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बजट से जुड़ी ये परंपराएं खत्म कर चुकी है मोदी सरकार, लिस्ट में हलवा सेरेमनी और रेल बजट भी शामिल

आजादी के बाद से बजट पेश करने से पहले कई तरह की परंपराएं होती है। ये हर पार्टी के सरकार में होता आया है, लेकिन मोदी सरकार जब से कार्यकाल में आई है इसमें कई बदलाव किए हैं। आइए उसके बारे में जानते हैं।

Vikash Tiwary Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Updated on: January 27, 2023 14:45 IST
बजट से जुड़ी ये परंपराएं खत्म कर चुकी है मोदी सरकार- India TV Paisa
Photo:PTI बजट से जुड़ी ये परंपराएं खत्म कर चुकी है मोदी सरकार

बजट को देश की अर्थव्यवस्था का लेखाजोखा कहा जाता है। आजादी के बाद से हर साल फरवरी में केंद्र सरकार बजट पेश करती है, लेकिन आजादी के बाद से अब तक बजट को लेकर निभाई जाने वाली कई परंपराएं खत्म हुई हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक हलवा सेरेमनी (Halwa Ceremony)  पिछले साल नहीं हुई थी। हालांकि इसके पीछे का कारण ओमिक्रॉन का अचानक से बढ़ना बताया गया था। बता दें, मोदी सरकार के बीते 8 साल का रिकॉर्ड देखें तो सरकार ने कई परंपरों को तिलांजलि दी है। 

हलवा सेरेमनी को खत्म करना

परंपराओं में बदलाव का ताजा उदाहरण हलवा सेरेमनी (Halwa Ceremony) है। हर साल यह सेरेमनी बजट की प्रिंटिंग की शुरुआत में मनाई जाती है। इसमें मंत्रालय में ही एक बड़ी सी कढ़ाई में हलवा तैयार किया जाता है। आपने भी कड़छी घुमाते कई वित्त मंत्रियों की तस्वीरें देखी होंगी। इसके बाद से वित्त मंत्रालय के अधिकारी करीब 10 दिनों के लिए मंत्रालय में बंद हो जाते हैं। ऐसा बजट को गोपनीय बनाने के लिए किया जाता है, जो पिछले साल नहीं हुआ था। उम्मीद है कि इस बार ये सेरेमनी की जाएगी।

चमड़े के ब्रीफकेस की जगह लाल बहीखाता

आजादी के पहले से ही बजट को चमड़े के ब्रीफकेस में पेश करने की परंपरा चलती आ रही थी। आपको मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, यशवंत सिन्हा से लेकर अरुण जेटली की चमड़े का बैग लिए तस्वीरें गूगल पर मिल जाएंगी। लेकिन निर्मला सीतारमण ने 2019 से इसके बजाय लाल कपड़ों में लिपटे बही-खाता के रूप में बजट पेश किया था।

पेपरलैस बजट की पेशकश करना

कोरोना की आमद के साथ ही देश में कई बड़े बदलाव हुए। हम डिजिटल युग में तेजी से आगे बढ़े। इस बीच बजट भी डिजिटल यानि पेपरलैस (Paperless Budget)हो गया। इसका असर बजट की प्रिंटिंग पर पड़ा। 2021 के बाद 2022 में भी बजट को डिजिटल (Digital Budget) स्वरूप में ही शेयर किया जाएगा। बहुत कम तादाद में बजट की प्रिंटिंग होगी। इसे मोबाइल ऐप के जरिए भी उपलब्ध कराया जाएगा।इसके लिए यूनियन बजट मोबाइल ऐप (Union Budget Mobile App) उपलब्ध है।

बजट की तारीख में बदलाव करना

आजादी के बाद से बजट फरवरी की आखिरी तारीख को पेश करने की परंपरा थी। ऐसे में बजट 28 या 29 फरवरी को पेश होता था, लेकिन प्रशासनिक चुनौतियों को देखते हुए 2017 में मोदी सरकार ने बजट की तारीखों में बदलाव कर दिया। इसके बाद से बजट हर साल फरवरी की पहली तारीख को पेश किया जाने लगा।

रेल बजट को आम बजट में मिलाना

आजादी से पहले से ही आम बजट के पहले रेल बजट पेश करने की परंपरा रही है। रेल बजट आम बजट से 1 दिन पूर्व रेल मंत्री द्वारा पेश किया जाता था। लेकिन 2017 में 92 साल पुरानी परंपरा भी टूट गई। इसके बाद से रेल बजट को आम बजट का ही हिस्सा बना दिया गया। 2017 के बाद से आम बजट में ही रेल बजट की प्रमुख घोषणाओं को पढ़ा जाता है। 

शाम 5 बजे पेश होता था बजट

बजट को पेश करने की तारीख ही नहीं बदली बल्कि बजट पेश करने का समय भी बदला जा चुका है। हालांकि यह बदलाव अटल सरकार के दौरान हुआ था। वर्ष 2000 तक आम बजट को शाम 5 बजे पेश किया जाता था। दरअसल अंग्रेजी शासन में भारतीय बजट को लंदन के हाउस कॉमंस में भी सुना जाता था। वहां के सांसदों की सहूलियतों को देखते हुए बजट की टाइमिंग शाम की रखी गई थी, लेकिन 2001 में अंग्रेजी शासन के इस दाग को धो दिया गया और बजट सुबह 11 बजे पेश होने लगा। 

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