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ट्रांसपोर्ट का बिजनेस करने वाली कंपनियों को राहत, GST भुगतान की डेडलाइन बढ़ाकर इतनी तारीख की गई

एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के वरिष्ठ भागीदार रजत मोहन ने कहा कि जीटीए के पास सामान की आपूर्ति या फिर आपूर्ति प्राप्त करने के आधार पर (रिवर्स चार्ज) कर देने का विकल्प है। दोनों के अपने फायदे-नुकसान हैं।

Alok Kumar Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: May 10, 2023 14:27 IST
जीएसटी - India TV Paisa
Photo:INDIA TV जीएसटी

सरकार ने माल परिवहन एजेंसियों के लिये चालू वित्त वर्ष में सेवाओं की आपूर्ति के आधार पर जीएसटी देने की समयसीमा बढ़ाकर 31 मई कर दी है। माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत माल ढुलाई से जुड़ी एजेंसियों (जीटीए) के पास सेवाओं की आपूर्ति (फॉरवार्ड चार्ज) के आधार पर जीएसटी संग्रह और उसके भुगतान का विकल्प है। अगर वे यह विकल्प नहीं अपनाते हैं, तो कर देनदारी ‘रिवर्स चार्ज’ व्यवस्था के तहत सेवा प्राप्त करने वाले पर चली जाती है। सेवाओं की आपूर्ति के आधार पर जीएसटी भुगतान के विकल्प के तहत वित्त वर्ष में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के साथ 12 प्रतिशत और आईटीसी के बिना पांच प्रतिशत कर देना होता है। इसके लिये माल परिवहन एजेंसियों को पिछले वित्त वर्ष के लिये फॉर्म 15 मार्च तक भरना होता है। 

विकल्प 31 मई तक अपना सकते हैं विकल्प

जीएसटी कानून में संशोधन के तहत वित्त मंत्रालय ने मई में कहा, ‘‘जीटीए वित्त वर्ष 2023-24 के लिये विकल्प 31 मई तक अपना सकते हैं।’’ सड़क मार्ग से माल परिवहन की सेवा प्रदान करने वाली और इस उद्देश्य के लिये बिल (कंसाइनमेंट नोट) जारी करने वाली इकाई जीएसटी के तहत जीटीए कहलाती हैं। संशोधन में आगे कहा गया है कि जीटीए अगर किसी भी वित्त वर्ष के दौरान नया कारोबार शुरू करता है या पंजीकरण के लिये निर्धारित सीमा पार करता है, तो वह उस वित्त वर्ष के दौरान आपूर्ति की गई सेवाओं पर जीएसटी का भुगतान करने का विकल्प चुन सकता है। 

दोनों के अपने फायदे-नुकसान

एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के वरिष्ठ भागीदार रजत मोहन ने कहा कि जीटीए के पास सामान की आपूर्ति या फिर आपूर्ति प्राप्त करने के आधार पर (रिवर्स चार्ज) कर देने का विकल्प है। दोनों के अपने फायदे-नुकसान हैं। मोहन ने कहा कि समान आपूर्ति आधार पर करदाताओं को टैक्स क्रेडिट के उपयोग और जोड़े गये मूल्य पर ही कर भुगतान की मंजूरी है। वहीं ‘रिवर्स चार्ज’ के तहत करों के भुगतान के लिये विस्तृत रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता नहीं होगी और कर के रूप में में फंसी कार्यशील पूंजी भी मुक्त होगी।

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