Saturday, November 30, 2024
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Rajat Sharma's Blog | उद्धव से हाथ का साथ छोड़ने को किसने कहा?

महाविकास अघाड़ी में हार की वजह से उद्धव ठाकरे के गुट में चर्चाओं का दौर जारी है। उद्धव की शिवसेना के सीनियर लीडर अंबादास दानवे ने कहा है कि पार्टी के नेताओं को लगता है कि अगर महाराष्ट्र की 288 सीटों पर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उनकी सीटें ज्यादा आतीं।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : Nov 29, 2024 14:12 IST, Updated : Nov 29, 2024 14:12 IST
Rajat Sharma- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

महाविकास अघाड़ी में हार का असर खुलकर दिखने लगा है। उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी के नेताओं ने महाविकास अघाड़ी से बाहर आने का सुझाव दिया है। पता ये लगा है कि उद्धव ने कल जब पार्टी के उम्मीदवारों के साथ मीटिंग की थी, जिसमें पार्टी के नेताओं, विधायकों और हारे हुए उम्मीदवारों ने उद्धव को ये सलाह दी कि दूसरों के भरोसे चुनाव लड़ना ठीक नहीं है, जो होना था हो गया, अब BMC के साथ साथ महाराष्ट्र के कुल चौदह नगर निगमों के चुनाव होने हैं, स्थानीय निकाय चुनाव उद्धव के गुट को अपने दम पर लड़ना चाहिए, कांग्रेस और शरद पवार की NCP का साथ छोड़ना चाहिए।

उद्धव की शिवसेना के सीनियर लीडर अंबादास दानवे भी इस मीटिंग में मौजूद थे। दानवे ने कहा कि पार्टी के नेताओं को लगता है कि अगर महाराष्ट्र की 288 सीटों पर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उनकी सीटें ज्यादा आतीं। दानवे ये बोलने से बचते रहे कि उद्धव MVA से अलग होकर लड़ेंगे लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि अगर पूरे महाराष्ट्र में पार्टी अपना संगठन मजबूत करने के लिए ऐसा फैसला लेती है तो इसमें क्या गलत है।

MVA से अलग होने का फैसला उद्धव ठाकरे को लेना है लेकिन अंबादास दानवे ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ महंगा पड़ गया। दानवे ने खुलकर कहा कि लोकसभा चुनाव में मिली जीत का  अतिविश्वास हरियाणा में कांग्रेस को ले डूबा, यही अतिविश्वास महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की हार की वजह बना।

दानवे के बयान को बीजेपी ने मुद्दा बना दिया तो डैमेज कंट्रोल के लिए संजय राउत सामने आए। संजय राउत ने कहा कि मीटिंग में उद्धव ठाकरे को कुछ नेताओं ने अकेले लड़ने की सलाह जरूर दी,लेकिन ये उनकी निजी राय है, पार्टी ऐसा नहीं सोचती, इस चुनाव में हार की वजह EVM है।

उद्धव ठाकरे की पार्टी में कांग्रेस से पीछा छुड़ाने की बात उठना स्वाभाविक है। शिवसेना और कांग्रेस का DNA अलग है। बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना को हिंदुत्व के लिए लड़ने वाली शक्ति के तौर पर खड़ा किया था, इसीलिए शिवसेना बीजेपी की स्वाभाविक सहयोगी थी। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में रास्ता बदल लिया। इसका नुकसान हुआ।

शिंदे ने शिवसैनिकों की भावना को समझा, अपनी लाइन नहीं बदली। विधानसभा चुनाव में उन्होंने खुलकर बाला साहेब के हिंदुत्व की बात की। नरेंद्र मोदी ने चुनाव में उद्धव को ये कहकर छेड़ा कि वो राहुल गांधी से एक बार हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब कहलवाकर दिखाएं।

उद्धव इस बात का बचाव नहीं कर पाए कि वह उस कांग्रेस के साथ खड़े हैं, जो वीर सावरकर की देशभक्ति पर सवाल उठाती है। इसीलिए उद्धव के साथी अब उन्हें समझा रहे हैं। अगर राजनीति में अस्तित्व बरकरार रखना है तो बाला साहेब ठाकरे के रास्ते पर चलना पड़ेगा और उसकी पहली शर्त ये है कि कांग्रेस से दूर रहना होगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 28 नवंबर, 2024 का पूरा एपिसोड

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