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भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों रह गई अधूरी? पढ़ें इससे जुड़ी रोचक कहानी के बारे में

जगन्नाथ पूरी हिंदू धर्म के मुख्य धामों में से एक है। लेकिन यहां विराजमान जगन्नाथ जी की मूर्ति अधूरी क्यों है, इसके पीछे छिपी एक रोचक कहानी के बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।

Written By: Naveen Khantwal
Published : Jul 02, 2024 15:54 IST, Updated : Jul 02, 2024 15:54 IST
Jagannath rath yatra- India TV Hindi
Image Source : FILE Jagannath rath yatra

जगन्नाथ पुरी धाम हिंदू धर्म के 4 प्रमुख धामों में से एक है। पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। हर साल जगन्नाथ यात्रा के दौरान लाखों लोग पुरी में होने वाली जगन्नाथ यात्रा में भाग लेते हैं। माना जाता है कि एक बार कोई जगन्नाथ पुरी यात्रा में भाग ले ले तो उसके सभी पाप धुल जाते हैं। हालांकि इस पवित्र मंदिर में जगन्नाथ जी की जो मूर्ति है वो अधूरी है और इसके अधूरे रहने के पीछे एक रोचक कथा छुपी हुई है। आज हम इसी बारे में आपको विस्तार से जानकारी देंगे।

जगन्नाथ भगवान की मूर्ति कैसे रह गई अधूरी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने जब अपना शरीर त्याग दिया तो पांडवों के द्वारा उनका दाह संस्कार किया गया। लेकिन शरीर के जलने के बाद भी उनका हृदय बचा रहा। भगवान कृष्ण के दिल को पांडवों ने जल में प्रवाहित कर दिया। माना जाता है कि भगवान कृष्ण का दिल राजा इंद्रदयुम्न को मिला और उन्होंने इस दिल को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में स्थापित करवाया दिया। जिस मूर्ति में भगवान जगन्नाथ जी का हृदय विराजित है उस मूर्ति को बनाने का कार्य राजा ने बूढ़े बढ़ई का भेष धारण किये विश्वकर्मा जी को दिया। विश्वकर्मा जी ने राजा की बात तो मानी लेकिन साथ ही एक शर्त भी रख दी। विश्वकर्मा ने कहा कि, जब तक मूर्तियों के बनने का कार्य पूरा न हो जाए तब तक किसी को भी अंदर आने की इजाजत नहीं होगी, अगर कोई अंदर आया तो मूर्तियों को बनाने का कार्य मैं छोड़ दूंगा। राजा ने विश्वकर्मा की यह बात मान ली। 

इसके बाद विश्वकर्मा मूर्तियों को बनाने के कार्य में लग गए। जिस दौरान मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा था, राजा दरवाजे के बाहर से आवाजें सुनते रहते थे। आपको बता दें कि, विश्वकर्मा न केवल जगन्नाथ जी की बल्कि उनकी बहन सुभद्रा और भाई बल भद्र की मूर्तियां भी तैयार कर रहे थे। राजा दरवाजे के बाहर से आवाजें सुनकर संतुष्ट हो जाते थे कि, अंदर मूर्तियों को बनाने का कार्य जारी है। लेकिन एक दिन अचानक से आवाजें आना बंद हो गईं। राजा को लगा की अब मूर्तियों के बनने का कार्य संपन्न हो चुका है। राजा ने इसी गलतफहमी में दरवाजा खोल दिया, दरवाजा खोलते ही विश्वकर्मा वहां से गायब हो गए। उसके बाद जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को बनाने का कार्य पूरा नहीं हो पाया। तब से ये मूर्तियां अधूरी ही हैं। 

साल 2024 में जगन्नाथ रथ यात्रा 

साल 2024 में जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई से शुरू होने जा रही है। रथ यात्रा 16 जुलाई तक चलेगी और इस दौरान जगन्नाथ जी अपने भाई और बहने के साथ अपनी मौसी गुंडिचा माता के घर जाएंगे। रथ यात्रा की यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है और आज भी पूरे विधि विधान से यह यात्रा की जाती है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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