नई दिल्ली। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) मामले में अब एक दिलचस्प मोड़ आ गया है। नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने अमेरिका को 60 अरब डॉलर वाली सीपीईसी परियोजना से जुड़ने का निमंत्रण दिया है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को ट्रंप प्रशासन संदेह की नजर से देखता है, क्योंकि उसका मानना है कि इसमें पारदर्शिता नहीं है। अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के वाणिज्य मामलों के सलाहकार अब्दुल रज्जाक दाऊद ने गुरुवार को कहा कि सरकार ने अमेरिका के व्यापार मंत्री विलबर रॉस की अगुवाई वाले व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक के दौरान यह पेशकश की है।
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने अमेरिका के वरिष्ठ राजनयिक एलिस वेल्स ने कहा था कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा में कोई पारदर्शिता नहीं है और वर्ल्ड बैंक ने जिन कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया है, उन कंपनियों को इस परियोजना में ठेके दिए गए हैं। इससे पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा।
रज्जाक ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के ऊर्जा, तेल एवं गैस, कृषि तथा खाद्य प्रसंस्करण में रुचि दिखाई है। चीन ने सीपीईसी के तहत पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। इसके तहत चीन की कई विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने की योजना है। भारत ने इस परियोजना का विरोध किया है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरती है।
प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने तथा आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए हाल में हुई चर्चा के बाद अमेरिकी वाणिज्य मंत्री पाकिस्तान की यात्रा पर आए थे। दाऊद ने बैठक का ब्योरा साझा करते हुए कहा कि अमेरिकी अधिकारियों ने ई-वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए रुचि दिखाई है।
उन्होंने कहा कि यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन पाकिस्तान में नई कंपनियों के विकास में मदद करेगा। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री तालमेल के लिए एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल को जल्द पाकिस्तान भेजने के लिए तैयार हैं।
सीपीईसी चीन के झिनजियांग को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा। इस पहल पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि छोटे देश चीन के कर्ज से दबकर कमजोर पड़ रहे हैं। 2017 में श्रीलंका ने अपना कर्ज उतारने के लिए अपना रणनीतिक हमबनटोटा पोर्ट 99 साल की लीज पर चीन को दे दिया था, इसके बाद से चिंताएं और बढ़ गई हैं।