अपने परामर्श पत्र में नियामक ने उच्च जोखिम वाले ऐसे एफपीआई से बारीकी से जानकारी प्राप्त करने का प्रस्ताव किया है जिनका निवेश किसी एक कंपनी में केंद्रित हैं।
मई में शेयरों के अलावा एफपीआई ने ऋण या बॉन्ड बाजार में भी 1,057 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
इससे पहले अप्रैल में विदेशी निवेशकों ने शेयरों में 11,630 करोड़ रुपये और मार्च में 7,936 करोड़ रुपये डॉले थे।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, एफपीआई ने दो से पांच मई के दौरान चार कारोबारी सत्रों में भारतीय शेयरों में शुद्ध रूप से 10,850 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
निवेश सलाहकार कंपनी राइट रिसर्च की संस्थापक सोनम श्रीवास्तव ने कहा कि आगे चलकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीति के कारण एफपीआई प्रवाह में उतार-चढ़ाव रहेगा।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में उनकी निकासी की रफ्तार धीमी होकर 37,632 करोड़ रुपये रही है।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, एफपीआई ने मार्च में भारतीय शेयरों में शुद्ध रूप से 7,396 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इससे पहले फरवरी में उन्होंने 5,294 करोड़ रुपये और जनवरी में 28,852 करोड़ रुपये की निकासी की थी।
मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि इस निवेश की वजह लंबी अवधि में भारतीय शेयर बाजारों की बेहतर संभावनाएं हैं।
दिसंबर में एफपीआई ने शेयरों में 11,119 करोड़ रुपये और नवंबर में 36,238 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था।
मॉर्निंगस्टार की एक रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू शेयरों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का निवेश दिसंबर, 2022 के अंत में घटकर 584 अरब डॉलर रह गया, जो सालाना आधार पर 11 प्रतिशत कम है।
इस साल की शुरुआत से 10 फरवरी तक एफपीआई शुद्ध बिकवाल रहे थे। इस दौरान उन्होंने 38,524 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। इसमें जनवरी में उनके द्वारा की गई 28,852 करोड़ रुपये की बिकवाली भी शामिल है।
चीनी बाजारों के आकर्षण और आम बजट तथा अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की बैठक से पहले एफपीआई ने सतर्कता का रुख अपनाया हुआ है।
यूं तो विदेशी निवेशक 2022 की शुरुआत से ही भारतीय बाजार से पैसे निकाल रहे थे। लेकिन यह बिकवाली साल खत्म होते होते थमी और एफपीआई की खरीदारी की खबरें भी आने लगीं।
दुनिया के कुछ हिस्सों में कोविड संक्रमण फिर फैलने तथा अमेरिका में मंदी की चिंता की वजह से एफपीआई भारत जैसे उभरते बाजारों से दूरी बना रहे हैं।
एफपीआई की पूंजी निकासी के लिहाज से यह सबसे खराब वर्ष रहा। इससे पहले, उन्होंने लगातार तीन साल तक पूंजी लगायी थी।
आने वाले समय में अमेरिका के व्यापक आर्थिक आंकड़े और कोविड संक्रमण की स्थिति से बाजार की चाल निर्धारित होगी।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से नौ दिसंबर के दौरान एफपीआई ने शेयरों में शुद्ध रूप से 4,500 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
इससे पहले अक्टूबर में उन्होंने आठ करोड़ रुपये तथा सितंबर में 7,624 करोड़ रुपये की निकासी की थी।
भारतीय रुपये के स्थिर होने तथा दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होने की वजह से विदेशी निवेशक फिर भारत पर दांव लगा रहे हैं।
मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि यह भारतीय बाजार के लिए बहुत ही अच्छा संकेत है। वैश्विक स्थिरता और बदले हालात में विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में लौटे है।
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