Wednesday, April 24, 2024
Advertisement

चारधाम यात्रा शुरू, जानिए कितने लोगों को मिल रही है दर्शन की अनुमति

आज से उत्तराखंड के चार धामों केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए है। जानिए इन धामों के बारे में सबकुछ।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 01, 2020 15:06 IST

आज से उत्तराखंड के चार धामों केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा उत्तराखंड के वासियों के लिए शुरू कर दी गई है। अगर कोई व्यक्ति दूसरे राज्य से आता है तो क्वारंटीन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही वह दर्शन के लिए जा सकता है। चारधाम को लेकर नई गाइडलाइन सामने आ गई है।

कैसे कर सकेंगे दर्शन

अगर आप चारधाम के लिए जाना चाहते हैं तो आपको जिला प्रशासन की वेबसाइट में जाकर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके बाद ही आपको यात्रा पास जारी किया जाएगा। जिससे आप आसानी से तीर्थ यात्रा कर सकेंगे। 

चारधाम में दर्शन का समय

कोरोना वायरस के चलते इस बार चारों धामों में सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शन करने होगे। दर्शन के दौरान भीड़ न लगे इसके लिए टोकन व्यवस्था रखी गई है जोकि मुफ्त में दिए जाएंगे।

कितने लोग कर सकेंगे दर्शन

नए नियम के अनुसार  एक दिन में बद्रीनाथ में 1200, केदारनाथ में 800, गंगोत्री में 600 और यमुनोत्रा में 400 लोग दर्शन कर सकेंगे। वहीं आप कंटेंटमेंट जोन हैं तो आपको यात्रा करने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं हैं।

लाल बाग के राजा के पंडाल की जगह 11 दिन लगेंगे खास कैंप, कोरोना पीड़ितों को मिलेगा नया जीवन

चार धामों का महत्व

उत्तराखंड के चार धामों केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। जहां दर्शन करने मात्र से हर समस्या से छुटकारा मिल जाता है। हर एक धाम का अपना एक अलग महत्व है। जानिए इसके बारे में विस्तार से।

बदरीनाथ

Image Source : TWITTER/BANDESHVASTRAD
बदरीनाथ

बदरीनाथ

इस मंदिर में भगवान विष्णु मूर्ति के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि द्वापर युग में  भगवान कृष्ण को स्वय श्री विष्णु से दर्शन दिए थे। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि भगवान ने अवतार धारण करने से पहले मूर्ति रूप में खुद को प्रकट कर किया था। 

बदरीनाथ को लेकर एक रोचक कथा प्रचलित हैं। पहले यह शिव की भूमि थी लेकिन बाद में भगवान विष्णु का निवास स्थान बन गया। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु तप करने के लिए कोई जगह ढूंढ खोज रहे थे। तभी उन्हें यह स्थान नजर आा। यहां का वातावरण देखकर मोहित कर मोहित हो गए। द्वार पर पहुंफिर उन्होंने शुरू की अपनी रास लीला और बालक का रूप रखकर जोर-जोर से रोने लगे।  उनकी आवाज सुनकर मां पार्वती की नजर उनपर पड़ी और उन्हें चुप कराने का प्रयास करने लगी। लेकिन वह चुप नहीं रहा था। जिसके बाद वह बालकर रूपी भगवान विष्णु को घर के अंदर ले गई। भगवान शिव समझ घए कि यह विष्णु जी है। उन्होंने मां पार्वती से कहा कि बालक को छोड़ दो वह अपने आप चला जाएगा। लेकिन वह नहीं मानी और उसे सुलाने के लिए भीतर ले गई।जब बालक सो गया तो मां पार्वती बाहर आ गईं। इसके बाद श्री हरि ने अंदर से कपाट बंद कर लिए और भगवान शिव से कहा कि मुझे यह स्थान पंसद आ गया और केदार नाथ जाएंष मैं इसी स्थान पर रहकर अपने भक्तों को दर्शन दूंगा।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार जुलाई माह में आषाढ़ी एकादशी, गुरु पूर्णिमा, चंद्र ग्रहण समेत पड़ रहे हैं ये व्रत त्‍योहार

केदार नाथ

Image Source : TWITTER/SDCFOUNDATIONUK
केदार नाथ

केदारनाथ धाम

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक मान्यता प्रचलित है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान पांडवों से रुष्ट थे। भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, वे उन्हें नहीं मिले। पांडव शिव को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह अंर्तध्यान होकर केदार में जा बसे। दूसरी ओर पांडव भी वे उनके पीछे-पीछे केदार पहुंच गए।

वहां शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया। भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। सब गाय-बैल तो वहां निकल गए, लेकिन बैल बने भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए।

भीम उस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में समाने लगा। भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया। इस पर भगवान शिव पांडवों की भक्ति देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। तब से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

मंदिर में मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

गंगोत्री

Image Source : TWITTER/EXPLOREOUTING
गंगोत्री

गंगोत्री धाम

पौराणिक कथा के अनुसार  भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी धरती पर अवतरित हुईं। जिससे कि वह राजा भगीरथ के पुरखों को पापों से तार सकें।  स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से 19 किमी. की दूरी पर गोमुख में है, लेकिन श्रद्धालु गंगोत्री में ही गंगाजी के प्रथम दर्शन यहीं से करते हैं। 

यमुनोत्री 
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री एक दुर्गम स्थान पर है। यहां शनि व यम की बहन और सूर्य देव की पुत्री देवी यमुना की आराधना होती है। शास्त्रों के अनुसार यह पवित्र स्थान एक साधु असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहां देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुनाजी ने उन्हें दर्शन दिए।

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Features News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement