Wednesday, April 24, 2024
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Pradosh Vrat 2020: बुधवार को प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है | प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत महत्व होता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: May 20, 2020 18:46 IST
Pradosh Vrat 2020: Date, time and significance: When should we start Pradosh VRAT? बुधवार को प्रदोष - India TV Hindi
Image Source : INSTRAGRAM/MAHADEV_SHIV_SHAMBU Pradosh Vrat 2020: Date, time and significance: When should we start Pradosh VRAT? बुधवार को प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है | प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत महत्व होता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है | प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत महत्व होता है | त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर, यानि दिन छिपने के बाद शाम के समय को प्रदोष काल कहते हैं | इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है | इस दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए | सुबह पूजा आदि के बाद संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। आज के दिन जो व्यक्ति प्रदोष का व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा आदि करता है और भगवान शिव या उनके तस्वीर की दर्शन करता हैं | उसके समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है | साथ ही उसके जीवन में चल रही समस्त समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।

प्रदोष व्रत के साथ बुधवार को मास शिवरात्रि का भी व्रत किया जायेगा | मास शिवरात्रि का व्रत और पूजा चतुर्दशी तिथि की रात में किया जाता है और चतुर्दशी तिथि आज शाम 7 बजकर 44 मिनट पर शुरू हो जायेगी और कल रात 9 बजकर 37 मिनट तक रहेगी यानि की चतुर्दशी की रात आज ही पड़ रही है | लिहाजा मास शिवरात्रि का व्रत आज ही किया जायेगा 

प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार त्रयोदशी तिथि 19 मई को शाम 5 बजकर 32 मिनट शुरू होकर 20 मई को शाम 7 बजकर 43 मिनट तक रहेगी।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी नित्य कामों से निवृत्त होने के बाद शिव जी की उपासना करनी चाहिए| आज के दिन भगवान शिव को बेल पत्र, पुष्प, धूप-दीप और भोग आदि चढ़ाने के बाद शिव मंत्र का जाप, शिव चालीसा करना चाहिए | ऐसा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति के साथ ही कर्ज की मुक्ति से जुड़े प्रयास सफल रहते हैं | सुबह पूजा आदि के बाद संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी पुनः इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए | इस प्रकार जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा आदि करता है और प्रदोष का व्रत करता है, वह सभी पापकर्मों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।

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प्रदोष व्रत कथा

बहुत समय पहले एक नगर में एक बेहद गरीब पुजारी रहता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।  एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिवजी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।

एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा। राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।

अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?

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राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।

उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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