
पाकिस्तान ने जब से न्यूक्लियर पावर हासिल की है तब से उसके गुरुर सातवें आसमान पर हैं। आतंकवाद के खिलाफ जब-जब भारत ने आवाज बुलंद की और पाकिस्तान पर निशाना साधा तब वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देने लगा। पाकिस्तान के इस परमाणु ब्लैकमेल की इस बार भारतीय सेना ने हवा निकाल दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कह दिया कि न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं चलेगा। यानी अब अगर पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देगा, तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी।
पाकिस्तान ने न्यूक्लियर पावर हासिल तो कर ली, लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर है कहीं ये हथियार आतंकियों के हाथ न लग जाएं क्योंकि पाकिस्तान की गिनती एक गैर जिम्मेदार मुल्क के तौर पर होती है। आजादी के बाद से वहां समय-समय पर सैन्य तानाशाहों का शासन रहा है। मौजूदा आर्मी चीफ का रवैया भी आतंकियों जैसा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर सवाल उठना लाजिमी है। पहले से ही कहा जाता है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं है। उनके आतंकियों के हाथ में भी जाने का खतरा है। ऐसी रिपोर्ट्स भी समय-समय पर छपती रहती हैं। अब किराना हिल्स में न्यूक्लियर रेडिएशन के प्रोपेगेंडा ने एक बार फिर पाकिस्तान के एटमी हथियारों की सुरक्षा पर सवाल उठा दिया है। क्योंकि किराना हिल्स काफी पहले से पाकिस्तान के एटमी पॉलिसी में अहमियत रखती है।
क्या किराना हिल्स में रेडिएशन हुआ?
ऐसी चर्चा चल रही है कि भारत ने जब पाकिस्तान के एयरबेस को निशाना बनाया तो उसी दौरान कैराना हिल्स में रेडिएशन हुआ। हालांकि कैराना हिल्स में न्यूक्लियर रेडिएशन को पाकिस्तान नकार चुका है और अमेरिका ने भी ऐसी खबर से इनकार किया है। वहीं भारत की फौज भी इस बात को नकार रही है कि उसने किराना हिल्स पहल हमल किया। डीजीएमओ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि हमने किराना किराना हिल्स को हिट नहीं किया है चाहे वहां पर कुछ भी हो। फिर ये सारी बाते कहां से शुरु हुईं?
दरअसल, दावा किया जा रहा है कि एक ख़ास विमान Beechcraft B350 AMS पाकिस्तान की वायुसीमा में उड़ता दिखा। Tail number N111SZ वाला यह प्लेन अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनर्जी का बताया जा रहा है.जो Aerial Measuring System में अपने रोल के लिए जाना जाता है। यानी इस विमान को किसी इलाके में न्यूक्लियर रेडिएशन लीक होने की पुख़्ता जांच के लिए भेजा जाता है और वो साथ ही ये भी पता करता है कि अगर न्यूक्लियर रेडिएशन लीक हुआ है तो उसका असर कितना व्यापक हो सकता है। अमेरिका के इस B350 AMS aircraft को गामा रे सेंसर्स, रियल टाइम डेटा ट्रांसमिशन सिस्टम और आधुनिक geographic mapping tools से लैस बताया गया. ये काफ़ी नीचे और काफ़ी कम रफ़्तार पर भी उड़ान भर सकता है ताकि किसी इलाके में रेडिएशन लीक का पता लगाया जा सके। अब इसमें भी दो तरह की थ्योरी चल रही है। एक तरफ कहा जा रहा है कि ये प्लेन अमेरिका ने भेजा है तो दूसरी थ्योरी ये है कि इस प्लेन 2010 में अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना के एविएशन विंग को दिया था। इससे ये भी चर्चा हुई कि या तो पाकिस्तान ने खुद ही इस विमान को तैनात किया है या अमेरिका और पाकिस्तान ने रेडिएशन की जांच के लिए इसका मिलकर इस्तेमाल किया है।
बोरोन से जुड़े कम्पाउंड मंगाए गए
सोशल मीडिया पर किराना हिल्स में न्यूक्लियर रेडिएशन को लेकर बहस तब और बढ़ गई जब पाकिस्तान में इजिप्ट का प्लेन देखे जाने का दावा किया गया। दावे के मुताबिक EGY1916 प्लेन को पाकिस्तान और अमेरिका ने मंगाया है और इसमें मिस्र से बोरोन से जुड़े कम्पाउंड मंगाए गए हैं। मिस्र में नील नदी के डेल्टा में बोरोन काफ़ी मात्रा में पाया जाता है और इसका इस्तेमाल दूसरे कामों के साथ-साथ रेडिएशन पर कंट्रोल करने के लिए किया जाता है। बोरोन एक कैमिकल कंपोनेंट है जो न्यूट्रॉन्स को ऑब्जर्ब कर लेता है इसलिए इसका इस्तेमाल रेडिएशन के दौरान होता है। किसी न्यूक्लियर इमरजेंसी में बोरिक एसिड या बोरोन कार्बाइड का इस्तेमाल न्यूक्लियर रिएक्टर्स को काबू में रखने और ठंडा करने में इस्तेमाल किया जाता है। अप्रैल, 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे में न्यूक्लियर फिशन रिएक्शन को धीमा करने के लिए इसे काफ़ी मात्रा में गिराया गया था। इसके अलावा मार्च 2011 में सुनामी के बाद जापान के फुकुशिमा डायटी न्यूक्लियर प्लांट हादसे को भी कंट्रोल करने के लिए बोरिक एसिड और बोरोन कार्बाइड जैसे कैमिकल कम्पाउंड रिएक्टर और spent fuel pools में इंजेक्ट किए गए थे। बोरोन nuclear fission के प्रोसेस को धीमा करने में सक्षम होता है।