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भारत की अर्थव्यवस्था पर फिच का बढ़ा भरोसा, 2028 तक औसत GDP ग्रोथ अनुमान इतना बढ़ाया

फिच रेटिंग्स ने ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक में शामिल 10 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए अगले पांच वर्षों में अपने मध्यम अवधि के संभावित जीडीपी अनुमानों को थोड़ा कम कर दिया है।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Published : May 22, 2025 13:02 IST, Updated : May 22, 2025 13:02 IST
फिच रेटिंग्स ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी की वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 6.4 प्रतिशत कर
Photo:AP फिच रेटिंग्स ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी की वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया था।

भारत की अर्थव्यवस्था पर रेटिंग एजेंसी फिच का भरोसा बढ़ा है। फिच ने गुरुवार को 2028 तक भारत की औसत वार्षिक वृद्धि क्षमता को बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है। नवंबर 2023 में यह 6.2 प्रतिशत अनुमानित थी। पीटीआई की खबर के मुताबिक, फिच ने पांच साल आगे के संभावित जीडीपी अनुमानों को अपडेट करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2023 की रिपोर्ट के समय की अपेक्षा अधिक मजबूती से वापस लौटी है, जो महामारी के झटके से कम प्रतिकूल घायल प्रभाव का संकेत देती है।

10 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुमान थोड़ा घटाया

खबर के मुताबिक, अपने अपडेट किए गए पूर्वानुमान में, फिच ने 2023-2028 के लिए भारत की औसत वृद्धि अनुमान को 6.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया। इसने कहा कि फिच रेटिंग्स ने ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक में शामिल 10 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए अगले पांच वर्षों में अपने मध्यम अवधि के संभावित जीडीपी अनुमानों को थोड़ा कम कर दिया है।

इसमें कहा गया है कि हमारा नया अनुमान जीडीपी भारित आधार पर 3.9 प्रतिशत की ग्रोथ दर्शाता है, जो नवंबर 2023 में प्रकाशित हमारे पिछले आकलन में 4 प्रतिशत से कम है। साथ ही कहा गया है कि हमारा अभारित औसत ईएम10 संभावित वृद्धि अनुमान 3.1 प्रतिशत है, जो 2023 की रिपोर्ट से थोड़ा अधिक है।

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए घटाया था अनुमान

इससे पहले फिच रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत के सकल घरेल उत्पाद (जीडीपी) के वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया था। रेंटिंग एजेंसी फिच ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के अपने विशेष तिमाही अपडेट में कहा, अमेरिकी व्यापार नीति के बारे में पूरे विश्वास के साथ कुछ भी कहना मुश्किल है। व्यापक स्तर पर नीति अनिश्चितता, व्यापार निवेश की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रही हैं। शेयर की कीमतों में गिरावट से घरेलू संपत्ति कम हो रही है और अमेरिकी निर्यातकों को जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

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