Thursday, March 28, 2024
Advertisement

Rajat Sharma's Blog: क्यों कमजोर पड़ गया है किसान आंदोलन

लोकतन्त्र में सरकारें पब्लिक का मूड देखकर फैसले लेती हैंऔर जनता के समर्थन से झुकती हैं। इस आंदोलन की सबसे बड़ी कमी ये है कि राकेश टिकैत और दूसरे किसान नेताओं के साथ देश के लोगों का समर्थन नहीं है। 

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: October 30, 2021 15:43 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

पिछले 11 महीने से बंद दिल्ली के बॉर्डर्स को पुलिस ने शुक्रवार को खोल दिया। नेशनल हाईवे पर आवागमन सामान्य रूप से बहाल करने के लिए टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर से सारे बैरिकेड्स हटा दिए गए। दिल्ली पुलिस  ने बैरिकेड्स, कंटीले तार और कंक्रीट के बोल्डर हटाकर रास्ते को क्लियर कर दिया। आंदोलनकारी किसान ट्रैक्टरो पर सवार होकर दिल्ली में घुस न पाएं, इसके लिए पिछले साल ये बैरिकेड्स लगाए गए थे। इन बैरिकेड्स की वजह से इस रास्ते से होकर आनेजाने वाले या फिर आसपास रहनेवाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। जो दूरी 10 मिनट में तय की जा सकती थी उसे तय करने में तीन घंटे तक लग रहे थे। 

 
सुप्रीम कोर्ट ने हाईवे पर यातायात को सुचारू तरीके से बहाल करने के लिए किसान संगठनों को निर्देश दिया था कि वे अपने टेंट और सामान हटा लें। लेकिन शुक्रवार को किसानों की तरफ से टेंट हटाने का कोई संकेत नहीं मिला। वे हाईवे के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा बनाए हुए थे जिससे आवागमन अभी भी रुका हुआ है।  
 
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, धरनास्थल पर उनका  प्रदर्शन जारी रहेगा। उन्होंने दावा किया, दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बैरिकेड्स हटा रही है, क्योंकि हमने कोर्ट से कहा है कि 'हाईवे को पुलिस ने ब्लॉक कर रखा है, किसानों ने नहीं।'  टिकैत ने धमकी भी दी। उन्होंने कहा-'किसान अब राजधानी दिल्ली में दाखिल होने के लिए आजाद हैं, वे ट्रैक्टर से दिल्ली में दाखिल होंगे और संसद के बाहर धान बेचेंगे।' 
 
पिछले साल नवंबर में दिल्ली पुलिस ने राजधानी  के तीन प्रमुख एंट्री प्वाइंट्स पर बैरिकेड्स लगाए थे। लेकिन 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किला, आईटीओ और अन्य जगहों पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं के बाद पुलिस ने कांटेदार तार, कील, बड़े कंटेनर और कंक्रीट के पत्थर लगा दिए थे ताकि किसान संगठन के लोग फिर से दिल्ली में घुसकर उत्पात न मचा सकें। इसके बाद से गतिरोध जारी था। गाजीपुर में तो बैरिकेड्स की 12 लेयर बनाई गई थी। इन सभी को पुलिस ने शुक्रवार को हटा दिया। बैरिकेड्स हटाने के लिए क्रेन, जेसीबी मशीन और कर्मचारियों को लगाया गया।
 
दिल्ली पुलिस ने स्पष्ट कर दिया है कि अब उनकी तरफ से नेशनल हाईवे नंबर 9 पर कोई रुकावट नहीं है। पुलिस का कहना है कि गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर रास्ता क्लीयर कर दिया गया है। लेकिन हकीकत ये है कि NH-9 पर अभी भी ट्रैफिक शुरू नहीं हो पाया है। क्योंकि हाईवे की दो लेन पर किसानों ने अपने टेंट लगा रखे हैं। ट्रैफिक शुरू होने में सबसे बड़ी अड़चन आंदोलनकारी किसानों का मंच है। सड़क के बीचों-बीच आंदोलन का मुख्य मंच बना हुआ है जिसके कारण फिलहाल कोई भी गाड़ी एक तरफ से दूसरी तरफ नहीं जा सकती। किसानों ने मंच के पास कंक्रीट की पक्की दीवार बना रखी है। आंदोलन स्थल बड़ी संख्या में गाड़ियां और ट्रैक्टर हैं।
 
