Saturday, April 20, 2024
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किसान आंदोलन: कोंडली बॉर्डर पर संत बाबा राम सिंह ने खुद को गोली मार आत्महत्या की

किसान आंदोलन से एक दुखद खबर आई है। कोंडली बॉर्डर पर किसान आोदलन को सपोर्ट करने पहुंचे संत बाबा राम सिंह ने आत्महत्या कर ली है। संत बाबा राम सिंह ने अपनी गाड़ी में खुद को गोली मार ली।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 16, 2020 22:52 IST
किसान आंदोलन: कोंडली बॉर्डर पर संत बाबा राम सिंह ने खुद को गोली मार आत्महत्या की- India TV Hindi
Image Source : PTI किसान आंदोलन: कोंडली बॉर्डर पर संत बाबा राम सिंह ने खुद को गोली मार आत्महत्या की

नई दिल्ली: किसान आंदोलन से एक दुखद खबर आई है। कोंडली बॉर्डर पर किसान आोदलन को सपोर्ट करने पहुंचे संत बाबा राम सिंह ने आत्महत्या कर ली है। संत बाबा राम सिंह ने अपनी गाड़ी में खुद को गोली मार ली। बाबा राम सिंह सिख समुदाय के बड़े संत थे। उन्हें मानने वाले हजारों की संख्या में हैं। बताया जा रहा है कि बाबा राम सिंह कई दिनों से किसानों के आंदोलन में सेवा करने में जुटे थे। वो लोगों को कंबल और भोजन बांट रहे थे। कल तक बाबा किसान संगत में प्रवचन दे रहे थे सलिए आज जब अचानक उनकी सुसाइड की खबर आई तो आंदोलन में शामिल किसानों को भी यकीन नहीं हुआ। पुलिस इस केस की जांच कर रही है। 

किसानों का आन्दोलन: गतिरोध दूर करने के लिये शीर्ष अदालत ने समिति गठित करने का दिया संकेत

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि ‘‘यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है।’’ प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आपकी बातचीत से ऐसा लगता है कि बात नहीं बनी है।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘यह विफल होना ही है। आप कह रहे हैं कि हम बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ इस पर मेहता ने जवाब दिया, ‘‘हां, हम किसानों से बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ पीठ ने जब केन्द्र की ओर से पेश तुषार मेहता से कहा कि उन किसान संगठनों के नाम दीजिये जो दिल्ली सीमा को अवरूद्ध किये हैं तो उन्होंने कहा कि वह सिर्फ उन लोगों के नाम बता सकते हैं, जिनके साथ सरकार की वार्ता चल रही है। मेहता ने कहा, ‘‘वे भारतीय किसान यूनियन और दूसरे संगठनों के सदस्य हैं, जिनके साथ सरकार बात कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठनों से बातचीत कर रही है और उन्होंने न्यायालय को उनके नाम बताये। 

मेहता ने कहा, ‘‘अब, ऐसा लगता है कि दूसरे लोगों ने किसान आन्दोलन पर कब्जा कर लिया है।’’ मेहता ने कहा कि किसान और सरकार बातचीत कर रहे हैं और सरकार उनके साथ बातचीत के लिये तैयार है। सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘समस्या उनके (किसानों) इस नजरिये में है कि आप या तो इन कानूनों को खत्म कीजिये अन्यथा हम बात नहीं करेंगे। वे बातचीत के दौरान ‘हां’ या ‘न’ के पोस्टर लेकर आये थे। उनके साथ मंत्रीगण बातचीत कर रहे थे और वे किसानों के साथ चर्चा करना चाहते थे लेकिन वे (किसान संगठनों के नेताओं) कुर्सियां मोड़कर पीठ दिखाते हुये ‘हां’ या ‘न’ के पोस्टरों के साथ बैठ गये।’’ इन कथन का संज्ञान लेते हुये न्यायालय ने विभिन्न पक्षकारों की ओर से पेश वकीलों से कहा कि वह क्या करने की सोच रहा है। 

