नई दिल्ली: कुष्ठरोग जिसे आमतौर पर हैन्सन्स रोग कहा जाता है, इसका कारण धीमी गति से विकसित होने वाला एक जीवाणु है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्री (एम.लेप्री) कहलाता है। इस रोग में त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है, त्वचा पर ऐसी गांठें या घाव हो जाते हैं जो कई सप्ताह या महीनों के बाद भी ठीक नहीं होते। इसमंे तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिसके चलते हाथों और पैरों की पेशियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें संवेदनशीलता कम हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज दुनिया भर में तकरीबन 180,000 लोग कुष्ठ रोग से संक्रमित हैं, जिसमें से अधिकतर अफ्रीका और एशिया में हैं। कुष्ठ रोग से कई गलत अवधारणाएं जुड़ी हैं, जिनके चलते बीमारी से ग्रस्त लोगों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
बहुत से लोग मानते हैं कि यह रोग मानव स्पर्श से फैलता है, लेकिन वास्तव में यह रोग इतना संक्रामक नहीं है। यह रोग तभी फैलता है जब आप ऐसे मरीज के नाक और मुंह के तरल के बार-बार संपर्क में आएं, जिसने बीमारी का इलाज न कराया हो। बच्चों में वयस्क की तुलना में कुष्ठ रोग की संभावना अधिक होती है। जीवाणु के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखाई देने में आमतौर पर 3-5 साल का समय लगता है। जीवाणु/ बैक्टीरिया के संपर्क में आने तथा लक्षण दिखाई देने के बीच की अवधि को इन्क्यूबेशन पीरियड कहा जाता है।
रोग सबसे पहले परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है और इसके बाद त्वचा एवं अन्य उत्तकों/अंगों, विशेष रूप से आंखों, नाक के म्यूकस तथा ऊपरी श्वसन तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है। निदान और इलाज में देरी के परिणाम घातक हो सकते हैं। इसमें आंखों की पलकों और भौहों के बाल पूरी तरह से उड़ जाते हैं, पेशियां कमजोर हो जाती हैं, हाथों और पैरों की तंत्रिकाएं स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति अपंग हो सकता है।
इसमें पैरों में भी गहरी दरारें आ जाती हैं, जिसे फिशर फीट कहा जाता है। इसके अलावा जोड़ों में अचानक दर्द, बुखार, त्वचा पर हाइपो पिगमेन्टेड घाव और गंभीर अल्सर भी इसके लक्षण हैं। इसके अलावा नाक में कन्जेशन, नकसीर आना, नाक के सेप्टम का खराब होना, आइरिटिस (आंखों की आइरिस में सूजन), ग्लुकोमा (आंख का एक रोग जिसमें ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है) भी इसके लक्षण हैं। कुष्ठरोग- पायलट इरेक्टाईल डिस्फंक्शन, बांझपन और किडनी फेलियर का कारण भी बन जाता है।