन केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार ने कथित रूप से यह कहते हुए इस पर आपत्ति जतायी थी कि इससे दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी हवाई अड्डे का कारोबार प्रभावित होगा।

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