Monday, April 29, 2024
Advertisement

भगोरिया मेले में गुलाल लगा देने से ही दुल्हन नहीं मिल जाती! बदल रही है आदिवासी युवाओं की सोच

पश्चिमी मध्य प्रदेश की जनजातीय संस्कृति के लिए मशहूर भगोरिया मेलों को आदिवासी युवक-युवतियों के "प्रेम पर्व" के रूप में लम्बे समय से प्रचारित किया जाता रहा है।

Bhasha Written by: Bhasha
Published on: March 03, 2019 14:56 IST
Representational Image- India TV Hindi
Image Source : HTTP://BUNKYO.INFO Representational Image

इंदौर: पश्चिमी मध्य प्रदेश की जनजातीय संस्कृति के लिए मशहूर भगोरिया मेलों को आदिवासी युवक-युवतियों के "प्रेम पर्व" के रूप में लम्बे समय से प्रचारित किया जाता रहा है। लेकिन, आधुनिकता के प्रभावों से भगोरिया का स्वरूप साल-दर-साल बदलने के बीच नई पीढ़ी के जनजातीय युवा अब इन पारम्परिक मेलों की पृष्ठभूमि में अपने समुदाय के "गलत चित्रण" के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं।

देश-विदेश के सैलानियों को लुभाने वाले भगोरिया हाटों का हफ्ते भर चलने वाला रंगारंग सिलसिला इस बार 14 मार्च से शुरू होने जा रहा है। विशाल मेलों की तरह दिखाई देने वाले ये सालाना हाट झाबुआ, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों के 100 से ज्यादा स्थानों पर होली के त्योहार से पहले अलग-अलग दिनों में लगेंगे।

भगोरिया हाटों की सदियों पुरानी परंपरा जनजातीय युवाओं के बेहद अनूठे ढंग से जीवनसाथी चुनने की दिलचस्प कहानियों के लिए भी मशहूर है। इन कहानियों के मुताबिक भगोरिया मेले में आदिवासी युवक पान का बीड़ा पेश कर युवती के सामने अपने प्रेम का इजहार करत है और उसके चेहरे पर गुलाल लगा देता है। 

युवती के बीड़ा ले लेने का मतलब है कि उसने युवक का प्रेम निवेदन स्वीकार कर लिया है। इसके बाद यह जोड़ा भगोरिया मेले से भाग जाता है और तब तक घर नहीं लौटता, जब तक दोनों के परिवार उनकी शादी के लिए रजामंद नहीं हो जाते। हालांकि, भगोरिया से जुड़ी ऐसी कहानियों के खिलाफ आदिवासी समुदाय के पढ़े-लिखे युवा अब मुखर हो रहे हैं।

आदिवासी बहुल धार जिले के मनावर क्षेत्र से कांग्रेस विधायक और जनजातीय संगठन "जय आदिवासी युवा शक्ति" के संरक्षक हीरालाल अलावा (36) ने कहा, "यह महज भ्रम है कि भगोरिया मेलों में मिलने के बाद आदिवासी युवक-युवती अपने घरों से भाग जाते हैं। दरअसल, भगोरिया आदिवासियों के उल्लास का सांस्कृतिक पर्व है। आदिवासी समुदाय के लोग होलिका दहन से पहले भगोरिया मेलों में कपड़े, पूजन सामग्री और अन्य वस्तुओं की खरीदारी करते हैं।"

नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की सहायक प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में उतरे हीरालाल ने कहा, "हफ्ते भर चलने वाले भगोरिया मेलों को कुछ लोग "आदिवासियों के वेलेन्टाइन वीक" की उपमा भी देते हैं। लेकिन, यह बात भी सरासर गलत है। हम चाहते हैं कि इन मेलों के सन्दर्भ में आदिवासियों की सही छवि प्रस्तुत की जाए।"

पश्चिमी मध्य प्रदेश के एक अन्य आदिवासी बहुल जिले बड़वानी में BA की पढ़ाई कर रहीं संगीता चौहान (27) कहती हैं, "भगोरिया मेलों को लेकर खासकर गैर आदिवासियों द्वारा पिछले कई वर्षों से गलत सन्देश दिया जा रहा है कि इनमें मिलने वाले आदिवासी युवक-युवती शादी के इरादे से अपने घरों से भाग जाते हैं। इन मेलों में सभी आदिवासी लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं और इसका प्रेम निवेदन या शादी-ब्याह से कोई संबंध नहीं है।"

बहरहाल, इस बात को लेकर कोई दो राय नहीं है कि पश्चिमी मध्य प्रदेश के हजारों आदिवासी युवाओं को भगोरिया मेलों का बेसब्री से इंतजार रहता है। हर साल टेसू (पलाश) के पेड़ों पर खिलने वाले सिंदूरी फूल उन्हें फागुन के साथ उनके इस प्रमुख लोक पर्व की आमद का संदेश भी देते हैं।

अपनी पारम्परिक वेश-भूषा में सजी आदिवासी टोलियां ढोल और मांदल (पारंपरिक बाजा) की थाप और बांसुरी की स्वर लहरियों पर थिरकती हुई भगोरिया मेलों में पहुंचती हैं और होली से पहले जरूरी खरीदारी करने के साथ फागुनी उल्लास में डूब जाती है। 

ताड़ी (ताड़ के पेड़ के रस से बनी देसी शराब) के बगैर भगोरिया हाटों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दूधिया रंग का यह मादक पदार्थ इन हाटों में शामिल आदिवासियों की मस्ती को सातवें आसमान पर पहुंचा देता है। भगोरिया हाटों पर आधुनिकता का असर भी महसूस किया जाने लगा है, लेकिन इन वक्ती बदलावों के बावजूद इनमें आदिवासी संस्कृति के चटख पारंपरिक रंग अब भी बरकरार हैं।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement