
मौजूदा समय में मध्य पूर्व की जियो-पॉलिटिक्स जटिल और अस्थिर बनी हुई है। ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई के नेतृत्व में शिया शासन क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने में लगा है, जबकि इजरायल के साथ उसका तनाव चरम पर है। इस क्षेत्र में अमेरिका की रुचि हमेशा से रही है और इसके पीछे तेल, इजरायल और आतंकवाद प्रमुख कारण रहे हैं। फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टेढ़ी नजर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई पर है। उन्होंने एक बयान में साफ कहा, 'हमें अच्छी तरह पता है कि तथाकथित सर्वोच्च नेता कहां छिपे हैं। वह एक आसान निशाना हैं, लेकिन वहां सुरक्षित हैं, हम उन्हें अभी मारने नहीं जा रहे हैं, कम से कम फिलहाल तो नहीं।' ऐसे में इस सदी का पहला दशक याद आ जाता है, जब अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हमला हुआ और सद्दाम हुसैन के युग का अंत हो गया।
जब अमेरिका ने किया इराक पर हमला
11 सितंबर, 2001 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिका ने वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने इराक को 'आतंकवाद का समर्थक' और 'विनाशकारी हथियारों' (Weapons of Mass Destruction - WMD) का उत्पादक बताते हुए निशाना बनाया। हालांकि, बाद में यह साबित हुआ कि इराक के पास WMD नहीं थे। फिर भी 20 मार्च 2003 को अमेरिका और उसके सहयोगियों ने 'ऑपरेशन इराकी फ्रीडम' के तहत इराक पर हमला कर दिया। इस हमले का तात्कालिक लक्ष्य सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़ फेंकना था, और बहुत जल्द ही अमेरिका अपने मकसद में कामयाब भी हो गया।
कैसे हुआ था सद्दाम हुसैन का खात्मा?
सद्दाम हुसैन, जो 1979 से इराक के राष्ट्रपति थे, ने अपने शासनकाल में बर्बरता और तानाशाही की मिसाल कायम की थी। कुर्दों और शिया समुदायों के खिलाफ उनकी क्रूरता, 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध और 1990 में कुवैत पर हमला उनकी नीतियों का हिस्सा थे। 2003 में अमेरिकी हमले ने उनके शासन को तेजी से ध्वस्त कर दिया। बगदाद पर कब्जे के बाद, अप्रैल 2003 में सद्दाम हुसैन भूमिगत हो गए। दिसंबर 2003 में, अमेरिकी सेना ने उन्हें तिकरित के पास एक गुप्त ठिकाने से गिरफ्तार किया। उनकी तस्वीरें, जिसमें वह दाढ़ी और अस्त-व्यस्त हालत में दिखे, ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं थीं।
पकड़े जाने के बाद से ही सद्दाम हुसैन के बुरे दिन शुरू हो गए। इराक की अंतरिम सरकार और अमेरिकी अधिकारियों के तत्वावधान में उन पर मुकदमा चला। उन पर मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और नरसंहार जैसे गंभीर आरोप लगे, विशेष रूप से 1982 में दजैल नरसंहार के लिए, जिसमें 148 शिया नागरिकों की हत्या की गई थी। नवंबर 2006 में, इराकी अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई, और 30 दिसंबर, 2006 को उन्हें फांसी दे दी गई। इस तरह एक जमाने में मध्य पूर्व के सबसे ताकतवर नेताओं में गिने जाने वाले सद्दाम हुसैन का दर्दनाक अंत हो गया।
सद्दाम के परिवार के भी आए बुरे दिन
सद्दाम के परिवार के कुछ सदस्यों का अंत भी अपने मुखिया जितना ही दुखद रहा। उनके दो बेटों, उदय हुसैन और कुसय हुसैन, को जुलाई 2003 में मोसुल में अमेरिकी सेना के साथ मुठभेड़ में मार दिया गया। इस हमले में कुसय का नाबालिग बेटा भी मारा गया था। सद्दाम के दोनों बेटे अपने पिता की तरह क्रूर और सत्ता के भूखे माने जाते थे। उदय पर बलात्कार और हत्या जैसे कई आरोप थे, जबकि कुसय को इराकी सेना और खुफिया सेवा का क्रूर कमांडर माना जाता था। सद्दाम और उसके बेटों और अन्य कई रिश्तेदारों की मौत के बाद उनके शासन की बची-खुची निशानियां भी खत्म हो गईं।
सद्दाम की पत्नी, साजिदा तलफाह, और उनके करीबी रिश्तेदारों को इराक छोड़कर भागना पड़ा। साजिदा ने जॉर्डन में शरण ली, जहां वह अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ गुमनामी में रहने लगीं। उनकी बेटी रगद हुसैन पर भी संकट के बादल मंडराए। रगद, जो अपने पिता की सबसे बड़ी बेटी थीं, को इराक की अंतरिम सरकार ने 59 लोगों की 'मोस्ट वांटेड' सूची में शामिल किया। रगद ने भी जॉर्डन में शरण ली और वहां से अपने पिता के कानूनी बचाव की कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम रहीं। उनकी दूसरी बेटी, राना हुसैन, और छोटी बेटी हाला हुसैन भी जॉर्डन में रहीं और सार्वजनिक जीवन से दूर रहीं।
सद्दाम युग के अंत के बाद इराक में क्या हुआ?
सद्दाम के शासन के अंत और उनके परिवार के पतन से इराक में एक शक्ति शून्य पैदा हो गया। अमेरिका ने लोकतंत्र स्थापित करने का दावा किया, लेकिन इसके बजाय इराक में सांप्रदायिक हिंसा और अस्थिरता बढ़ी। शिया और सुन्नी समुदायों के बीच तनाव, अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों का उदय, और बाद में इस्लामिक स्टेट (ISIS) का उभार इसके प्रत्यक्ष परिणाम थे। अमेरिका की यह कार्रवाई क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई, जिसने ईरान को क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दिया।
आज, जब हम ईरान-इजरायल तनाव और अमेरिका की भूमिका को देखते हैं, तो सद्दाम के पतन की कहानी एक चेतावनी की तरह है। अमेरिका के हस्तक्षेप ने इराक को अस्थिर किया, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदल गया। खामेनेई के नेतृत्व में ईरान ने इराक में शिया मिलिशिया के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाया, जो इजरायल और अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बन गया। आज यह चुनौती इतनी बड़ी हो गई है कि पूरा मध्य पूर्व एक भीषण जंग के मुहाने पर खड़ा है।