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Devshayani Ekadashi 2019: आज देवशयनी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Devshayani Ekadashi 2019: 12 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के साथ शुक्रवार का दिन है। धार्मिक रुप से इस दिन का बहुत ही अधिक महत्व है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा के बारें में।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 11, 2019 23:36 IST
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Devshayani Ekadashi 2019: 12 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के साथ शुक्रवार का दिन है। धार्मिक रुप से इस दिन का बहुत ही अधिक महत्व है। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में जाएगे। जिसके साथ ही हर कुछ काम होना बंद हो जाएगे। माना जाता है कि इस व्रत को करने से हर काम में सफलता के साथ हर कष्ट से निजात मिलता है। इसे 'देवशयनी', 'योगनिद्रा' या पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जानें देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, महत्व और व्रत कथा के साथ महत्व के बारें में।

देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 जुलाई 2019 को रात 1 बजकर 02 मिनट से.
एकादशी तिथि समाप्त: 13 जुलाई 2019 को रात 12 बजकर 31 मिनट तक.
पारण का समय: 13 जुलाई 2019 को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से सुबह 8 बजकर 33 मिनट तक।

देवशयनी एकादशी में बन रहा है शुभ नक्षत्र के साथ योग
एकादशी के दिन दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक विशाखा नक्षत्र चलेगा।  इसके साथ ही सबसे काम बनाने वाला योग सर्वार्थसिद्ध योग दोपहर बाद 03:57 से सूर्योदय तक रहेगा। इसके साथ ही रवि योग भी बन रहा है। जिसके कारण इस पूजा का फल चौगुना मिलेगा।

देवशयनी एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा
एकादशी के दिन सबसे पहले नित्य कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद  घर में गंगाजल से छिड़काव करें। घर के पूजा स्थल या किसी पवित्र स्थान पर भगवान श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या कांसे की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद षोडशोपचार से उनकी पूजा करें और भगवान विष्णु को पीतांबर से सजाएं। फिर व्रत कथा सुननी चाहिए और आरती कर के प्रसाद बांटें।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा
पुराणों के मुताबिक जब भगवान विष्णु ने राजा बलि का पाताललोक का राजा बना दिया और वर मांगने को बोला तो बलि ने उनसे पाताल लोक में निवास करने का आग्रह किया। तब से चार महीने के लिए देवता पाताललोक में चले जाते हैं। इस दौरान किसी भी तरह का मांगलिक कार्य निषेध है। दूसरी कथा के मुताबिक अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी को शंखासुर राक्षस मारा गया था तब से इस दिन से भगवान चार महीने तक क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं।

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