Thursday, April 25, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: टाटा की देखरेख में एयर इंडिया का पुराना वैभव जरूर लौटेगा

यह याद रखना चाहिए कि टाटा के स्वामित्व वाली एयर इंडिया का 1953 में जवाहरलाल नेहरू के शासन के दौरान राष्ट्रीयकरण किया गया था।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: October 09, 2021 16:58 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

आखिरकार 68 साल के बाद एयर इंडिया की घर वापसी हो गई है। 18 हजार करोड़ की बोली लगाकर टाट संस ने एयर इंडिया को खरीद लिया और इस तरह एक बार फिर इस पर टाटा की मुहर लग गई। सरकार ने एयर इंडिया की बिडिंग में 12 हज़ार 906 करोड़ रूपए का आरक्षित मूल्य रखा था लेकिन इससे करीब 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बोली लगाकर इसे 18 हजार करोड़ में अपने नाम कर लिया। टाटा की यह बोली स्पाइस जेट की तुलना में 19 प्रतिशत ज्यादा थी।

इस डील की घोषणा के बाद, टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने एक भावुक करनेवाला ट्वीट किया। इस ट्वीट में उन्होंने एयर इंडिया के केबिन क्रू के साथ जेआरडी टाटा की 1971 की तस्वीर पोस्ट की और लिखा, 'एयर इंडिया के लिए यह बोली जीतना टाटा ग्रुप के लिए अच्छी खबर है। हालांकि मैं मानता हूं कि कर्ज में डूबी एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिए काफी प्रयास की जरूरत होगी। उम्मीद है कि यह एविएशन इंडस्ट्री में टाटा समूह को मजबूत बाजार का अवसर उपलब्ध कराएगी। एक समय जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया ने दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में से एक होने का गौरव प्राप्त किया था। टाटा को अपनी पुरानी छवि और गौरव को फिर से हासिल करने का अवसर मिलेगा जो उसने पहले हासिल की थी। जेआरडी टाटा अगर आज हमारे बीच होते तो वे बहुत खुश होते। चुनिंदा उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की हाल की नीति के लिए हमें सरकार को धन्यवाद देने की जरूरत है। वेलकम बैक, एयर इंडिया!’

टाटा संस की सहायक कंपनी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में 100 फीसदी हिस्सेदारी और ग्राउंड हैंडलिंग ज्वाइंट वेंचर एयर इंडिया SATS में 50 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण करेगी। यह याद रखना चाहिए कि टाटा के स्वामित्व वाली एयर इंडिया का 1953 में जवाहरलाल नेहरू के शासन के दौरान राष्ट्रीयकरण किया गया था। इसके बाद से जेआरडी टाटा एयर इंडिया के अध्यक्ष के बने रहे, लेकिन 1978 में उन्हें मोरारजी देसाई सरकार द्वारा पद से हटा दिया गया था। वर्ष 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने घाटे में चल रही एयर इंडिया को बेचने की योजना बनाई, जो अब 20 साल के अंतराल के बाद अमल में आई है।

एयर इंडिया का अधिग्रहण करने के साथ ही टाटा को 141 विमान मिलेंगे। इन विमानों के परिचालन के साथ ही 55 अंतरराष्ट्रीय रूट 173 शहरों के नेटवर्क तक टाटा की पहुंच होगी। टाटा समूह के पास एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस और महाराजा के प्रतिष्ठित ब्रांड नेम भी होंगे। बिक्री की शर्तों की बात करें तो केंद्र सरकार को टाटा ग्रुप से 2,700 करोड़ रुपये नकद मिलेंगे जबकि शेष 15,300 करोड़ रुपये से सरकार अपने कर्ज की भरपाई की कोशिश करेगी। एयर इंडिया पर कुल कर्ज करीब 61,562 करोड़ रुपए है। मौजूदा समय में एयर इंडिया को रोजना 20 करोड़ का नुकसान हो रहा है। कुल संचित घाटा लगभग 84,000 करोड़ रुपये है।

सरकार ने साफ किया कि इस सौदे में 14,718 करोड़ रुपये मूल्य की नॉन-कोर एसेट( संपत्ति) जैसे जमीन, बिल्डिंग आदि शामिल नहीं हैं। समझौते की शर्तों में साफ तौर पर यह कहा गया है कि अधिग्रहण के पहले वर्ष के दौरान एयर इंडिया के कर्मचारियों की कोई छंटनी नहीं होगी, लेकिन दूसरे साल से एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस के 13,500 कर्मचारियों में से 8,000 को वीआरएस की पेशकश की जा सकती है। इस सौदे में यह साफ है कि टाटा 5 साल के बाद 49 फीसदी हिस्सेदारी बेच सकता है और एयर इंडिया ब्रांड का नाम केवल भारतीय कंपनी को ही ट्रांसफर किया जा सकता है।

एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस की अंतरराष्ट्रीय बाजार में हिस्सेदारी 18.3 प्रतिशत है। इसका अधिग्रहण करके टाटा समूह अब एविएशन क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन जाएगा जबकि डोमेस्टिक एविएशन में इसका नंबर दूसरा होगा। टाटा ग्रुप के बड़े अधिकारी पहले से ही वर्तमान प्रबंधन के पुनर्गठन, पुरानी पीढ़ी के विमानों को नवीनीकृत करने, वेंडर्स के साथ ऊंची कीमतों वाले अनुबंधों पर दोबारा बातचीत करने और भारी कर्ज को रिफाइनेंस करने की योजना पर काम कर रहे हैं। एयर इंडिया के आईटी और डिजिटल ऑपरेशन को टाटा की प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनी TCS द्वारा अधिग्रहित किया जाएगा। इससे कार्यक्षमता में सुधार होगा और ऑपरेशन के साथ-साथ मेंटेनेंस की लागत कम होगी। TCS पहले ही भारत को छोड़तर कई अन्य देशों की नेशनल एयरलाइंस के आईटी सिस्टम्स और ऐप्लिकेशंस का काम देखती है।

भारत में नागरिक उड्डयन के इतिहास पर एक सरसरी नजर डाल लेते हैं। जेआरडी टाटा जब 15 साल के थे तब उन्होंने पहली बार फ्रांस में एक प्लेन में सफर किया। इसके बाद उन्होंने पायलट बनने और एविएशन सेक्टर में ही करियर बनाने का फैसला किया। जेआरडी टाटा ने प्लेन उड़ाना सीखा और 1929 में 24 साल की उम्र में उन्हें भारत का पहला पायलट लाइसेंस मिला। उन्होंने 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की। 15 अक्टूबर 1932 को ‘टाटा एविएशन सर्विसेज’ की पहली कमर्शियल फ्लाइट ने कराची से बंबई के बीच उड़ान भरी, और उस फ्लाइट के पायलट खुद जेआरडी टाटा थे।

बाद में इसका नाम टाटा एयरलाइंस हो गया और 1938 में इसके मस्कॉट महाराजा को डिजाइन किया गया, जो कि आज तक बना हुआ है। 1946 में टाटा एयरलाइंस प्राइवेट से पब्लिक लिमिटेड कंपनी बनी और इसका नाम एयर इंडिया कर दिया गया। 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, लेकिन जेआरडी टाटा इसके चेयरमैन बने रहे। उस समय जेआरडी टाटा इसके खिलाफ थे और उनका मानना था कि सरकार एयरलाइंस नहीं चला पाएगी। सरकार ने उनकी नहीं सुनी और इसके बाद वही हुआ जिसका डर जेआरडी टाटा को था। एयर इंडिया भयंकर घाटे में चली गई।

1995 में जब निजी एयरलाइंस ने भारतीय एविएशन में कदम रखा, टाटा ने एक जॉइंट वेंचर शुरू करने के लिए सिंगापुर एयरलाइंस के साथ समझौता किया, लेकिन तत्कालीन सरकार ने विदेशी कंपनियों को भारतीय एयर कैरियर में हिस्सेदारी की इजाजत नहीं दी थी। 2001 में, टाटा ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ एयर इंडिया के अधिग्रहण के लिए बोली लगाई, लेकिन योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 2003 में टाटा ने मलेशिया की AirAsia के साथ गठबंधन किया और एक बजट एयरलाइन, एयरएशिया इंडिया शुरू की। 2013 में, टाटा ने SIA के सहयोग से एक फुल सर्विस एयरलाइन Vistara लॉन्च की। 2019 में, केंद्र ने एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया और बोली लगाने का आह्वान किया। शुक्रवार, 8 अक्टूबर को केंद्र ने टाटा की अमानत उसको वापस करने का फैसला किया।

नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एयर इंडिया को टाटा संस को बेचने के फैसले का स्वागत किया। सिंधिया ने कहा, ‘यह भारत के 130 करोड़ लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह एयरलाइन पिछले कुछ सालों से रोजाना 20 करोड़ और और सालाना 7,500 करोड़ रुपये का घाटा उठा रही थी। यह विनिवेश प्रक्रिया अत्यंत गहन, अत्यंत कठोर रही है और इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, DIPAM और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के नेतृत्व में एक ऐतिहासिक परिणाम प्राप्त हुआ है।’

सरकार पिछले दो दशकों से एयर इंडिया को बेचने की कोशिश कर रही थी लेकिन घाटा इतना ज्यादा था कि कोई उसे खरीदने को तैयार नहीं था। यह सरकार के लिए सफेद हाथी बन गया था। एयर इंडिया को रोजाना 20 करोड़ रुपये का जो घाटा हो रहा था, उसकी भरपाई हमारी आपकी जेब से हो रही थी।

2009 से अब तक केंद्र सरकार एयर इंडिया को 1,11,000 करोड़ रुपये की मदद दे चुकी है। इसमें से 54,000 करोड़ रुपये सरकार की ओर से कैश में दिए गए, फिर भी एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं हुआ। 31 अगस्त तक एयर इंडिया का कुल घाटा 62,000 करोड़ रुपये था, और इस समय इसकी नेट वर्थ -33,000 करोड़ रुपये है।

इसीलिए सरकार जल्दी से जल्दी महाराज की विदाई चाहती थी। टाटा का इसके साथ एक भावनात्मक रिश्ता है, इसलिए उसने एयर इंडिया को खरीदने का फैसला किया। मुझे लगता है कि अब एक बार फिर एयर इंडिया का पुराना वैभव लौटेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 अक्टूबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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