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इन महिलाओं के बिना कैसे स्वतंत्र होता भारत

नई दिल्ली: 14 अगस्त 1947, एक ऐसी रात जब लोग सोए तो गुलाम देश में थे, लेकिन अगली सुबह उनकी आजादी की सुबह थी यानी 15 अगस्त 1947। आज भी हमें लगता है कि देश

suryadeep yadav
Published : Aug 13, 2015 04:43 pm IST, Updated : Aug 14, 2015 08:46 pm IST

5) सुचेता कृपलानी : उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री कृपलानी का स्वतंत्रता आंदोलन में इनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। सन 1908 में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। सन् 1946 में वह सविंधान की सदस्य भी रह चुकी है। सुचेता ने आंदोलन के हर चरण में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया और कई बार जेल गईं। सन् 1946 में उन्‍हें असेंबली का अध्‍यक्ष चुना गया। सन 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी रहीं और 1963 में उत्‍तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री बनीं।

6) भीखाजी कामा : जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में तिरंगा फहराने के लिए सुविख्यात हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है। इन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया भीखाजी भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थी। वह एक पक्की राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्रामी सेनानी थी। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित "वन्देमातरम्" पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुई अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि - ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।’’ उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि - ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’ यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में ‘वन्देमातरम्’ अंकित भारतीय ध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।

7) मीरा बेन : भारत की आजादी में विदेशी महिलाओं ने खूब इतिहास रचा है किसी भी चीज कमी न होते हुए भी ऐसी कई विदेशी महिलाओं ने भारत आजादी के लिए अपने प्राण दांव पर लगाए इन्हीं में से एक है ''मैडलिन स्लेड'' जिन्हें गांधी जी व्यक्तिगत के जादू से इतनी प्रभावित हुई कि सात समंदर पार करके चली आई और यहीं की होकर रह गई। गांधी जी ने इन्हें मीरा बेन का नाम दिया था। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गांव-गांव घूमती। वह गोरी नस्‍ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्‍तान की आजादी के पक्ष में थी। उन्‍होंने जरूर भारत की धरती पर जन्‍म नहीं लिया था, लेकिन वह सही मायनों में हिंदुस्‍तानी थीं। गांधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था।

8) कस्तूरबा गांधी: कस्तूरबा गांधी जिन्हें भारत में बा के नाम से जाना जाता था। सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में 1913 में एक ऐसा कानून पास हुआ जिसके अनुसार ईसाई मत के अनुसार किए गए और विवाह विभाग के अधिकारी के यहां दर्ज किए गए विवाह के अतिरिक्त अन्य विवाहों की मान्यता अग्राह्य की गई थी। दूसरे शब्दों में हिंदू, मुसलमान, पारसी आदि लोगों के विवाह अवैध करार दिए गए और ऐसी विवाहित स्त्रियों की स्थिति पत्नी की न होकर रखैल सरीखी बन गई। बापू ने इस कानून को रद कराने का बहुत प्रयास किया। पर जब वे सफल न हुए तब उन्होंने सत्याग्रह करने का निश्चय किया और उसमें सम्मिलित होने के लिए स्त्रियों का भी आह्वान किया। पर इस बात की चर्चा उन्होंने अन्य स्त्रियों से तो की किंतु बा से नहीं की। जब बा ने देखा कि बापू ने उनसे सत्याग्रह में भाग लेने की कोई चर्चा नहीं की तो बड़ी दु:खी हुई और बापू को उपालंभ दिया। फिर स्वेच्छया सत्याग्रह में सम्मिलित हुई और तीन अन्य महिलाओं के साथ जेल गर्इं। जेल में जो भोजन मिला वह अखाद्य था अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया। किंतु जब उनके इस अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो उन्होंने उपवास करना आरंभ कर दिया। निदान पाँचवें दिन अधिकारियों को झुकना पड़ा। 

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