Thursday, May 16, 2024
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ड्रम के सहारे समुद्र पार कर म्यांमार से बांग्लादेश भाग आया 13 साल का लड़का

13 साल के नबी हुसैन ने जिंदा रहने की अपनी सबसे बड़ी जंग एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे जीती...

IANS Reported by: IANS
Updated on: November 13, 2017 15:59 IST
Nabi | AP Photo- India TV Hindi
Nabi | AP Photo

शाह पोरिर द्वीप: नबी हुसैन ने जिंदा रहने की अपनी सबसे बड़ी जंग एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे जीती। रोहिंग्या मुसलमान किशोर नबी की उम्र महज 13 साल है और वह तैर भी नहीं सकता। म्यांमार में अपने गांव से भागने से पहले उसने कभी करीब से समुद्र नहीं देखा था। उसने म्यांमार से बांग्लादेश तक का समुद्र का सफर पीले रंग के प्लास्टिक के खाली ड्रम पर अपनी मजबूत पकड़ के सहारे लहरों को मात देकर पूरा किया। करीब ढाई मील की इस दूरी के दौरान समुद्री लहरों के थपेड़ों के बावजूद उसने ड्रम पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी।

‘मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था’

म्यांमार में हिंसा की वजह से सहमे रोहिंग्या मुसलमान हताशा में अपना घरबार सब कुछ छोड़ कर वहां से निकलने की कोशिश में तैरकर पड़ोस के बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे हैं। एक हफ्ते में ही 3 दर्जन से ज्यादा लड़के और युवकों ने खाने के तेल के ड्रमों का इस्तेमाल छोटी नौके के तौर पर नफ नदी को पार करने के लिए किया और शाह पोरिर द्वीप पहुंचे। धारीदार शर्ट और चेक की धोती पहने पतले-दुबले नबी ने कहा, ‘मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था। मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है।’ 

Rohingya | AP Photo

Rohingya | AP Photo

करीब छह लाख रोहिंग्या बांग्लादेश जा चुके हैं
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान दशकों से रह रहे हैं लेकिन वहां बहुसंख्यक बौद्ध उन्हें अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के तौर पर देखते हैं। सरकार उन्हें मूलभूत अधिकार भी नहीं देती और संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें दुनिया की सबसे पीड़ित अल्पसंख्यक आबादी कहा था। अगस्त के बाद से करीब छह लाख रोहिंग्या बांग्लादेश जा चुके हैं। कमाल हुसैन (18) भी तेल के ड्रम के सहारे ही बांग्लादेश पहुंचा था। उसने कहा, ‘हम बेहद परेशान था इसलिये हमें लगा कि पानी में डूब जाना कहीं बेहतर होगा।’

माता-पिता को नहीं पता कि नबी जिंदा है
नबी इस देश में किसी को नहीं जानता और म्यांमार में उसके माता-पिता को यह नहीं पता कि वह जीवित है। उसके चेहरे पर अब पहले वाली मुस्कान नहीं रहती और वह लोगों से आंख भी कम ही मिलाता है। नबी अपने माता-पिता की 9 संतानों में चौथे नंबर का था। म्यांमार में पहाड़ियों पर रहने वालो उसके किसान पिता पान के पत्ते उगाते थे।

Rohingya Boys | AP Photo

Rohingya Boys | AP Photo

यूं शुरू हुई थी समस्या
समस्या तब शुरू हुई जब एक रोहिंग्या विद्रोही संगठन ने म्यांमार के सुरक्षा बलों पर हमला किया। म्यांमार के सुरक्षा बलों ने इसपर बेहद सख्त कार्रवाई की। सैन्य कार्रवाई के दौरान ढेर सारे लोग मारे गए, महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया और उनके घरों व संपत्तियों को आग लगा दी गयी। नबी ने जब आखिरी बार अपने गांव को देखा था तब वहां सभी घर जलाए जा चुके थे।

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