Wednesday, May 15, 2024
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Explainer: क्या है शक्सगाम वैली विवाद, यहां सड़क क्यों बना रहा चीन, जानिए भारत के लिए रणनीतिक मायने

भारत की शक्सगाम वैली में चीन ने अवैध निर्माण के जरिये तनाव को बढ़ा दिया है। चीन ने शक्सगाम से चीन-पाकिस्तान-इकोनॉमिक कोरिडोर को ग्वादर पोर्ट तक जोड़ने का प्रयास किया है। इससे चीन की ही नही, बल्कि पाकिस्तान की भी भारत पर रणनीतिक बढ़त काफी मजबूत हो जाएगी। भारत ने चीन की इस हरकत का कड़ा प्रतिरोध किया है।

Dharmendra Kumar Mishra Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: May 04, 2024 15:39 IST
शक्सगाम वैली- India TV Hindi
Image Source : X शक्सगाम वैली

नई दिल्लीः गलवान घाटी के बाद अब चीन ने भारत को घेरने के लिए शक्सगाम वैली पर सड़क और अन्य तरह का निर्माण शुरू कर दिया है। जबकि शक्सगाम घाटी भारत का ही हिस्सा है। अगर चीन यहां सड़क बनाने में कामयाब होता है तो रणनीतिक रूप से यह भारत की बड़ी हार होगी। तब चीन ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान भी भारत पर रणनीतिक रूप से इस अहम घाटी के जरिये बड़ी बढ़त बनाने में कामयाब हो जाएंगे। भारत ने शक्सगाम वैली में चीन के अवैध सड़क निर्माण का कड़ा प्रतिरोध जाहिर किया है। इस हरकत को बंद नहीं करने पर भारत ने अपनी रक्षा का अधिकार सुरक्षित रखने की बात भी कही है। मगर सवाल ये है कि आखिर भारत की शक्सगाम वैली चीन के पास पहुंची कैसे, जिस पर वह अवैध निर्माण करने लगा है?

शक्सगाम घाटी कैसे पहुंची चीन के पास

डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने बताया कि शक्सगाम वैली भारत का हिस्सा है। मगर रणनीतिक रूप से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण यह घाटी वर्तमान में चीन के कब्जे में है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने 1963 में एक समझौते के साथ इस घाटी को चीन को दे दिया था। हालांकि भारत ने इस समझौते को खारिज कर दिया था। बावजूद पाकिस्तान ने भारत की इस घाटी को चीन को तोहफे में दे दिया। शक्सगाम घाटी गिलगिट-बाल्टिस्तान (पीओके) का हिस्सा है। जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था। यानि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) का हिस्सा है। 

चीन ने शक्सगाम के जरिये भारत को घेरा

लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने बताया कि चीन हुंजा वैली में पाकिस्तान पर बार-बार दबाव डाल रहा था कि यह घाटी उसको चाहिए। क्योंकि चीन हुंजा में पहले से मौजूद था और वह खुंजराब पास में चारों तरफ से हाईवे लाना चाहता था। चीन यह हाईवे वह बना चुका है, जिसे अब ड्रैगन चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीईपीसी) के जरिये ग्वादर पोर्ट तक ले गया है। इसका चीन के लिए खास रणनीतिक महत्व है। चीन खुंजराब पास से पहले से ही इस क्षेत्र में भारत के काफी करीब आ चुका था। काराकोरम हाईवे भी उनके (चीन के) पास है, जिसे चीन ने पाकिस्तान में बनाया था। अब भारत की शक्सगाम वैली में सड़क बनने से चीन और पाकिस्तान पहले से और करीब आ जाएंगे। धीरे-धीरे चीन यहां से सियाचिन में अब घुसने की कोशिश करेगा। ऐसे में चीन-पाकिस्तान रणनीतिक रूप से यहां भारत पर बढ़त बना लेंगे।यह भारत के लिए बड़ा खतरा है।

चीन रणनीतिक रूप से भारत पर होगा और हावी

उन्होंने कहा कि यहां सड़क बनने से चीन को काराकोरम हाईवे से काराकोरम पास जाना और आसान हो जाएगा। चीन ऐसे में अब भारत के करीब अपनी तरफ से भी आ सकेगा और पाकिस्तान की तरफ काराकोरम पास से भी आ सकेगा। चीन का मकसद भारत को चारों तरफ से घेर कर रखना है। यह उसमें अब पूरी तरह कामयाब होता दिख रहा है। शक्सगाम वैली से चीन को भारत को घेरना और आसान हो जाएगा। शक्सगाम वैली की चोटी तक यहां से पहुंचना चीन के लिए अब बहुत आसान हो जाएगा, जहां से वह भारत के खिलाफ मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा। इसके साथ ही यहां मिलने वाले मीठे पानी पर भी चीन का पूरा कब्जा हो जाएगा। चीन चाहता है कि भारत को मीठा पानी भी न मिले और उसे रणनीतिक रूप से यहां घेर भी दिया जाए। 

भारत ने क्या कहा

 चीन की ओर से भारत की सीमा से लगे शक्सगाम घाटी में अवैध निर्माण शुरू करने से दोनों देशों के बीच हालात फिर से तनावपूर्ण होने लगे हैं। चीन के इस अवैध निर्माण गतिविधि को लेकर भारत ने प्रेसवार्ता करके कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। चीन के इस प्रयास को भारत ने जमीनी स्थिति बदलने का प्रयास बताया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि शक्सगाम घाटी भारत की है, वहां पर चीन की कोई भी गतिविधि अस्वीकार्य है। हमारे पास अपनी रक्षा का अधिकार सुरक्षित है। 

बता दें कि  भारत ने जमीन पर स्थिति को बदलने के चीन के “अवैध” प्रयास के तहत शक्सगाम घाटी में निर्माण गतिविधियों लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बृहस्पतिवार को कहा कि शक्सगाम घाटी भारत का हिस्सा है और नई दिल्ली ने 1963 के तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते को कभी स्वीकार नहीं किया, जिसके माध्यम से इस्लामाबाद ने “गैरकानूनी” रूप से इस क्षेत्र को बीजिंग को सौंपने का प्रयास किया था।

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