Saturday, April 27, 2024
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ममता बनर्जी को सता रहा मुस्लिम वोटों के बंटवारे का डर? इस क्षेत्रीय पार्टी ने बढ़ाई चिंता

अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में इंडियन सेक्युलर फ्रंट और इसके विधायक नौशाद सिद्दीकी की बढ़ती लोकप्रियता ने तृणमूल कांग्रेस के खेमे में चिंता पैदा कर दी है।

Vineet Kumar Singh Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Updated on: December 23, 2023 18:39 IST
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Image Source : FILE पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ISF के विधायक नौशाद सिद्दीकी।

कोलकाता: कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अभी तक तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने का कोई आश्वासन नहीं दिया है। यही वजह है कि ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल को अल्पसंख्यक वोटों, या थाोड़ा साफ लफ्जों में कहें तो मुस्लिम वोटों के बंटवारे का डर सता रहा है। बता दें कि इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) ने ऐलान किया है कि वह उन लोकसभा सीटों पर स्वतंत्र रूप से कैंडिडेट खड़ा करेगा जहां मुस्लिम वोटों के आधार पर हार-जीत का फैसला होता है। इस ऐलान के बाद से ही ममता बनर्जी की चिंताएं बढ़ गई हैं।

नौशाद बढ़ाएंगे अभिषेक की मुश्किलें

सूबे में ISF के एकमात्र विधायक नौशाद सिद्दीकी ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह दक्षिण 24 परगना निर्वाचन क्षेत्र में डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाता हार और जीत के बीच का अंतर पैदा कर देते हैं। तृणमूल के लिए परेशानी की बात ये है कि पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने 2019 में इसी सीट से लोकसभा का चुनाव जीता था। अगर नौशाद सिद्दीकी भी इस सीट से ताल ठोकते हैं तो 2024 के चुनावों में अभिषेक बनर्जी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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Image Source : PTI
नौशाद सिद्दीकी की बढ़ती लोकप्रियता ने तृणमूल खेमे में चिंता पैदा कर दी है।

कई सीटों से चुनाव लड़ना चाहता है ISF

2019 के लोकसभा चुनावों में डायमंड हार्बर निर्वाचन क्षेत्र के परिणामों के विश्लेषण से पता चला कि पिछली बार बनर्जी की भारी जीत का मुख्य कारण अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में 95 प्रतिशत मतदाताओं का तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होना था। वहीं बहुसंख्यक प्रभुत्व वाले इलाकों में राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ बहुसंख्यक वोटर काफी हद तक एकजुट देखे गए थे। डायमंड हार्बर के अलावा ISF मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, हुगली और नादिया जिलों में कम से कम 9 ऐसी लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ना चाहता है जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है।

तृणमूल के साथ कोई समझौता नहीं: ISF

नौशाद सिद्दीकी ने तृणमूल के साथ किसी भी तरह के समझौते की संभावना से इनकार किया है। वह तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर तृणमूल 'I.N.D.I.A.' गठबंधन में नहीं होती तो ISF इसका हिस्सा होता। कोलकाता के एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘पंचायत चुनावों के बाद से अल्पसंख्यक युवाओं के बीच सिद्दीकी की आसमान छूती लोकप्रियता को देखते हुए तृणमूल के लिए 2025 में मुस्लिम वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए ISF फैक्टर को कमजोर करना मुश्किल होगा। यही कारण है कि तृणमूल नेता लगातार ISF और सिद्दीकी को BJP का सीक्रेट एजेंट बता रहे हैं।’

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ममता बनर्जी की कोशिश अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा रोकने की है।

‘I.N.D.I.A. की बैठक के बाद दिखा बदलाव’

सियासी जानकारों का कहना है कि ISF की वजह से मुस्लिम वोटों में बंटवारे के खतरे को देखते हुए ही तृणमूल लोकसभा चुनावों की खातिर कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे का समझौता करने के लिए बेताब है। उन्होंने कहा कि 19 दिसंबर को ‘I.N.D.I.A.’ की बैठक से ठीक पहले और उसके ठीक बाद तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के रुख में अचानक बदलाव देखने को मिला है। बैठक से पहले ममता ने कहा था कि बंगाल ‘I.N.D.I.A.’ का नेतृत्व करेगा जबकि मीटिंग के दौरान उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम पद का चेहरा बनाने की वकालत की।

‘ममता के बदले रुख के पीछे 2 कारण’

एक सियासी जानकार ने कहा कि ममता बनर्जी के इस बदले रुख के पीछे दो कारण हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘पहला कारण यह है कि खरगे के नाम का प्रस्ताव करके उन्होंने 2024 के चुनावों में ‘I.N.D.I.A.’ के पक्ष में अनुकूल परिणाम आने की स्थिति में कांग्रेस को अपनी तरफ से भरपूर समर्थन का संदेश देने की कोशिश की। दूसरा कारण यह हो सकता है कि ‘I.N.D.I.A.’ गठबंधन के लिए अगर कोई मुश्किल खड़ी होती है तो उस हालत में किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी कांग्रेस के कंधों पर होगी।’ (IANS)

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