Wednesday, May 15, 2024
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Indian Railways : आमने-सामने आए भारतीय रेलवे और चीन, आखिर क्या है पूरा विवाद

Indian Railway: भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा पर तनाव कई दिनों से जारी है। दोनों देशों की सरकारों ने कई बार बैठक की लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। इसी बीच वे एक मेगा -471 करोड़ रुपये के रेलवे कॉन्‍ट्रैक्‍ट के लिए भी आमने-सामने है।

Ravi Prashant Written By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Updated on: August 27, 2022 19:13 IST
Indian Railway- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Indian Railway

Highlights

  • चीन के लिए यह अनुबंध कई मायने में महत्वपूर्ण था
  • इस काम को 2016 में शुरू किया गया था
  • महज दो सालों में 48 प्रतिशत काम हो गया है

Indian Railway: भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा पर तनाव कई दिनों से जारी है। दोनों देशों की सरकारों ने कई बार बैठक की लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। इसी बीच वे एक मेगा -471 करोड़ रुपये के रेलवे कॉन्‍ट्रैक्‍ट के लिए भी आमने-सामने है। कानपुर और दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन के बीच 417 किलोमीटर के खंड में सिग्नलिंग और दूरसंचार प्रणाली स्थापित करने के लिए चीनी सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनी सीआरएससी रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टीट्यूट ग्रुप को दिए गए कॉन्‍ट्रैक्‍ट को जून 2020 में रद्द कर दिया था। चीनी पक्ष का तर्क है कि कॉन्‍ट्रैक्‍ट को गलत तरीके से तोड़ा गया है आरोप लगाया कि डीएफसीसीआईएल ने कॉन्‍ट्रैक्‍ट में समाप्ति के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। अनुबंध की शर्तों के अनुसार आईसीसी के नियमों के तहत एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है। 

क्या चीन के लिए महत्वपूर्ण कॉन्‍ट्रैक्‍ट था?

चीन के लिए यह अनुबंध कई मायने में महत्वपूर्ण था। यह भारत में रेल क्षेत्र के महत्वपूर्ण और सुरक्षा-संवेदनशील, सिग्नलिंग और दूरसंचार कार्यों में चीन का सबसे बड़ा कॉन्‍ट्रैक्‍ट था, जिसे उसने 2016 में हासिल किया था। यह डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना में एक सहायक था, जिसकी पश्चिमी शाखा को जापानी वित्तीय और तकनीकी सहायता के माध्यम से फ़ाइनैन्स किया जा रहा है। भारत अपने इस फ्रेट कॉरिडोर का विस्तार करना चाहता है, इस काम से भारत में भविष्य में इसी तरह के कार्यों के लिए बोली लगाने के लिए चीनी पक्ष को और फायदा होता। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों सेनाओं के आमने-सामने होने के कारण भारत द्वारा अनुबंध की समाप्ति से चीनियों पर एक बड़ा वार तो हुआ है लेकिन अधिकारियों ने कहा कि सीमा पर तनाव होने के कारण ये फैसला नहीं लिया गया है। 

भारत ने ये कॉन्‍ट्रैक्‍ट तोड़ा क्यों?
भारतीय अधिकारियों ने बताया कि कॉन्‍ट्रैक्‍ट को समाप्त करने के निर्णय को दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव बिल्कुल नहीं था। उन्होंने आगे बताया कि काम काफी स्लो चल रहे थे। इस काम को 2016 में शुरू किया गया था, 2020 तक केवल 20 प्रतिशत ही काम हुआ था। चीनी कंपनी जमीन पर पर्याप्त संसाधन जुटाने में असमर्थ थे क्योंकि उनके पास कोई स्थानीय गठजोड़ नहीं था। परिणामस्वरूप, डीएफसीसीआईएल के अधिकारियों द्वारा परियोजना स्थलों का दौरा करने से वे अक्सर भड़क जाते थे और इंजीनियर और अधिकृत कर्मचारी कई मौकों पर अनुपस्थित पाए जाते थे। भारतीय अधिकारियों ने यह भी कहा कि चीनी संगठन उनके साथ तकनीकी दस्तावेज साझा करने में काफी हिचकते थे, जैसे तर्क डिजाइन और इंटरलॉकिंग इत्यादि। यह कॉन्‍ट्रैक्‍ट की शर्तों का हिस्सा था क्योंकि हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता थी जिसे हमारे अन्य सिस्टमों के साथ मूल रूप से मजबुत किया जा सके। इसलिए हमें तकनीकी दस्तावेजों और सक्रिय सहयोग की जरूरत थी, जो नहीं हो रहा था। 

चीनियों को खदेड़ने के बाद क्या हुआ?
कॉन्‍ट्रैक्‍ट को फिर से निविदा दी गई। इसके बाद सीमेंस के नेतृत्व में एक भारतीय संघ 494 करोड़ रुपये में काम करने के लिए तैयार हो गया था। अब तक 48 फीसदी काम महज दो सालों में हो गया है। चीन अब इस मामले को सिंगापुर में इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में ले गया है। इसने दावा किया है कि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (DFCCIL) ने किए गए काम के हिस्से के लिए भुगतान नहीं किया। अधिकारियों ने कहा कि इसने विभिन्न मुद्दों का हवाला दिया है जो भारत में काम के दौरान उसके नियंत्रण से बाहर थे। सीआरएससी ने पहले हर्जाने में 279 करोड़ रुपये का दावा दायर किया है और बाद में इसे संशोधित कर 443 करोड़ रुपये कर दिया। वह चाहता है कि उसकी बैंक गारंटी वापस की जाए, जिसे डीएफसीसीआईएल ने जब्त कर लिया है।

एक बैंक गारंटी एक जमा राशि है जिसे एक ठेकेदार को अनुबंध हासिल करने के लिए पूर्व शर्त के रूप में रखना होता है। दावा की गई राशि में विभिन्न जब्त राशियों पर ब्याज, विभिन्न प्रकार के ओवरहेड्स के दावे और संविदात्मक  आदि शामिल हैं। इसके जवाब में भारतीय पक्ष ने 234 करोड़ रुपये का प्रति-दावा दायर किया है, जिसे शुरू में दावा किए गए 71 करोड़ रुपये से संशोधित किया गया था। DFCCIL ने बैंक गारंटी की जब्ती के नियमितीकरण के अलावा, अपने मोबिलाइजेशन एडवांस की वसूली, प्रतिधारण राशि और टर्मिनेशन के तहत शेष राशि के आधार पर अपना दावा किया है।

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