तो ममता दीदी आज फिर से अपना दल-बल लेकर कोलकाता की सड़कों पर निकलीं और उनका नारा था 'बंगाल में SIR ना चोलबे।' दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मानना है कि घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें वोटर लिस्ट से बाहर करने के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा सकता है। उन्हें वोटिंग के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। इसी को लेकर ममता दीदी और समूचा विपक्ष हल्ला कर रहा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक जमाने में ममता दीदी खुद बांग्लादेशी घुसपैठियों का संसद में खड़े होकर खुलेआम विरोध करती थीं और तब की लेफ्ट सरकार पर घुसपैठियों के वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लगाती थीं। आइए इस खबर में समझते हैं कि घुसपैठियों को देश से बाहर करने की वकालत करने वालीं ममता दीदी ने कब पाला बदला और क्यों अल्पसंख्यकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगीं।
साल था 2005 और संसद सत्र चल रहा था। तब ममता बनर्जी हाथ में पेपर्स लिए संसद में पहुंचती हैं और घुसपैठियों के मुद्दे को 'Very Serious Matter' बताते हुए चर्चा की मांग करती हैं। लेकिन जब तत्कालीन डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल अनुमति नहीं देते हैं तो ममता दीदी बिफर पड़ती हैं। लगातार टोकने के बाद भी वह चुप नहीं होती हैं और सीधे वेल तक पहुंच जाती हैं। ममता दीदी चर्चा के लिए घुसपैठियों के मुद्दे पर जो पेपर साथ लाई थीं, उन्हें फाड़ती हैं और हवा में उछाल देती हैं। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की तत्कालीन CPIM सरकार पर आरोप भी लगाए कि बांग्लादेशी घुसपैठियों से उन्हें फायदा हो रहा है। घुसपैठिये लेफ्ट पार्टियों का वोटबैंक बने हुए हैं और तभी वह उनके खिलाफ बोलने तक नहीं देते हैं।

'SIR' का मकसद क्या है?
सोचिए ये वही ममता दीदी हैं जो आज अपनी पार्टी के नेताओं के साथ कोलकाता की सड़कों पर उतरी हैं और SIR का विरोध कर रही हैं। पहले तो ये जान लीजिए कि SIR असल में है क्या। SIR मतलब स्पेशल इंटेसिव रिवीजन, SIR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी पात्र नागरिक ही इलेक्टोरल रोल में शामिल हों ताकि वे अपने वोटिंग के अधिकार का इस्तेमाल कर पाएं। कोई भी अपात्र वोटर मतदाता सूची में नहीं होना चाहिए। SIR के तहत सभी वोटर्स का वेरिफिकेशन होता है। इसमें जो वोटर मर चुके हैं या किसी दूसरे शहर के मतदाता बन चुके हैं या फिर फर्जी वोटर हैं, उन्हें वोटर लिस्ट से हटा दिया जाता है। बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले SIR संपन्न हुआ है।
किन राज्यों में शुरू हुआ 'SIR'?
बिहार में SIR की सफलता के बाद चुनाव आयोग ने इसे 28 अक्टूबर, 2025 से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू कर दिया है। इनमें अंडमान एंड निकोबार आईलैंड, पुडुचेरी, गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और लक्षद्वीप शामिल हैं। इसके तहत 51 करोड़ वोटर्स को कवर किया जाएगा। SIR के वेरिफिकेशन में बर्थ सर्टिफिकेट, पहचान पत्र, पासपोर्ट और जाति प्रमाणपत्र समेत 12 तरीके के दस्तावेज मांगे जाते हैं। इससे वोटर्स का सत्यापन किया जाता है। अब वापस आते हैं कि जो ममता दीदी घुसपैठियों का खुला विरोध करती थीं, वह अब उस SIR प्रक्रिया की खिलाफत कर रही हैं जिसके तहत घुसपैठियों और फर्जी वोटर्स को वोटर लिस्ट से बाहर करने में मदद मिलेगी। इसके लिए पहले ममता दीदी की राजनीति समझ लीजिए।

ममता पर क्यों बढ़ा मुस्लिमों का भरोसा?
दरअसल, साल 2006 में जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी तो उसमें दिखाया गया था कि कैसे मुस्लिमों की दशा खराब है। चूंकि 1977 यानी पिछले 29 साल से पश्चिम बंगाल से लेफ्ट की सरकार थी तो मुस्लिमों ने उसे ही अपनी गरीबी और पिछड़ेपन का जिम्मेदार माना। इसके अलावा, नंदीग्राम और सिंगूर की घटना भी लेफ्ट सरकार की बड़ी गलती साबित हुए। यहां भूमि अधिग्रहण और औद्योगीकरण को लेकर जो बवाल हुआ, उसको ममता दीदी ने हाथों-हाथ लिया और मुस्लिम वोटर्स का साथ हासिल किया। चूंकि नंदीग्राम में पुलिस ने खूब सख्ती दिखाई थी तो उसके विरोध में ममता को वहां के लोगों का साथ मिला।
जब ममता ने समझी मुस्लिम वोटबैंक की ताकत
इसके बाद ममता बनर्जी ने लगातार ग्राउंड लेवल पर काम किया। भूमि अधिग्रहण के नाम पर जमीन छीनने का विरोध किया और मुस्लिमों के दिल में जगह बनाई। चूंकि लंबे वक्त से पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी तो बड़ी संख्या में लेफ्ट से ऊब चुके मुस्लिम वोटर्स ने 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता दीदी का साथ दिया। लेफ्ट का किला पश्चिम बंगाल में ढह गया और ममता बनर्जी पहली बार पश्चिम बंगाल की सीएम बन गईं। तब ममता बनर्जी ने समझा कि उन्हें मुस्लिमों का एकमुश्त वोट मिल सकता है। इसीलिए तभी से पश्चिम बंगाल के हर चुनाव में मुस्लिम वोटर्स ने ना कभी ममता बनर्जी का साथ छोड़ा और ना ही ममता ने कभी उनके खिलाफ जाने वाला कोई मुद्दा उठाया।
जो ममता बनर्जी साल 2005 में संसद में खड़े होकर ये समझाना चाहती थीं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के वोटर लिस्ट में होने से भारतीय अधिकार से वंचित रह जा रहे हैं। घुसपैठिये विधायक-सांसद बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं। लेकिन जब उन्हें मुस्लिम वोटर्स ने हाथों-हाथ लिया और एकमुश्त वोट देना शुरू किया। कांग्रेस-लेफ्ट समेत सभी पार्टियों को छोड़कर जब उनके पास मुस्लिम वोट आया तो उन्होंने घुसपैठियों का विरोध करना बंद कर दिया। और आज वही ममता बनर्जी SIR की खिलाफत कर रही हैं। SIR की प्रक्रिया पर शक जता रही हैं कि घुसपैठियों को वोटर लिस्ट से हटाने के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा सकता है। ममता बनर्जी पर ये भी आरोप लगते हैं कि उनके मुस्लिम वोटबैंक में बांग्लादेशी घुसपैठिये भी हो सकते हैं, जिनके वोटर लिस्ट से हटने से उनके वोटबैंक को नुकसान होगा। और शायद इसी वजह से ममता बनर्जी SIR के विरोध में हैं।
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