दिल्ली-हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर भी कमोबेश गाजीपुर बॉर्डर जैसे ही हालात हैं। यहां भी किसानों ने अपने टेंट और ट्रैक्टरों को नहीं हटाया है जबकि दिल्ली पुलिस ने सभी बैरिकेड्स, कंटीले तार और बोल्डर्स को हटा दिया है।
 
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में मैंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना से पूछा कि अचानक सारे  बैरिकेड्स हटाने के पीछे वजह क्या है। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस पिछले कई हफ्तों से लगातार दोनों पड़ोसी राज्यों और किसान नेताओं से बैरिकेड्स हटाने को लेकर बात कर रही थी ताकि आवागमन को सुचारू रूप से चालू किया जा सके। उन्होंने कहा, 'हम एक सकारात्मक संदेश देना चाहते थे कि पुलिस आवागमन को सुचारू रूप से चलाने के लिए तैयार है।'
 
किसान नेता राकेश टिकैत की इस धमकी पर कि किसान दिल्ली में घुसेंगे और संसद के बाहर धान बेचेंगे, राकेश अस्थाना ने कहा- 'अगर कानून-व्यवस्था को लेकर कोई समस्या होती है तो फिर हम उसे परिस्थितियों के मुताबिक समुचित तरीके से हैंडल करेंगे।' किसान नेताओं द्वारा अपने टेंट और मंच को हटाने से इनकार करने के सवाल पर दिल्ली पुलिस प्रमुख अस्थाना ने कहा, टेंट और मंच उत्तरप्रदेश की तरफ बनाए गए हैं। यूपी पुलिस और प्रशासन को इस पर फैसला लेना होगा और हम उनके साथ समन्वय रखेंगे। ‘मुझे उम्मीद है कि लोगों के आवागमन को आसान बनाने के लिए कोई रास्ता निकलेगा।'
 
राकेश टिकैत के टकराव वाले मूड से जुड़े सवाल पर अस्थाना ने कहा, 'हमें अभी भी पूरी उम्मीद है कि किसी तरह का कोई टकराव नहीं होगा। कानून-व्यवस्था बनाए रखना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। जब जैसे हालात होंगे हम उसे संभाल लेंगे।'
 
सिंघु बॉर्डर से बैरिकेड्स हटाए जाने के सवाल पर राकेश अस्थाना ने कहा,  टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर को हमने एक टेस्ट के तौर पर लिया है। अगर ट्रैफिक सामान्य तौर पर बिना किसी बाधा के शुरू हो जाता है तो हम सिंघु बार्डर से भी बैरीकेड्स हटा देंगे। बुनियादी तौर पर हम सबसे यही कहना चाहते हैं कि हमारी तरफ से एक सकारात्मक सोच के तहत यह कदम उठाया गया है ताकि यातायात फिर से चालू हो और जनजीवन सामान्य हो सके।'
 
एक ओर जहां दिल्ली पुलिस सकारात्मक रुख दिखा रही है वहीं दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा-'दिल्ली पुलिस बैरिकेडिंग हटा रही है तो किसानों के ट्रैक्टर भी तैयार हो रहे हैं । हम दिल्ली जाएंगे और संसद में धान बेचेंगे। सरकार ने कहा है कि अब किसान अपना अनाज देश में कहीं भी बेच सकता है । 11 महीने पहले हम दिल्ली जाने के लिए आए थे लेकिन पुलिस ने हमें यहां रोका। अब रास्ता खुलेगा तो सबसे पहले हम दिल्ली जाएंगे। सवाल रास्ते का नहीं है । सवाल एमएसपी का है, तीन कृषि क़ानून वापस लेने का है । हमने 26 नवंबर तक का सरकार को समय दिया है । हमारी मांगें मानी जाती है तो ठीक है, नहीं तो टेंट के पर्दे बदले जाएंगे। वाम धड़े के किसान सभा के नेता हन्नान मोल्ला भी टिकैत की बातों सहमत हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि किसान दिल्ली में घुसने की कोशिश नहीं करेंगे। 
 
संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार रात एक बयान जारी कर कहा कि न टेंट हटेंगे और न ही किसान घर जाएंगे। मोर्चा ने कहा कि आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने पड़ोसी राज्यों के सभी किसानों से अपील की है कि वे बॉर्डर के एंट्री प्वाइंट पर जल्द पहुंचे। 
 
किसान आंदोलन को शुरू हुए 11 महीने बीत गए। ये बहुत बड़ा वक्त होता है। लेकिन केंद्र सरकार, राकेश टिकैत और उनके सहयोगी किसान नेताओं के दबाव में नहीं आई। इसकी वजह सरकार की जिद नहीं पब्लिक का रुख है। बड़े पैमाने पर लोग कृषि कानूनों पर सरकार के रुख का समर्थन कर रहे हैं। लोकतन्त्र में सरकारें पब्लिक का मूड देखकर फैसले लेती है और जनता के समर्थन से झुकती है। इस आंदोलन की सबसे बड़ी कमी ये है कि राकेश टिकैत और दूसरे किसान नेताओं के साथ देश के लोगों का समर्थन नहीं है। 
 
किसानों के साथ सबकी पूरी सहानुभूति है लेकिन उनके नेताओं पर भरोसा नहीं है। पिछले साल जब संयुक्त किसान मोर्चे की कॉल पर पंजाब और हरियाणा से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचे थे तो उस वक्त लोगों को लगा कि ये बड़ा आंदोलन है। लोग इस आंदोलन के साथ जुड़े। जब किसान और उनके परिवार को लोगों ने सर्दी में सड़क पर बैठे देखा तो लोग कंबल और रजाइयां लेकर पहुंच गए। धरनास्थल पर कोई फल, कोई दूध, कोई सब्जी तो कोई आटा लेकर पहुंच गया। लोगों ने जब बारिश में भीगते किसानों को देखा तो सरकार के खिलाफ नाराजगी का इजहार भी किया। 
 
लेकिन जब किसान आंदोलन में देश-विरोधी लोग घुस गए, जब सियासी मजमा लगने लगा, देश विरोधी पोस्टर और नारे लगने लगे तो लोगों का दिल टूट गया। लोगों को लगा कि किसान ऐसे नहीं होते हैं। फिर जब 26 जनवरी को देशद्रोही तत्व जबरन लालकिले में घुस गए और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया, हिंसा हुई तो किसान आंदोलन के प्रति लोगों का भरोसा पूरी तरह टूट गया। लोगों को लगने लगा कि ये किसान नहीं, बल्कि किसान के वेश में राष्ट्रविरोधी तत्व हैं।
 
इसके बाद भी पुलिस या प्रशासन ने या फिर सरकार ने किसानों को ताकत के बल पर बॉर्डर से उठाने की कोशिश नहीं की। पिछले छह महीने में मैने कई बार रिपोर्टर्स को बॉर्डर पर भेजा। पता लगा कि अब सिर्फ टेंट लगे हैं, लेकिन टेंट में किसान नेता नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चे के कुछ कार्यकर्ता ही वहीं रहते हैं। 
 
सबसे मजे की बात ये है कि राकेश टिकैत जैसे किसान नेता, जो सरकार को चुनौती दे रहे हैं, वे  भी अब दिल्ली के बॉर्डर पर नहीं रहते। राकेश टिकैत, यूपी और हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ कैंपेन कर रहे हैं। गुरनाम सिंह चढ़ूनी को पहले ही किसान मोर्चे ने सस्पेंड कर दिया था। अब वो भी नेतागिरी कर रहे हैं। एक अन्य नेता योगेन्द्र यादव लखीमपुरी खीरी गए थे। उसके बाद से वो भी संयुक्त किसान मोर्चे से सस्पेंड चल रहे हैं। हन्नान मोल्ला अपने घर में हैं। शिवकुमार कक्का जी, दर्शनपाल सिंह, जोगिन्दर सिंह उगराहा, बलवीर सिंह राजेवाल और युद्धवीर सिंह भी लंबे अर्से से नहीं दिखे हैं। इसके बाद भी राकेश टिकैत संसद में धान बेचने की धमकी दे रहे हैं। 
 
असल में लोगों को लगने लगा है कि किसानों का यह आंदोलन किसानों की भलाई के लिए नहीं बल्कि बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए हो रहा है। इसीलिए लोगों ने किसान आंदोलन का साथ छोड़ा और यही इस आंदोलन के कमजोर होने की वजह है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 29 अक्टूबर, 2021 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement