Friday, April 19, 2024
Advertisement

भौम प्रदोष व्रत: इस बार बन रहा है दुर्लभ संयोग, भगवान शिव की ऐसे पूजा करने से मिलेगा दोगुना लाभ

मंगलवार होने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार मंगल का सीधा संबंध कर्ज से है। इस बार इस दिन मासिक शिवरात्रि भी पड़ रही हैं। जानिए पूजा विधि और व्रत कथा।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: September 14, 2020 14:34 IST
भौम प्रदोष व्रत: इस बार बन रहा है दुर्लभ संयोग, भगवान शिव की ऐसे पूजा करने से मिलेगा दोगुना लाभ- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/MAHADEV_NI_DIWANI_01 भौम प्रदोष व्रत: इस बार बन रहा है दुर्लभ संयोग, भगवान शिव की ऐसे पूजा करने से मिलेगा दोगुना लाभ

हर माह के कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है। अतः मंगलवार को प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत की पूजा त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल के समय की जाती है। रात्रि के प्रथम प्रहर को, यानी कि सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। साथ ही जिस दिन प्रदोष काल होता है, उस दिन के नाम से प्रदोष का नाम रखा जाता है। मंगलवार होने के कारण  इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार मंगल का सीधा संबंध कर्ज से है। अतः भौम प्रदोष व्रत कर्ज से मुक्ति पाने के लिये बहुत ही श्रेष्ठ है।

बन रहे हैं शुभ योग

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार इस प्रदोष व्रत में काफी अच्छा संयोग बन रहा है जिसके कारण इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलेगा। मंगलवार को मासिक शिवरात्रि भी पड़ रही हैं। इसके अलावा  दोपहर पहले 11 बजकर 2 मिनट तक शिव योग रहेगा उसके बाद सिद्ध योग लग जाएगा। शिव योग बहुत ही शुभदायक है। इस योग में किए गए सभी मंत्र शुभफलदायक होते हैं ।  कोई कार्य सीखन है तो इस योग में शुरुआत करें , कार्य  सिद्ध होगा। गुरु से मंत्र दीक्षा लेने का उत्तम योग है।

 
पुराणों के अनुसार माना जात है कि इस अवधि के बीच भगवान शिव कैलाश पर्वत में प्रसन्न होकर नृत्य करते है। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जानिए इसकी पूजा विधि और कथा के बारे में। 

मंगलवार को ये खास उपाय करने से होगा कल्याण, कर्ज से मुक्ति के साथ मिलेगा अपार धन

भौम प्रदोष व्रत  पूजा विधि
इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें।

इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें।

भौम प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

पूरे परिवार की खुशियां खत्म करने की ताकत रखता है इस स्वभाव वाला मनुष्य...

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement