Tuesday, February 11, 2025
Advertisement
  1. Hindi News
  2. धर्म
  3. त्योहार
  4. ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में क्या होता है अंतर? न करें इन्हें एक समझने की गलती

ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में क्या होता है अंतर? न करें इन्हें एक समझने की गलती

महाकुंभ में लाखों साधु, संन्यासी, ऋषि और मुनि इकट्ठा हो रहे हैं। जो सालों की तपस्या के बाद संगम तट पर अमृत स्नान में शामिल होकर नदी की पवित्रता बढ़ा रहे हैं। पर क्या आप जानते हैं कि ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी भी अंतर होता है...

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 17, 2025 15:44 IST, Updated : Jan 17, 2025 15:47 IST
Mahakumbh 2025
Image Source : FILE PHOTO ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर होता है

भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि, मुनियों का विशेष महत्व रहा है। ऋषि, मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही समाज और लोगों का कल्याण करते थे। ऋषि, मुनि, साधु या फिर संन्यासी सभी धर्म के प्रति समर्पित शख्स होते हैं जो सांसारिक मोह के बंधन से दूर जनहित कल्याण हेतु निरंतर अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हेतु साधना, तपस्या और मनन आदि करते हैं। हालांकि ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में कुछ अंतर होते हैं, आइए जानते हैं क्या?

कौन होते हैं ऋषि?

भारत में सदियों से ऋषि परंपरा का विशेष महत्व रहा है। आज भी हमारे समाज में किसी न किसी को ऋषि का वंशज माना जाता है। ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वह व्यक्ति जो अपने विशिष्ट, विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक परंपरा का अध्ययन, विलक्षण शब्दों के दर्शन, उनके गूढ़ अर्थों को जाना और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उस ज्ञान को लिखकर समाज को बताए, वे ऋषि कहलाए। 

मुनि किसे कहते हैं?

वहीं, मुनि भी एक तरह के ऋषि ही होते थे पर उनमें राग द्वेष का अभाव होता है। भगवत गीता में मुनियों के बारे में कहा गया है जिनका चित्त दुःख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से पर रहते हैं, ऐसे निश्चल बुद्धि वाले संत मुनि कहलाते हैं। मुनि शब्द मौनी यानी शांत या न बोलने वाले से है। ऐसे ऋषि जो एक विशेष अवधि के लिए मौन या बहुत कम बोलने का शपथ लेते थे उन्हीं मुनि कहा जाता था। 

कौन होते हैं साधु?

किसी भक्ति विषय की साधना करने वाले शख्स को साधु कहा जाता है। प्राचीन काल में कई व्यक्ति समाज से अलग होकर या समाज में ही रहकर किसी विषय पर साधना करते थे और उस विषय में विशिष्ट ज्ञान हासिल कर लेते हैं, साधु कहलाते हैं। विषय को साधने या उसकी साधना करने के कारण ही उन्हें साधु कहा गया। इसके अलावा, साधु का अर्थ सकारात्मक साधना करने वाला व्यक्ति हमेशा सरल, सीधा और लोगों की भलाई करने वाला भी होता है। आम बोलचाल में साध का अर्थ सीधा और दुष्टता से हीन होता है। संस्कृत में साधु शब्द से तात्पर्य है सज्जन व्यक्ति।

कौन कहलाते हैं संन्यासी?

माना जाता है कि संन्यासी धर्म की परम्परा प्राचीन हिन्दू धर्म से जुड़ी नहीं है। वैदिक काल में किसी संन्यासी का कोई जिक्र नहीं है। संभवतः संन्यासी या संन्यास की धारणा जैन और बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद आई जिसमें संन्यास की अपनी अलग मान्यता है। हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य को महान संन्यासी कहा गया है। संन्यासी शब्द संन्यास से निकला हुआ है जिसका अर्थ त्याग करना होता है। अतः त्याग करने वाले को ही संन्यासी कहा जाता है। संन्यासी अपनी पूरी संपत्ति, गृहस्थ जीवन का त्याग करता है या फिर अविवाहित रहने का प्रण लेता है, समाज और सांसारिक जीवन का त्याग करता है और योग ध्यान करते हुए अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Festivals News in Hindi के लिए क्लिक करें धर्म सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement