Sunday, April 28, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: हाईवे ब्लॉक करने के लिए किसान नेताओं को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लताड़ा?

किसानों के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से संसद के पास जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने की अपील की थी।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: October 02, 2021 16:58 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंदोलन कर रहे किसानों से साफ-साफ कहा कि एक बार जब उन्होंने न्याय के लिए अदालत का रुख कर लिया तो वे 'सड़कों पर धरना नहीं दे सकते।' जस्टिस ए. एन. खानविलकर और जस्टिस सी. टी. रविकुमार की बेंच ने किसान महापंचायत के वकील से कहा: ‘आपने पूरे शहर का दम घोंट दिया है और अब आप शहर के भीतर आना चाहते हैं और यहां फिर से विरोध शुरू करना चाहते हैं। नागरिकों को स्वतंत्र रूप से आवाजाही करने का अधिकार है। क्या आपने कभी सोचा है कि सड़कों को अवरुद्ध करने के कारण उनके अधिकारों का हनन हो रहा है? क्या आपने आसपास के निवासियों से अनुमति ली है कि क्या वे आपके विरोध से खुश हैं? उनका काम-धंधा बंद हो गया है।’

कोर्ट ने यह भी कहा: ‘आप ट्रेनों को रोकते हैं, आप हाईवे को ब्लॉक करते हैं और फिर आप कहते हैं कि आपका विरोध शांतिपूर्ण है और जनता को कोई नुकसान नहीं हुआ है। क्या आप न्यायिक व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं? अगर आप अपना विरोध जारी रखना चाहते हैं, तो अदालत का रुख न करें।’

किसानों के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से संसद के पास जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने की अपील की थी। कोर्ट ने तब याचिका पर सुनवाई के लिए 8 अक्टूबर की तारीख तय की थी, और साथ ही याचिकाकर्ता को एक हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या वह किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहा है।

मेरे ख्याल से सुप्रीम कोर्ट ने वह बात कही जो देश के आम लोगों के दिल में है। इसने उन लोगों के दिल की बात कही है जो रास्ते रोके जाने के कारण नुकसान उठा रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा के समर्थक 10 महीने से अधिक समय से दिल्ली बॉर्डर के एंट्री पॉइंट्स पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत और उनके समर्थकों ने गाजीपुर बॉर्डर पर तंबू गाड़कर उसे जाम कर दिया है। गुरनाम सिंह चढूनी, जोगिंदर सिंह उग्रहां, दर्शन पाल और बलबीर सिंह राजेवाल का समर्थन करने वाले किसानों ने सिंघू और टीकरी बॉर्डर के एंट्री पॉइंट्स को ब्लॉक कर रखा है।

दिल्ली बॉर्डर के इन एंट्री पाइंट्स पर किसानों ने तंबू लगा रखे हैं, लंगर चला रहे हैं और इन सबके चलते पिछले करीब एक साल से आम आदमी को परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। पहले जो रास्ता मुश्किल से 10 मिनट में तय हो जाता था, अब डायवर्ट किए गए रूट्स से उसे तय करने में 3 घंटे से ज्यादा का वक्त लग जाता है। मरीजों के लिए समय पर अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो रहा है, किसानों की सब्जियां मंडी तक नहीं पहुंच पा रही हैं, दिल्ली में दूध सप्लाई करने वाले लोगों का दूध बर्बाद हो रहा है, लेकिन किसान आंदोलन के नेता कहते हैं कि वे क्या करें। वे कहते हैं कि अगर किसान परेशान है, तो जनता को भी परेशानी झेलनी पड़ेगी।

इसीलिए कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। मैं पिछले कई महीनों से किसानों के विरोध को लेकर यही बात कह रहा हूं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की हैं।

अदालत ‘शांतिपूर्ण विरोध’ शब्द के इस्तेमाल पर नाराज थी। उसने 26 सितंबर को भारत बंद के दौरान जालंधर के पास सेना के काफिले को रोकने की घटना की तरफ इशारा किया, जिसके वीडियो मैंने अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में दिखाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसान नेताओं का रवैया संतुलित होना चाहिए। उन्हें विरोध करने का अधिकार है, लेकिन वे आम जनजीवन में व्यवधान पैदा नहीं कर सकते, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकते या सुरक्षा कर्मियों पर हमला नहीं कर सकते। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने राकेश टिकैत से प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से दावा किया कि किसानों ने रास्ता नहीं रोका, बल्कि इसे तो पुलिस ने बंद कर रखा है।

अब सवाल यह है कि अगर किसान धरने पर बैठेंगे, बॉर्डर सील करेंगे, सड़क पर टेंट लगाएंगे, स्ट्रक्चर खड़े करेंगे तो रास्ते बंद होना तो लाजिमी है।

किसान नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को उनका पक्ष नहीं पता, पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले 3 सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने किसान नेताओं को कृषि कानूनों पर अपना पक्ष रखने की दावत दी थी, लेकिन किसान संगठनों ने इस से बात करने से इनकार कर दिया था। शुक्रवार को जब एक किसान नेता से पूछा गया कि अगर वह संसद को नहीं मानते, सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं सुनते, फिर किसकी बात सुनेंगे तो जवाब मिला कि ‘हम जनता की बात सुनेंगे, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सबसे ऊपर है।’

इन नेताओं को यह समझना चाहिए कि इसी जनता ने सांसदों को चुना है, और इन्हीं सांसदों ने कृषि विधेयकों को पारित किया है, और इसी संसद ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना है। मोदी ने कई बार किसानों को आश्वासन दिया है कि नए कानून उनके फायदे के लिए बनाए गए हैं।

किसान नेताओं को अब जनता की चुनी हुई सरकार से बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू करना चाहिए, या फिर सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर अमल करना चाहिए। लोकतंत्र में जो संस्थाएं बनी हैं, जो परम्पराएं बनी हैं, उन्हीं के माध्यम से रास्ता निकले तो बेहतर होगा। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का जो रुख है, उससे लगता नहीं है कि वे रास्ता निकालने के मूड में हैं।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आंदोलन करने वाले किसान संगठन सरकार के खिलाफ रोज-रोज नए मोर्चे खोल देते हैं। हरियाणा के झज्जर के अंबाला में धान की जल्द खरीद की मांग को लेकर चढूनी गुट के समर्थकों ने पहले ही विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। चढूनी ने धमकी दी है कि उनके समर्थक हरियाणा में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के मंत्रियों और विधायकों का घेराव करेंगे। पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल भी इसमें शामिल हो गए हैं।

केंद्र ने इस साल उत्तर भारत में सितंबर के दौरान मॉनसून की बेमौसम बारिश के कारण धान खरीद को टालने का फैसला किया था। यदि धान की खरीद अभी शुरू होती है तो किसानों को बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि धान में नमी होने पर उसकी कीमत ए ग्रेड धान के लिए निर्धारित 1960 रुपये प्रति क्विंटल की MSP से 10 से 20 प्रतिशत कम होगी। केंद्र को उम्मीद है कि 5 अक्टूबर तक बारिश बंद हो जाएगी और अच्छी धूप निकलने के बाद 11 अक्टूबर से धान की खरीद शुरू हो सकती है। ऐसे में किसानों को कम नमी वाले धान की बेहतर कीमत मिल सकती है। लेकिन यह बात न तो किसान नेता और न ही अकाली नेता किसानों को बता रहे हैं। ये नेता पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी-अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं और किसानों को इसका मोहरा बनाना चाहते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 अक्टूबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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