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ओडिशा का ‘सीफूड’ निर्यात 3000 करोड़ रुपए के पार, पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज

ओडिशा सरकार ने खारे पानी की जलीय कृषि की उपलब्ध क्षमता का दोहन करने के लिए एक गतिशील और सुविधाजनक नीति तैयार करने का फैसला किया है। इस क्षेत्र ने पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : July 24, 2021 22:59 IST
ओडिशा का ‘सीफूड’ निर्यात 3000 करोड़ रुपए के पार, पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज- India TV Paisa
Photo:FILE

ओडिशा का ‘सीफूड’ निर्यात 3000 करोड़ रुपए के पार, पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज

भुवनेश्वर: ओडिशा सरकार ने खारे पानी की जलीय कृषि की उपलब्ध क्षमता का दोहन करने के लिए एक गतिशील और सुविधाजनक नीति तैयार करने का फैसला किया है। इस क्षेत्र ने पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है। शुक्रवार को मुख्य सचिव एस सी महापात्र की अध्यक्षता में डिजिटल तरीके से हुई बैठक में इस संबंध में निर्णय लिया गया। मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास सचिव आर रघु प्रसाद ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। खारे पानी की मछली का उत्पादन वर्ष 2011-12 के 11,460 टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 97,125 टन हो गया है, जो रिकॉर्ड वृद्धि दर्शाता है। 

इसी अवधि के दौरान खारे पानी की जलीय कृषि का क्षेत्र भी 5,860 हेक्टेयर से बढ़कर 17,780 हेक्टेयर हो गया। कोविड-19 के कारण आर्थिक मंदी के बावजूद ओडिशा से समुद्री खाद्य निर्यात मूल्य भी वर्ष 2011-12 के 801 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 3,107 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2011-12 में निर्यात की मात्रा लगभग 21,311 टन थी जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 60,718 टन हो गई। प्रसाद ने कहा, "ओडिशा समुद्री भोजन ने विशेष रूप से जापान, चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व के देशों में वैश्विक बाजार पर कब्जा जमाया है।" 

उन्होंने यह भी कहा: "राज्य में सरकारी और निजी भूमि दोनों में ही खारे जलीय कृषि की अधिक संभावना है। यह क्षेत्र अधिक निजी निवेश को आकर्षित कर सकता है।’’ क्षेत्र की क्षमता को ध्यान में रखते हुए, मुख्य सचिव ने राजस्व और आपदा प्रबंधन, मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास, वन और पर्यावरण विभाग और ओडिशा औद्योगिक बुनियादी ढांचा विकास निगम (आईडीसीओ) के विभागों को राज्य में खारे पानी की जलीय कृषि की उपलब्ध क्षमता के दोहन के लिए एक गतिशील और सुविधाजनक नीति तैयार करने का निर्देश दिया। 

मत्स्य अधिकारियों और संबंधित कलेक्टरों के साथ निकट समन्वय में आईडीसीओ को विभिन्न जिलों में संभावित भूमि की पहचान करने और इस उद्देश्य के लिए एक भूमि बैंक विकसित करने का निर्देश दिया गया। मुख्य सचिव ने आईडीसीओ को क्लस्टरों में भूमि की पहचान करने और जलीय कृषि पार्कों के निर्माण के लिए खारे पानी की निकासी, सड़क और बिजली संपर्क जैसी सुविधाओं को विकसित करने का भी निर्देश दिया। विभिन्न स्तरों पर कार्यरत मत्स्य पालन एवं पशु संसाधन विकास के अधिकारियों को कार्यक्रम को सक्रिय रूप से चलाने के लिए कहा गया। 

अतिरिक्त मुख्य सचिव, वन एवं पर्यावरण, डॉ मोना शर्मा ने तटीय क्षेत्र नियामक क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना और तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम के नियमों को ध्यान में रखते हुए खारे पानी की जलीय कृषि के लिए भूमि खंड की पहचान करने की सलाह दी ताकि भविष्य में किसानों को किसी भी तरह की परेशानी से बचाया जा सके। मुख्य सचिव ने स्वयं सहायता समूहों, प्राथमिक मछुआरा सहकारी समितियों, महिला सहकारी समितियों, शिक्षित बेरोजगार उद्यमी युवाओं, साझेदारी फार्मों और राज्य के स्वामित्व वाली सहकारी समितियों को व्यावसायिक आधार पर लाकर क्षेत्र में संभावनाओं का दोहन करने के भी निर्देश दिए। सरकारी सूत्रों ने कहा कि पांच प्रमुख तटीय जिलों बालासोर, भारदक, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर, पुरी और गंजम में विभिन्न तहसीलों को खारे पानी की जलीय कृषि के लिए लगभग 2,000 आवेदन जमा किए गए थे। 

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