Thursday, March 28, 2024
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किसानों का प्रदर्शन सरकार के लिए 'अन्ना हजारे' आंदोलन में बदल गया है

तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से ज्यादा समय से किसानों का विरोध प्रदर्शन वर्तमान सरकार के लिए एक 'अन्ना हजारे' आंदोलन के रूप में बदल रहा है।

IANS Reported by: IANS
Published on: February 05, 2021 8:44 IST
Anna Hazare- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO किसानों का प्रदर्शन सरकार के लिए 'अन्ना' आंदोलन में बदल गया है

नई दिल्ली: तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से ज्यादा समय से किसानों का विरोध प्रदर्शन वर्तमान सरकार के लिए एक 'अन्ना हजारे' आंदोलन के रूप में बदल रहा है। सरकार अभी तक आंदोलनकारी किसानों को शांत करने में विफल रही है और दोनों पक्षों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी समाधान नहीं निकल पाया है। सरकार को हालांकि लगा था कि किसानों द्वारा प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली के दौरान 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी में भड़की हिंसा के बाद उसे इस मुद्दे पर कुछ जन समर्थन जरूर प्राप्त हुआ है। मगर किसान गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद किसान नेता राकेश टिकैत की ओर से दिए गए भावुक बयान के बाद से किसानों के प्रति एकजुटता दिखाने और आंदोलन में शामिल होने वालों की भी कमी नहीं है। यही वजह है कि अब सरकार के लिए स्थिति सिर दर्द बन चुकी है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर व मथुरा और हरियाणा के जींद में हुई महापंचायतों में किसानों के समर्थन में भारी भीड़ उमड़ी है। अब और अधिक लोग किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली की सीमाओं की ओर बढ़ने लगे हैं। शनिवार को आयोजित सर्वदलीय बैठक में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा था कि 18 महीने के लिए तीन कृषि कानूनों को निलंबित करने का सरकार का प्रस्ताव अभी भी बरकरार है, भले ही यह किसान संगठनों द्वारा खारिज कर दिया गया है, जो कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार को जल्द से जल्द गतिरोध का हल ढूंढना है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चेतावनी दी है कि विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल सकता है।

कई राजनेता विरोध स्थलों पर प्रदर्शनकारियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने की योजना बना रहे हैं। एक समय वह भी था, जब 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान निर्धारित किए गए रास्ते को छोड़कर किसानों का एक समूह दिल्ली के अंदर घुस आया था और कई जगह पर तोड़फोड़ और पुलिस के साथ हाथापाई की घटना भी देखने को मिली थी। उस समय यह समझा जा रहा था कि हिंसा की वजह से किसानों को मिल रहा समर्थन अब कुछ कम हो जाएगा। शुरूआत में ऐसा हुआ भी, क्योंकि कुछ किसान नेताओं ने हिंसा के बाद आंदोलन से किनारा कर लिया।

मगर राकेश टिकैत हिंसा के बाद भावुक बयान देते हुए कैमरा के सामने ही रोने लगे। इसके बाद स्थिति ही बदल गई और किसानों के समर्थन में एक बार फिर से लोगों की संख्या में इजाफा होने लगा।

वर्ष 2011-12 में अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को लोकपाल विधेयक पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। क्योंकि उस समय इस मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुखर थी और संसद की कार्यवाही नहीं चलने दे रही थी। उस समय विपक्षी पार्टी भाजपा थी, जबकि अब वह सत्ता में है। एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा कि हालांकि विपक्ष इस समय उतना मजबूत नहीं है जितना कि भाजपा तब थी। एक संयुक्त विपक्ष सरकार के लिए एक खतरा जरूर पैदा कर सकता है, जिसकी एक झलक बजट सत्र के शुरू होने के दिन देखी भी गई, जब कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया।

किसान आंदोलन अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी मजबूती प्राप्त करता जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार के विपक्षी दलों ने किसान आंदोलन के समर्थन में हाल ही में राज्य भर में मानव श्रृंखला (ह्यूमन चेन) बनाई है। वहीं महाराष्ट्र और अन्य कई राज्यों में भी किसानों के समर्थन में लगातार प्रदर्शन जारी हैं। इसलिए अब कहा जा सकता है कि यह आंदोलन अखिल भारतीय स्तर पर बड़ा होता जा रहा है, जो कि सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

28 जनवरी को ऐसा लग रहा था कि गाजीपुर सीमा पर विरोध लंबे समय तक नहीं रहेगा। लेकिन टिकैत की एक भावुक अपील ने पूरी तस्वीर बदल दी है। उस समय तक, सिंघु और टिकरी सीमा को किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र माना जाता था, लेकिन टिकैत की भावनात्मक अपील के बाद अब गाजीपुर विरोध प्रदर्शनों के नए केंद्र के रूप में उभरा है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आयोजित महापंचायत ने टिकैत और किसानों के आंदोलन के बढ़ते समर्थन की ओर भी इशारा किया है। जब टिकैत से हाल ही में पूछा गया कि क्या लड़ाई अब जाटों और राज्य सरकार के बीच है, तो उन्होंने कहा, "नहीं, ऐसा नहीं है। आंदोलन में हर वर्ग का किसान है। मैंने इस आंदोलन में पहली बार जाट शब्द सुना है और मुझे इस पर आपत्ति है। यह लड़ाई किसानों और सरकार के बीच की है।"

किसान संगठन केंद्र की ओर से पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। वहीं सरकार नए कानूनों में संशोधन करने और एमएसपी पर खरीद जारी रखने का लिखित आश्वासन देने को तैयार है।

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