Monday, December 08, 2025
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यूपी का इकलौता गांव जहां 'पितृ पक्ष' में नहीं किया जाता श्राद्ध, जानें क्या है इसकी पूरी कहानी

संभल जिले के भगता नगला गांव में लगभग 100 वर्षों से पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। इसके पीछे एक ब्राह्मण महिला का दिया गया श्राप कारण है।

Edited By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Published : Sep 10, 2025 01:52 pm IST, Updated : Sep 10, 2025 03:19 pm IST
only village in UP where Shradh is not performed in Pitru Paksha know its full story- India TV Hindi
Image Source : PTI यूपी का इकलौता गांव जहां 'पितृ पत्र' में नहीं किया जाता श्राद्ध

उत्तर प्रदेश के संभल जिले के एक गाँव में 'पितृ पक्ष' के दौरान श्राद्ध कर्म न करने की लगभग सौ वर्षों से चली आ रही परंपरा का पालन आज भी किया जा रहा है। इस दौरान न तो किसी ब्राह्मण को तर्पण के लिए बुलाया जाता है और न ही गाँव में भिक्षा दी जाती है। गुन्नौर तहसील के यादव बहुल भगता नगला गाँव के ग्रामीणों के अनुसार, पितृ पक्ष के पूरे पखवाड़े में कोई भी श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता। यहाँ तक कि भिखारी भी गाँव में प्रवेश नहीं करते, क्योंकि इन दिनों कोई दान या भिक्षा नहीं दी जाती। ग्रामीणों के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत लगभग एक सदी पहले हुई थी। 

क्या है मान्यता?

मान्यता है कि एक ब्राह्मण महिला किसी परिजन की मृत्यु के बाद के कर्मकांड के लिए गाँव आई थी, लेकिन भारी वर्षा के कारण यहीं रुक गई। जब वह कुछ दिन बाद अपने घर लौटी, तो उसके पति ने उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाते हुए उसे घर से निकाल दिया। ग्रामीण बताते हैं कि व्यथित होकर वह महिला वापस भगता नगला लौट आई और इस दुर्भाग्य के लिए अपनी यात्रा को कारण मानते हुए गाँव को श्राप देते हुए कहा भविष्य में यदि इस गाँव में श्राद्ध किया गया, तो वह दुर्भाग्य लाएगा। गाँव के लोगों ने उसके शब्दों को श्राप मानकर श्राद्ध कर्म करना पूरी तरह से बंद कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है। 

ग्राम प्रधान ने बताई पूरी कहानी

गाँव की प्रधान शांति देवी और उनके पति रामदास ने बताया कि गाँव में लगभग 2,500 निवासी हैं, जिनमें अधिकतर यादव समुदाय से हैं। कुछ मुस्लिम और कुछ ब्राह्मण परिवार भी हैं। रामदास ने कहा, "उस घटना के बाद हमारे बुजुर्गों ने श्राद्ध करना बंद कर दिया था। हम उनकी मान्यताओं का पालन करते हैं और आज भी यह परंपरा जारी है। यहाँ तक कि भिखारी भी इन दिनों गाँव में नहीं आते।" एक अन्य ग्रामीण हेतराम सिंह (62) ने बताया कि अतीत में जब किसी ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, तो भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे लोगों का विश्वास और दृढ़ हो गया। ग्रामीण रामफल (69) ने बताया, "श्राद्ध पक्ष को छोड़कर, ब्राह्मण विवाह और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए गाँव आते रहते हैं। लेकिन इन 15 दिनों के दौरान, यहाँ के स्थानीय ब्राह्मण भी किसी धार्मिक समारोह में भाग नहीं लेते।" 

(इनपुट-भाषा)

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