Tuesday, March 19, 2024
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Bhavai Review: प्रतीक गांधी की शानदार अदाकारी लेकिन जोखिम और संकोच में फंसा निर्देशन

प्रतीक गांधी की फिल्म 'भवई' का नाम पहले रावण लीला रखा गया था मगर इस पर काफी विवाद हुआ और मेकर्स को नाम चेंज करना पड़ गया।

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Updated on: October 23, 2021 13:58 IST
Bhavai Review
Photo: INSTAGRAM- PRATIK GANDHI

Bhavai Review

  • फिल्म रिव्यू: भवई
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 22 अक्टूबर 2021
  • डायरेक्टर: हार्दिक गज्जर
  • शैली: ड्रामा-रोमांस

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपनी सीरीज स्कैम 1992 को लेकर मशहूर हो चुके प्रतीक गांधी का बॉलीवुड डेब्यू रावण लीला यानी भवई के जरिए हो गया है। फिल्म का नाम पहले रावण लीला रखा गया था लेकिन इसके ट्रेलर ने माइथोलॉजी को लेकर ऐसी चिंगारी छोड़ी कि सोशल मीडिया सुलगने लगा। इसलिए फिल्म का नाम बदला गया और 'भवई' रखा गया। फिल्म काफी चुपचाप (मानों विवाद भड़कने का खतरा हो) तरीके से रिलीज की गई कि सोशल मीडिया पर इसकी सुगबुगाहट तक नहीं दिखी। फिर भी फिल्म रिलीज हुई है तो समीक्षा तो बनती ही है। तो चलिए जानते हैं कि रावण लीला उर्फ भवई क्या कहती है। 

प्रतीक गांधी की ये पहली बॉलीवुड फिल्म है तो निर्देशक हार्दिक गज्जर की भी ये पहली फिल्म है। पहली ही फिल्म में प्रतीक और हार्दिक मानों लोहा लेने के लिए तैयार बैठे दिखते हैं। गुजरात की पृष्ठभूमि और माइथोलिजकल विषय को हाथ में लेकर उन्होंने वाकई गजब की हिम्मत दिखाई है। विवाद और ट्रोल्स के युग में ऐसी हिम्मत दिखाने को समझदार लोग 'हवन करते हाथ जले' वाली कहावत से जोड़ सकते हैं लेकिन फिल्म देखने के बाद ये धारणा बदल सकती है, ऐसा मेरा मानना है। 

अक्टूबर माह में देश भर में होने वाली सदियों पुरानी रामलीला का मंचन फिल्म की प्रेम कहानी को साथ साथ नैरेट करता चलता है। ट्रेलर जब रिलीज हुआ था तो काफी हंगामा हुआ था और आऱोप लगे थे कि प्रतीक और हार्दिक मिलकर रावण का महिमामंडन कर रहे हैं। 

फिल्म की कहानी कुल इतनी है कि रामलीला में रावण बनने वाला नायक सीता बनी लड़की से प्रेम कर बैठता है। स्टेज पर माइथोलॉजिकल किरदार निभाने वाले किरदारों के बीच जब असल जिंदगी में प्रेम का अंकुर फूटता है तो ग्रामीण परिवेश में इसका एक्शन, रिएक्शन और अंजाम कैसे भीड़तंत्र तक पहुंचता है। कैसे ये किस्सा धर्म, राजनीति और ड्रामे के बीच होते हुए जनता की अदालत में पहुंच जाता है। ये दिखाने की कोशिश की गई है।

फिल्म का केंद्र है गुजरात का गांव खांखर, जहां लोग स्टेज के किरदारों को ही राम सीता और रावण मान लेते हैं। वो भगवान राम के दर्शन करने जाते हैं और गेट पर राम बनने वाला किरदार बिना गेटअप के उन्हें रोक रहा है। दरअसल हमारे देश में किसी नाटक, फिल्म या  शो में किसी चरित्र को जी रहे लोगो को कैसे लोग असल किरदार में फिट करके देखते  हैं, फिल्म यही दिखाती है। आप ऑब्जेक्टिव होकर फिल्म देखने जाएंगे तो कई मुद्दे आपकी झोली में गिर सकते हैं, मसलन रावण और सीता के बीच कुछ भावनात्मक कैसे हो सकता है। रामायण को रट चुके भारतीय समुदाय में एक बड़े तबके को वैचारिक तौर पर फिल्म से आपत्ति हो सकती है लेकिन एक सामान्य प्रेम कहानी, लोकल बैकग्राउंड, फिल्मांकन जैसी चीजों में आप इस फिल्म को ठीक ठाक पा सकते  हैं।

फिल्म में अगर सचमुच कुछ चर्चा करने लायक है तो वो है प्रतीक गांधी का किरदार। प्रतीक गांधी को राजा राम जोशी का किरदार मिला है। प्रतीक वो राजाराम बना है स्टेज पर अपने किरदार को जीता है। स्टेज से हटने के बाद आमतौर पर जैसे एक एक्टर अपनी असल जिंदगी में लौटता है, ठीक प्रतीक गांधी भी असल जिंदगी में उतरते हैं जहां सीता का किरदार करके लौटी रानी से प्रेम करने  लगते हैं। प्रतीक गांधी की अदाकारी में कसावट है, उनकी आंखें सवाल भी करती हैं औऱ जवाब खोजती भी दिखती है। फिल्म के हिट या फ्लॉप होने से प्रतीक गांधी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि उनकी अदाकारी बॉलीवुड को बता रही है कि संजीदा एक्टरों में एक नया नाम जुड़ने जा रहा है।

प्रतीक गांधी के अलावा फिल्म में ऐंद्रिता राय, अभिमन्यु सिंह, अंकुर विकल, अंकुर भाटिया, राजेश शर्मा, राजेंद्र गुप्ता आदि ने भी शानदार काम किया है। ग्रामीण अंचल की खूबसूरती को सही तरीके से उकेरा गया है। 

एक चीज और नोटिस की गई, फिल्म के ट्रेलर में कुछ संवादों पर दर्शकों की आस्था को ठेस पहुंची थी जिसके बाद हार्दिक ने उन संवादों को म्यूट कर दिया है। यानी किरदारों के होंठ तो हिलते हैं लेकिन वो क्या बोल रहे हैं वो जाहिर नहीं होता। हार्दिक ने अपनी बात कही है तो लेकिन अलग ही अंदाज में। 

बात करते हैं निर्देशन की। अगर हार्दिक ट्रेलर के दौरान उठी आपत्तियों को नजरंदाज करते तो फिल्म वैसी बनती जैसी उन्होंने सोची थी। तीखे सवाल हालांकि हजम नहीं होते लेकिन वो असर जरूर छोड़ते हैं। उन्होंने विवादित मुद्दा उठाने का जोखिम उठाया है लेकिन इस जोखिम उनका संकोच भारी पड़ गया। 

अब कई तरह के दर्शक और कई तरह की आपत्तियां। ऐसा करते करते हार्दिक  उस दर्जी की तरह हो गए जिसने हर शिकायत पर फिल्म में बिलांद कटाई छटाई कर दी। इससे न केवल कहानी में झोल हुए बल्कि  पटकथा की बुनावट पर भी फर्क पड़ा और कहानी भी वो रंग नहीं जमा पाई। रावण और सीता का प्रेम दिखाने का जोखिम तो हार्दिक ने उठाया लेकिन विरोध के संकोच के चलते वो उसे सही तरह से परदे पर उतार नहीं पाए। 

अगर आप इसे माइथोलॉजी से इतर सोचकर प्रेम कहानी के रूप में देखेंगे तो फिल्म अच्छी लगेगी।

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