Sunday, April 28, 2024
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Independence Day 2023: आजादी की लड़ाई का एक ऐसा क्रांतिकारी, जो महज 18 साल की उम्र में चढ़ गया सूली; जानें कौन था वो पराक्रमी

Independence Day 2023: आजादी के इतिहास में कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं या यूं कहें कि इतिहास के पन्ने पलटने वालों तक ही सीमित हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही क्रांतिकारी के बारे में बताएंगे जिन्हें महज 18 साल की उम्र में ही सूली पर चढ़ा दिया गया था।

Akash Mishra Written By: Akash Mishra @Akash25100607
Updated on: August 14, 2023 13:51 IST
खुदीराम बोस- India TV Hindi
Image Source : WIKIPEDIA खुदीराम बोस

Independence Day 2023: 77वें स्वतंत्रता दिवस को लेकर देश में जोरों शोरो से तैयारियां चल चल रही है। लगभग 200 वर्षों की पराधीनता या परतंत्रता के बाद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद होकर एक स्वतंत्र देश बना। लेकिन इस आजादी दिवस को मनाने के लिए कितने ही वीरों ने अपने खून से इस धरती को सींचा है तब जाकर 15 अगस्त 2023 को हमें आजादी मिली। भगत सिंह, राममप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरू जैसे वीर सपूतों के नाम तो आप लोगों ने सुने होंगे। लेकिन कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं या यूं कहें कि इतिहास के पन्ने पलटने वालों तक ही सीमित हैं। आज हम आपको एक ऐसे क्रांतिकारी के बारे मे बताएंगे जिन्हें महज 18 साल की उम्र में ही सूली पर चढ़ा दिया गया था। 

कौन से है ये नाम?

आजादी की लड़ाई में अहम किरदार निभाने वाले कुछ नाम गुमानामी के अंधेरे में अभी भी हैं। ये ऐसे नाम हैं जिन्हें अभी तक जनता के बीच बेहद कम जाना गया है। ऐसा ही एक नाम है खुदी राम बोस का, जिन्हें महज 18 वर्ष का आयु में फांसी के तख्त पर चढ़ा दिया गया था। जिनका अपने देश की आजादी के लिए दृढ़ संकल्प इतना मजबूत था कि उन्होंने बेहद छोटी सी उम्र में ही बड़े-बड़े कारनामे किए और एक बेहद अचल विश्वास वाले क्रांतिकारी बने। सिर्फ 18 साल की उम्र में देश के लिए अपना प्राण न्योछावर करने वाले महान क्रांतिकारी खुदी राम बोस को 11 अगस्त 1908 को सूली पर चढ़ा दिया गया था। 

नौवीं कक्षा के बाद ही छोड़ दी थी पढ़ाई
खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी ज्वाला जली कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी। खुदी राम बोस अपने स्कूल के दिनों से ही देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। इस महान क्रांतिकारी का जंम 3 दिसंबर में 1889 को बंगाल के मिदनेपुर जिले में हुआ था। बहुत छोटे पर ही खुदीराम बोस के माता पिता का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन ने ही उनका लालन पालन किया था। 

अंग्रेजी अधिकारी को मारने की मिली थी जिम्मेदारी
इतिहास के पन्नों में दर्ज खुदीराम को अंग्रेज ऑफिसर डगलस किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसमें उनको प्रफुल्ल चंद्र चाकी का साथ अटूट साथ मिला। दोनों अपने जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंचे और किंग्सफोर्ड की रैकी की। उसके आना जाना सबकुछ नोट किया और फिर एक अचूक और घातक प्लान बनाया। जिसके बाद एक दिन मौका देखकर उन्होंने उसकी बग्घी में बम फेंक दिया लिकन दुर्भाग्यावश उस दिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड नहीं था। उसकी जगह मौजूद उस बग्घी में दो महिलाओं की मौत हो गई। 

एक ने मारी खुद को गोली, दूसरा वैनी स्टेशन से हुआ गिरफ्तार 
अंग्रेजी ऑफिसर को खत्म करने के उद्देश्य से बम फेंकने के बाद दोनों क्रांतिकारी वहीं से भाग गए, लेकिन जल्दबाजी में खुदीराम अपने जूतों को वहीं छोड़ गए। इसके बाद इन दोनों क्रांतिकारियों के पीछे पुलिस हाथ-धोकर पड़ गई। फिर वैनी रेलवे स्टेशन से खुदीराम को घेर लिया गया और अरेस्ट कर लिया गया। वहीं,  प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने खुद को गोली मार ली। इसके बाद खुदीराम पर मुकदमा चला और उन्हें 13 जून 1908 को फांसी की सजी सुनाई गई। जिसके बाद 11 अगस्त 1908 को खुदीराम ने शेर की तरह फांसी के तख्त की और बढ़कर अपने देश की अस्मिता और स्वतंत्रता के लिए सूली पर चढ़ गए। 

 

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