Thursday, April 25, 2024
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कोर्ट से शायर मुनव्वर राना को बड़ा झटका, गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार

राना के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और आपराधिक मामला दर्ज करके इसे दबाया नहीं जा सकता है।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: September 03, 2021 23:09 IST
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Image Source : PTI FILE इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शायर मुनव्‍वर राना के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने वाल्मीकि समुदाय की तालिबान से तुलना करने के मामले में हजरतगंज कोतवाली में शायर मुनव्‍वर राना के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने गुरुवार को राना की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अपना काम करना चाहिए और किसी भी समुदाय पर टिप्पणी नहीं करना चाहिए। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए राना के वकील से पूछा, ‘आप (राना) इस तरह की टिप्पणी क्यों करते हैं। आप जो काम करते हैं, वह क्यों नहीं करते हैं।’

राना ने अदालत में सरोकार फाउंडेशन के उपाध्‍यक्ष पीएल भारती द्वारा उनके खिलाफ 20 अगस्त को दर्ज कराई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी और मामले की विवेचना के दौरान अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। भारती ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि ‘राना ने कहा है कि तालिबान भी 10 साल बाद वाल्मीकि होगा। यह कथन भगवान वाल्मीकि और उनके अनुयायियों का अपमान करने के समान है जो उन्हें अपने भगवान के रूप में मानते हैं। यह पूरे दलित समुदाय का भी अपमान है।’

भारती ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में दर्ज प्राथमिकी में राना पर यह आरोप लगाया था। राना के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और आपराधिक मामला दर्ज करके इसे दबाया नहीं जा सकता है। वकील ने यह भी दलील दी कि राजनीतिक कारणों से मामला दर्ज किया गया लिहाजा अदालत को दखल देना चाहिए।

याचिका का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता एसएन तिलहरी ने तर्क दिया कि बोलने का अधिकार निर्बाध नहीं है और राना ने देश में दलित समुदाय की भावनाओं का अपमान करने और उन्हें भड़काने के लिए बयान दिया। राना के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी और नसीहत दी कि उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।

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