Friday, December 13, 2024
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उत्तर प्रदेश में बीजेपी को क्यों कम आई सीटें? पार्टी हेडक्वॉर्टर को भेजी गई रिपोर्ट में हुए बड़े खुलासे: सूत्र

लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से सिर्फ 33 सीटों पर जीत दर्ज की थी और समाजवादी पार्टी से 37 सीटें जीतकर उसे सूबे में दूसरे नंबर पर धकेल दिया था।

Reported By : Vishal Pratap Singh Edited By : Vineet Kumar Singh Published : Jun 12, 2024 19:04 IST, Updated : Jun 12, 2024 19:31 IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL केंद्र में अपने दम पर BJP के बहुमत न पाने के पीछे यूपी का प्रदर्शन भी बड़ी वजह रहा।

लखनऊ: लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद विभिन्न पार्टियों में अब अपने-अपने प्रदर्शन के विश्लेषण का दौर जारी है। सूत्रों के मुताबिक, इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के कारणों की रिपोर्ट सूबे के बीजेपी मुख्यालय में भेजी है। बता दें कि बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में यूपी में 80 में से केवल 33 सीटें जीती थीं जो कि 2019 के मुकाबले 29 सीटें कम थीं। सिर्फ इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी ने लोकसभा की 37 सीटें जीतकर सूबे में बीजेपी को दूसरे नंबर पर धकेल दिया था। बीजेपी के सहयोगियों को 3 सीटें, कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं जबकि एक सीट पर चंद्रशेखर ने परचम लहराया था।

रिपोर्ट में सामने आए हार के संभावित कारण

चुनावों में इतना बड़ा झटका मिलने के बाद बीजेपी के होश उड़ गए थे। कहां तो पार्टी उत्तर प्रदेश के दम पर पूरे देश में रिकॉर्ड सीटें जीतने की उम्मीद लगाए बैठी थी और कहां पिछले प्रदर्शन को दोहराना ही ख्वाब बनकर रह गया। बीजेपी अब सूबे में अगले कुछ सालों में होने वाले चुनावों को लेकर सावधान हो गई है और एक रिपोर्ट में कम सीटें जीतने के कारण भी सामने आ गए हैं। सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में बीजेपी की कम सीटें आने के कारणों का जिक्र करते हुए संगठन, हारे हुए प्रत्याशी, लोकसभा प्रभारियों की रिपोर्ट प्रादेशिक पार्टी मुख्यालय को भेजी गई है। आइए, जानते हैं क्या थे यूपी में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के कारण:

  1. 2 बार से ज्यादा जीते हुए सांसदों से जनता में नाराज़गी थी। कुछ सांसदों का व्यवहार भी ठीक नहीं था।
  2. राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था, उसकी अनदेखी हुई। टिकट बदलते तो परिणाम बेहतर होते।
  3. विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण ख़त्म करने की बात का बीजेपी सही ढंग से जवाब नहीं दे पाई। विपक्ष अपनी बात मे कामयाब रहा।
  4. पार्टी पदाधिकारियों का सांसदों के साथ तालमेल अच्छा नहीं रहा। यही वजह थी कि मदतदाताओं की वोट वाली पर्ची पूरे प्रदेश में इस बार बहुत कम घरों तक पहुंची।
  5. कुछ जिलों मे विधायकों की अपने ही सांसद प्रत्याशियों से नहीं बनी। विधायकों ने ठीक ढंग से सपोर्ट नहीं किया जिसकी वजह से हार हुई।
  6. बीजेपी के लाभार्थी वर्ग को 8500 रुपए महीने की गारंटी (कांग्रेस की तरफ से) ने आकर्षित किया। यहां भी लाभार्थियों से सीधा संवाद न होना हार की वजह बना।
  7. कई जिलों मे सांसद प्रत्याशी की अलोकप्रियता इतनी हावी हो गई कि बीजेपी कार्यकर्ता अपने घरों से नहीं निकला।
  8. कार्यकर्ताओं की अनदेखी भी बड़ा मुद्दा रही। निराश और उदासीन कार्यकर्ताओं ने पार्टी के लिए तो वोट किया लेकिन दूसरों को वोट करने के लिए प्रेरित नहीं किया।
  9. हर सीट पे उसके अपने कुछ फैक्टर रहे। जैसे पेपर लीक और अग्निवीर जैसी योजनाओं को लेकर विपक्ष लोगों को भ्रमित करने मे कामयाब रहा और बीजेपी ठीक ढंग से काउंटर नहीं कर पाई।

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