Saturday, April 20, 2024
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Sawan 2020: 6 जुलाई को सावन का पहला सोमवार, जानें भगवान शिव की पूजा विधि और महत्व

Sawan 2020: सावन का पवित्र माह 6 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। सावन के माह का समापन 3 अगस्त को होगा। जानें सावन शिवरात्रि की पूजा विधि और महत्व।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 04, 2020 22:24 IST
sawan 2020- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/SHIVANSHI.DEVINA सावन 2020

इस साल सावन का पवित्र माह 6 जुलाई से शुरु हो रहा है।  इस महीने में भगवान शिव की आराधना होना शुरु हो जाएगी।  माना जाता है कि जो भक्त इस पावन माह में माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। उनके ऊपर भोले बाबा की हमेशा कृपा बनी रहती है। इस बार सावन का पहला सोमवार 6 जुलाई को  होगा वहीं 3 अगस्त को पूर्णिमा के दिन इसका समापन होगा।

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सावन का महत्व

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन माह को भगवान शंकर का माह माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन माह प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया था कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

श्रावण माह के 5 सोमवार

  • इस बार सावन के माह में 5 सोमवार हैं।  सावन के माह की शुरूआत सोमवार 6 जुलाई हो रही है।
  • दूसरा सावन सोमवार व्रत 13 जुलाई को,
  • तीसरा सोमवार व्रत 20 जुलाई
  • चौथा सोमवार व्रत 27 जुलाई को
  • आखिरी पांचवा सोमवार व्रत 3 अगस्त 2020 को पड़ेगा।

सावन में शिवशंकर की पूजा

सावन के माह में देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

ब्रह्म मुहूर्त में  स्नान करके ताजे विल्बपत्र लाएं। पांच या सात साबुत विल्बपत्र साफ पानी से धोएं और फिर उनमें चंदन छिड़कें या चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखें। इसके बाद तांबे के लोटे (पानी का पात्र) में जल या गंगाजल भरें और उसमें कुछ साबुत और साफ चावल डालें। और अंत में लोटे के ऊपर विल्बपत्र और पुष्पादि रखें। विल्बपत्र और जल से भरा लोटा लेकर पास के शिव मंदिर में जाएं और वहां शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक के दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप या भगवान शिव को कोई अन्य मंत्र का जाप करें। रुद्राभिषेक के बाद समय होता मंदिर परिसर में ही शिवचालीसा, रुद्राष्टक और तांडव स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं। मंदिर में पूजा करने बाद घर में पूजा-पाठ करें।  घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें -

'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये'

इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें -
'ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।

पद्मासीनं समंतात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥

ध्यान के पश्चात 'ॐ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा ' ॐ शिवाय नमः ' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें। उसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।

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