Tarique Rahman Bangladesh: बांग्लादेश की राजनीति किसी सीधी लाइन में नहीं चलती, बल्कि समंदर की लहरों के जैसे उठती-गिरती रहती है। जो नेता पहले निर्वासन में होते हैं, वही बाद में सत्ता की धुरी बन जाते हैं और जो आज सरकार में हैं, उन्हें कल देश छोड़ना भी पड़ सकता है। पड़ोसी मुल्क की राजनीति की इस कहानी के 2 सबसे बड़े किरदार हैं- शेख हसीना और तारिक रहमान। जहां शेख हसीना 2 बार निर्वासन झेल चुकी हैं और फिर सत्ता तक लौटीं; वहीं तारिक रहमान ने 17 साल लंबे निर्वासन के बाद वतन वापसी की और अब सियासत में एंट्री की बाट जोह रहे हैं। सवाल है कि क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
शेख हसीना: निर्वासन से प्रधानमंत्री और फिर निर्वासन तक का सफर
बांग्लादेश की सियासत में शेख हसीना का नाम महज एक नेता का नहीं, बल्कि एक दौर का नाम है। 1975 में उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान के हत्याकांड के बाद शेख हसीना को अपना देश छोड़ना पड़ा। वो उस वक्त जर्मनी में थीं और तुरंत बांग्लादेश वापस नहीं लौट पाईं। शेख हसीना, 1975 से 1981 तक निर्वासन में रहीं और उन्हें भारत में शरण लेकर रहना पड़ा। उन्होंने फिर 1981 में बांग्लादेश लौटकर अवामी लीग की कमान संभाली और धीरे-धीरे सियासत में अपनी पकड़ मजबूत की। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार शेख हसीना प्रधानमंत्री बनीं और सरकार चलाई।
लेकिन 2024 में इतिहास ने फिर से करवट ली। सियासी हालात बदले और शेख हसीना को दोबारा अपना देश छोड़ना पड़ा। फिलहाल वो भारत में रह रही हैं और बांग्लादेश के हालात सुधरने का इंतजार कर रही हैं। शायद तभी उनकी वापसी संभव है। ये उनकी सियासत का सबसे बड़ा विरोधाभास है। दशकों तक जो महिला सत्ता की धुरी रही, वही आज एक बार फिर निर्वासन में है।
तारिक रहमान: निर्वासन और अब सियासत में वापसी की तैयारी
शेख हसीना अगर सत्ता का केंद्र रही हैं, तो तारिक रहमान विपक्ष के प्रभावशाली लोगों में से एक हैं। वो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी BNP के संस्थापक जियाउर्रहमान और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे व उत्तराधिकारी हैं। साल 2008 में सियासी उथल-पुथल और कानूनी केस के बाद तारिक रहमान, बांग्लादेश छोड़कर चले गए थे। उन्हें 2008 से 2025 तक यानी लगभग 17 साल का लंबा निर्वासन झेलना पड़ा। और अब 2025 में तारिक रहमान की सियासत में दोबारा एंट्री हो रही है। उन्हें BNP अपने सबसे बड़े चेहरे के तौर पर पेश कर रही है। लेकिन प्रश्न यही है कि क्या राजनीति के वनवास से लौटे तारिक रहमान सत्ता की धुरी बन पाएंगे?
क्या शेख हसीना की राह पर चल पाएंगे तारिक रहमान?
बांग्लादेश का इतिहास है कि यहां निर्वासन, सियासत का अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत भी साबित हो सकता है। लेकिन तारिक रहमान के आगे का रास्ता आसान बिल्कुल भी नहीं है।
उनके सामने 3 बड़ी चुनौतियां हैं:
- BNP को एकजुट करना- तारिक रहमान का सियासी दल, BNP लंबे समय से कमजोर और बिखरा रहा है। तारिक का पहला चैलेंज पार्टी को संगठित करना होगा।
- छवि सुधारने का चैलेंज- तारिक रहमान के साथ भ्रष्टाचार और पुराने केस की छाया अभी भी है। शेख हसीना के जैसे उन्हें भी खुद को राजनीतिक रूप से पीड़ित स्थापित करना होगा। जनता की हमदर्दी लेनी होगी।
- जनता का भरोसा जीतना- सरकार में वापसी महज इतिहास से नहीं होती, बल्कि इसके लिए जमीनी समर्थन भी चाहिए होता है। बांग्लादेश की जनता क्या उन्हें एक ऑप्शन के तौर पर कबूल करेगी या नहीं, यही निर्णायक होगा।
बांग्लादेश की राजनीति में निर्वासन, शिकस्त नहीं बल्कि ठहराव है। अपनी रणनीति बनाने का समय है। शेख हसीना इसकी सबसे बड़ी उदाहरण हैं, जो बांग्लादेश छोड़कर गईं, हालात ठीक होने पर वतन वापसी की और प्रधानमंत्री तक बन गईं। इतना ही नहीं लंबे समय तक उन्होंने सत्ता भी संभाली। अब यही सवाल तारिक रहमान के सामने है। क्या वो भी समंदर की लहरों के जैसे लौटकर सत्ता के किनारे तक पहुंच पाएंगे या फिर इस बार इतिहास कोई नई कहानी लिखने वाला है।
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