Friday, April 19, 2024
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अयोध्या मामला: SC के फैसले पर जमीयत उलेमा हिन्द ने दाखिल की रिव्यू पिटिशन, अरशद मदनी ने दीं ये दलीलें

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिये सोमवार को एक याचिका दायर की गई। यह याचिका जमीयत उलेमा हिन्द ने दाखिल की है।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 02, 2019 22:10 IST
Jamiat Ulema-e-Hind President Maulana Syed Arshad Madani- India TV Hindi
Image Source : PTI Jamiat Ulema-e-Hind President Maulana Syed Arshad Madani

लखनऊ: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिये सोमवार को एक याचिका दायर की गई। यह याचिका जमीयत उलेमा हिन्द ने दाखिल की है। इसके अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि “हमने फैसले को ही आधार बनाते हुए संविधान द्वारा दिए गई विकल्पों के मद्देनजर पुनर्विचार याचिका में अपनी बात रखी और हमें पूर्णत: उम्मीद है कि जिस तरह माननीय कोर्ट ने यह माना है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई और न ही किसी मंदिर की भूमि पर बनी है, उसी तर्ज पर हमें न्याय मिलेगा।” 

अरशद मदनी की दलील नंबर-1

मौलाना अरशद मदनी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि “सुप्रीम कोर्ट जब ये कह रहा है कि मंदिर की जगह पर मस्जिद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जब कह रहा है कि मस्जिद में मूर्ति रखना गुनाह है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि मस्जिद को शहीद किया गया। लेकिन, फैसला इसके उलट है। हमने आज अपनी रिव्यू पेटिशन दाख़िल की है। ये क़ानून के तहत जो अवसर है, उसका इस्तेमाल किया। जमीयत उलेमा हिंद की वर्किंग कमेटी का ये फैसला है।”

अरशद मदनी की दलील नंबर-2

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि “हम कोर्ट गए ही इस बुनियाद के तहत कि माहौल ना बिगड़े। हम सड़क पर नहीं गए। इससे माहौल ख़राब नहीं होगा।”

अरशद मदनी की दलील नंबर-3

इस फैसले के अंदर मथुरा और काशी के लिए जो दरवाज़ा खुला था उस दरवाज़े को सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दिया है। हम अपनी अपील के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे है। पिटीशन स्वीकार होगी या नहीं ये कोर्ट का अधिकार है।

अरशद मदनी की दलील नंबर-4

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ हम आए ही इस बुनियाद पर थे कि फैसला भावनाओं पर नहीं कानूनी आधार पर होना चाहिए। लेकिन, यहां भी फैसला धार्मिक भावनाओं के आधार पर हुआ, कानूनी आधार पर नहीं।

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