Monday, May 20, 2024
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इस तरह के सैनिटरी नैपकिन होते है हेल्थ और हाइजीन के लिए खतरनाक

मासिक धर्म से संबंधित कचरे के निस्तारण के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है..मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) एक उपेक्षित मुद्दा है और डिस्पोजल इसके संदर्भ में शायद सबसे उपेक्षित विषय है..

IANS
Updated on: June 05, 2017 13:46 IST
 sanitary napkins- India TV Hindi
sanitary napkins

हेल्थ डेस्क: जब भी कोई महिला डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन खरीदती है तो उसके दिमाग में लंबे समय तक चलने वाला, आरामदायक, दाग मुक्त और सस्ता होने की बात रहती है।

ज्यादातर महिलाएं यह नहीं जानतीं कि भारत में हर महीने एक अरब से ज्यादा सैनिटरी पैड गैर निष्पादित हुए सीवर, कचरे के गड्ढों, मैदानों और जल स्रोतों में जमा होते हैं, जो बड़े पैमाने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं।

भारत में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया व अंधविश्वास के साथ इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके निपटारा होना बड़ी चुनौती बन चुकी है।

भारत सरकार जहां सभी महिलाओं व लड़कियों को, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर रही है, वहीं  बातचीत में विशेषज्ञों ने सैनिटरी पैड के निस्तारण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया, जो हर साल करीब 113,000 टन निकलता है।

शायद इस समस्या को महसूस करने के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले साल नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्लयूएम) नियम को ले आई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में स्थित गैर-लाभकारी संगठन आरटीआई इंटरनेशनल के वरिष्ठ निदेशक माइल्स एलेज ने कहा, "कुछ भारतीय राज्य और शहरों ने ठोस कचरा निस्तारण या प्रबंधन पर ध्यान दिया है और विद्यालयों तथा संस्थानों में इस तरह के कचरा निस्तारण के लिए भट्ठियां लगाई हैं, लेकिन ऐसा बड़े पैमाने पर नहीं है।"

एलेज ने बताया, "मासिक धर्म से संबंधित कचरे के निस्तारण के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है..मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) एक उपेक्षित मुद्दा है और डिस्पोजल इसके संदर्भ में शायद सबसे उपेक्षित विषय है।"

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