Saturday, April 20, 2024
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भौम प्रदोष व्रत 2020: कर्ज मुक्ति के लिए ऐसे करें भगवान शिव की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

कर्ज से छुटकारा पाने के लिये और अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिये भौम प्रदोष विशेष महत्व रखता है। जानिए पूजा विधि और व्रत कथा।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: September 28, 2020 14:54 IST
भौम प्रदोष व्रत- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/MAHADEV_NI_DIWANI_01 भौम प्रदोष व्रत

हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है। आज त्रयोदशी तिथि के साथ मंगलवार का दिन भी है और मंगल का एक नाम भौम भी है।  त्रयोदशी तिथि रात 10 बजकर 34 मिनट तक रहेगी | हर माह के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है और सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है |   इस माह अधिक मास में प्रदोष व्रत पड़ रहा है जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। कर्ज से छुटकारा पाने के लिये और अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिये भौम प्रदोष विशेष महत्व रखता है। साथ ही अपने दाम्पत्य जीवन से उदासी को दूर करने के लिये और दाम्पत्य जीवन की ऊष्मा को बढ़ाने के लिये और बिजनेस में आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिये भौम प्रदोष व्रत कैसे आपके लिये लाभदायक सिद्ध हो सकता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

भौम प्रदोष व्रत  पूजा विधि

 प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें।

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इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें।

भौम प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

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कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

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