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस विवाद को हल करने के लिये एक समिति गठित करेंगे। हम समिति में सरकार और किसानों के संगठनों के सदस्यों को शामिल करेंगे। यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है। हम इसमें देश के अन्य किसान संगठनों के सदस्यों को भी शामिल करेंगे। आप समिति के लिये प्रस्तावित सदस्यों की सूची दीजिये।’’ न्यायालय ने जिन किसान यूनियनों को नोटिस जारी किये हैं, उनमें भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू-राकेश टिकैत), बीकेयू-सिदधुपुर (जगजीत एस दल्लेवाल), बीकेयू-राजेवाल (बलबीर सिंह राजेवाल), बीकेयू-लाखोवाल (हरिन्दर सिंह लाखोवाल) जम्हूरी किसान सभा (कुलवंत सिंह संधू), बीकेयू डकौंदा (बूटा सिंह बुर्जगिल), बीकेयू-दोआबा (मंजीत सिंह राय) और कुल हिंद किसान फेडरेशन (प्रेम सिंह भंगू) शामिल हैं। 

इस मामले में कई याचिकायें दायर की गयी हैं, जिनमें दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को तुरंत हटाने के लिये न्यायालय में कई याचिकायें दायर की गयी हैं। इनमें कहा गया है कि इन किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं अवरूद्ध कर रखी हैं, जिसकी वजह से आने जाने वालों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने बड़े जमावड़े की वजह से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केन्द्र और अन्य को भी नोटिस जारी किये। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे विरोध प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों को भी इसमें पक्षकार बनायें। न्यायालय इस मामले में बृहस्पतिवार को आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया है। मेहता ने कहा कि सकारात्मक और रचनात्मक बातचीत चल रही थी और ‘‘सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जो किसानों के हित के खिलाफ हो।’’ 

न्यायालय में याचिका दायर करने वालों में कानून के छात्र ऋषभ शर्मा, अधिवक्ता रीपक कंसल और जी एस मणि भी शामिल हैं। याचिकाओं में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाने और इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘हम नोटिस जारी करेंगे और इसका जवाब कल तक देना होगा क्योंकि शीतकालीन अवकाश के लिये शुक्रवार से न्यायालय बंद हो रहा है।’’ 

पीठ ने मेहता को विरोध प्रदर्शन कर रही किसान यूनियन के नाम पेश करने का निर्देश दिया और याचिकाकर्ताओं से कहा कि उन्हें भी इसमें पक्षकार बनाया जाये। मामले की सुनवाई शुरू होते ही ऋषभ शर्मा की ओर से अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार ने कहा कि प्रदर्शनकारी किसानों ने दिल्ली की सीमायें अवरूद्ध कर रखी हैं, जिससे जनता को असुविधा हो रही है। उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में सड़कें अवरूद्ध किये जाने के खिलाफ अधिवक्ता अमित साहनी की याचिका पर शीर्ष अदालत के सात अक्टूबर के फैसले का भी हवाला दिया और कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक स्थलों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है। 

पीठ ने कहा कि कानून व्यवस्था के मामले में कोई नजीर हो सकती है और वह सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश पारित करेगी। याचिकाकर्ता जी एस मणि ने पीठ से कहा कि वह बातचीत के माध्यम से इस विवाद का सर्वमान्य समाधान चाहते हैं। पीठ ने मेहता से कहा कि हमारे सामने पेश अधिकांश याचिकायें लगता है कि गलत धारणा पर आधारित है और ‘‘इनमें याचिकाओं में देश में निर्बाध रूप से आवागमन का अधिकार बाधित होने के अलावा कोई अन्य कानूनी मुद्दा नहीं उठाया गया है और ऐसा करने वाले लोग हमारे सामने नहीं हैं।’’ पीठ ने कहा कि उसके सामने सिर्फ एक ही व्यक्ति है जिसने सड़कें अवरूद्ध की हैं और वह सरकारी प्राधिकारी हैं। नये कृषि कानूनों के विरोध मे नवंबर के अंतिम सप्ताह से ही दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान आन्दोलन, जिसमें मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसान हैं, के समाधान के लिये केन्द्र और किसान संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। किसान संगठन इन कानूनों को खत्म करने की मांग पर अड़े हुये हैं और उन्होंने इन कानूनों में कुछ संशोधन करने के सरकार के प्रस्ताव को बार- बार ठुकरा दिया है। 

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