Monday, May 13, 2024
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Rajat Sharma’s Blog : विपक्ष को समझना होगा कि मोदी को क्यों मिलता है मतदाताओं का समर्थन

मोदी अभी से ही गांवों में बीजेपी को मजबूत करने की रणनीति बना रहे हैं। उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। यही बात मोदी को दूसरे नेताओं से अलग बनाती है। 

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 12, 2022 17:28 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में बीजेपी की शानदार जीत के तुरंत बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात की ओर रुख किया है, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। उन्होंने अभी से इसकी तैयारी शुरू कर दी है और पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। 

चार राज्यों में जीत का जश्न मनाने और दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बाद अगले ही दिन पीएम मोदी अहमदाबाद पहुंचे और वहां रोड शो किया। उन्होंने बीजेपी के सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों और पंचायत महासम्मेलन को भी संबोधित किया। ऐसे समय में जब बाकी नेता यूपी, पंजाब के चुनाव प्रचार की थकान उतारने में लगे हैं, मोदी पूरी ऊर्जा से अपने अगले अभियान में जुट गए। 

नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और गुजरात में पिछले 27 साल से बीजेपी की सरकार है।  मोदी की जगह कोई और नेता होता तो ऐसे राज्य में चुनाव की ज्यादा चिंता नहीं करता लेकिन मोदी ने अभी से ही गुजरात के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। वे किसी भी चुनौती को हल्के में नहीं लेते। 

मोदी की गुजरात यात्रा का दृश्य उनकी ऊर्जा का एक बड़ा प्रमाण है। एयरपोर्ट से बीजेपी ऑफिस तक खुली जीप में सवार होकर उन्होंने मेगा रोड शो किया। दस किलोमीटर लंबे रोड शो के दौरान दोनों ओर जयकारे लगाने वाले समर्थक थे। पार्टी दफ्तर में उन्होंने बीजेपी के सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों और राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों को गुजरात चुनावों के लिए रोडमैप दिया। 

प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद के GMDC मैदान में गुजरात पंचायत महासम्मेलन 'आपनु गाम, आपनु गौरव' (मेरा गांव, मेरा गौरव) को संबोधित किया।  इस सम्मेलन में ग्राम पंचायत के एक लाख से ज्यादा चुने हुए प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। मोदी ने इन पंचायत प्रतिनिधियों के साथ गांवों में विकास को लेकर चर्चा की। शनिवार को मोदी गुजरात के ग्यारहवें खेल महाकुंभ की शुरुआत करेंगे। राज्य के 500 से ज्यादा शहरों और कस्बों में खेल महाकुंभ का आयोजन होगा। इस खेल महाकुंभ के लिए 47 लाख से ज्यादा युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है।

नरेन्द्र मोदी के विरोधी परेशान हैं कि मोदी थकते नहीं हैं। मोदी 72 साल के होने जा रहे हैं लेकिन उनकी शारीरिक चुस्ती और स्टेमिना ने विरोधियों को हैरान कर दिया है। मोदी चुनाव जीतने के लिए ना सिर्फ मेहनत करते हैं बल्कि एक-एक कदम सोच समझ कर उठाते हैं। उनके अंदर दूरदर्शिता है। मोदी कितनी दूर की सोचते हैं इसका एक उदाहरण अहमदाबाद में नजर आया जब उन्होंने गुजरात के गांव-गांव से एक लाख से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधियों को बुलाया और उनके साथ लंबी बात की। मोदी ने उन्हें गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के कई सुझाव दिए। 

अगर आप पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि मोदी ने पंचायत के नेताओं के साथ इतना समय क्यों बिताया। दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में कम वोट मिले थे। कुल 99 सीटें आईं थीं जो बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 7 सीटें ज्यादा हैं। बीजेपी को जिन 16 सीटों का नुकसान हुआ था वो ग्रामीण इलाकों की सीटें थी। कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं थीं जो 2012 में मिली सीटों की तुलना में18 ज्यादा थीं। 2017 में कांग्रेस के वोटों में यह इजाफा ग्रामीण इलाकों में मिले वोटों की वजह से हुआ था। मोदी इस बात को नहीं भूले कि पिछले चुनाव में बीजेपी के हाथ से गुजरात के ग्रामीण इलाकों की 14 सीटें फिसल गई थीं और ये कांग्रेस के खाते में चली गई थीं।

इसलिए मोदी इस कमी को दूर करने की तैयारी में जुट गए हैं। अभी से ही गांवों में बीजेपी को मजबूत करने के लिए रणनीति बना रहे हैं। उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। यही बात मोदी को दूसरे नेताओं से अलग बनाती है। 

मोदी यूपी समेत चार राज्यों में चुनाव जीतकर भी अगले चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं पर विरोधी दलों के नेता चुनाव हारकर भी सिर्फ बयानबाजी, ट्वीट करने और ब्लेम गेम में लगे हैं। विपक्ष के नेता न तो हार स्वीकार करने को तैयार हैं और न ही अगली लड़ाई की तैयारी करना चाहते हैं।

सबसे पहले मैं आपको समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का उदाहरण देता हूं। चुनाव के दौरान अखिलेश यादव बहुत आक्रामक नजर आए। 'अखिलेश आ रहे हैं' का नारा दिया था। रोज दावा करते थे कि इस बार उनकी सरकार बनने वाली है। 400 सीटें जीतेंगे। अखिलेश कहते थे कि 10 मार्च को योगी आदित्यनाथ वापस गोरखपुर अपने मठ में चले जाएंगे। लेकिन चुनाव में हार के बाद अखिलेश कैमरे के सामने नहीं आए, न ही अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए बाहर आए। शुक्रवार सुबह उन्होंने एक ट्वीट किया-"उप्र की जनता को हमारी सीटें ढाई गुना व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद! हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है। भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा. आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है. बाक़ी कुछ दिनों में हो जाएगा"। 

अखिलेश यादव ने यह नहीं बताया कि चुनाव में भारी जीत के उनके दावों का क्या हुआ लेकिन अखिलेश ने जो बात नहीं कही उसे ममता बनर्जी ने कह दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि यूपी में बीजेपी की जीत, सुशासन की नहीं... प्रचार की है । ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि अखिलेश यादव का वोट प्रतिशत बढ़ गया तो फिर बीजेपी कैसे जीत गई ? ममता बनर्जी ने इल्ज़ाम लगाया कि अखिलेश यादव को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में धांधली करके हराया गया। 

ममता बनर्जी ने कहा कि अगर विपक्ष को एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराना है, तो उसे कांग्रेस के भरोसे रहना छोड़ना होगा। शिवसेना नेता संजय राउत ने यूपी में समाजवादी पार्टी की हार के लिए बीएसपी प्रमुख मायावती और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी को जिम्मेदार बताया। वहीं मायावती ने मुस्लिम मतदाताओं पर बीएसपी को वोट नहीं देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा- मुस्लिम मतदाता अपनी इस गलती के लिए आनेवाले समय में पछताएंगे। 

ये नेता सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहें लेकिन सच्चाई यह है कि बीजेपी से हारने के बाद भी विपक्षी दल अपनी कमज़ोरियों पर आत्ममंथन करने को तैयार नहीं हैं। वे अपनी ग़लतियां मानने को राज़ी नहीं हैं। 

यूपी में बीजेपी की जीत के मुख्य कारणों के बारे में मैं आपको बताता हूं। सात चरणों में हुए इस चुनाव में मोदी और योगी की जोड़ी शुरू से ही इस बात को लेकर स्पष्ट थी कि उन्हें अपने प्रचार को किन बातों पर केंद्रित रखना है। पहले राउंड से ही बीजेपी ने क़ानून व्यवस्था को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। अपराधियों के ख़िलाफ़ योगी का एक्शन, माफ़िया पर चलाए गए बुल्डोज़र को बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बनाया। 

इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं, जैसे- उज्जवला योजना, पीएम आवास योजना, पेयजल, बिजली कनेक्शन, किसान सम्मान निधि के साथ ही कोरोना महामारी के दौरान ग़रीबों को मुफ़्त राशन जैसी योजनाओं का भी उल्लेख किया जिसने ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं को बीजेपी से जोड़ा।

इसके अलावा, योगी आदित्यनाथ ने अपनी हिंदुत्ववादी नेता की छवि को भी लगातार बनाए रखा। अक्सर अयोध्या का दौरा करते रहे और वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पर भी तेजी से काम किया। इससे उनकी हिंदुत्ववादी नेता की छवि और मजबूत हुई। बीजेपी का मज़बूत संगठन भी इस जीत में बहुत काम आया। चुनाव के दौरान पार्टी ने प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए 10 कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया गया। हर बूथ को मज़बूत बनाने का यह नुस्खा कितना कारगर रहा यह यूपी के चुनाव परिणाम से स्पष्ट है। 

वहीं दूसरी ओर कमज़ोर विपक्ष ने बीजेपी का काम आसान कर दिया। विपक्ष लगातार नेगेटिव कैंपेन में लगा रहा। चुनाव से पहले विपक्ष के नेता पूरी सीन से नदारद रहे। कोरोना महामारी के दौरान कहीं जमीन पर नजर नहीं आए। यह सब बातें विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ गईं और बीजेपी ने इन्हीं बातों के आधार पर बाज़ी एक बार फिर अपने नाम कर ली। बीजेपी ने चुनाव से पहले जो गठबंधन बनाए वो भी बहुत सफल साबित हुए। बीजेपी की सहयोगी अपना दल 12 सीट जीतकर राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 

वहीं बीजेपी की जीत में जाति, धर्म से ऊपर उठकर महिला मतदाताओं ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। महिला मतदाताओं ने खुले तौर पर यह कहा कि कोरोना महामारी के दौरान पिछले दो साल में मोदी और योगी सरकार के मुप्त राशन से उन्हें अपना जीवन यापन करने में बहुत मदद मिली। 

आपको याद होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के नेता कहते थे कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में बीजेपी साफ हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस लखीमपुर खीरी की घटना ( भाजपा नेता के बेटे के वाहन ने प्रदर्शनकारियों को कुचल दिया था) को लेकर बहुत हंगामा किया गया उस इलाके में बीजेपी सभी आठ सीटों पर जीत गई। फिर यह भी दावा किया जा रहा था कि बीजेपी को छोड़कर अखिलेश के साथ गए ओबीसी नेता (ओपी राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी) योगी को हरा देंगे। हुआ इसका उल्टा। स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी अपनी भी सीट नहीं बचा पाए।  ऐसे कितने सारे उदाहरण हैं। 

मेरा कहना यह है कि चुनाव में हार-जीत होती रहती है। वोट प्रतिशत घटता-बढ़ता रहता है। लेकिन अगर विरोधी दलों के नेता इसके लिए ईवीएम को दोषी ठहराते रहेंगे और बीजेपी के प्रचार को दोष देते रहेंगे तो फिर वह हार की के सही कारणों को कभी समझ नहीं पाएंगे। और जब तक मोदी की जीत के कारणों को नहीं समझेंगे तो फिर मोदी को कभी हरा नहीं पाएंगे। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 11 मार्च, 2022 का पूरा एपिसोड

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