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किसी को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहना गलत लेकिन... सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, शख्स को कर दिया बरी

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने 11 फरवरी को ये फैसला सुनाया। आरोपी पर एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने का आरोप था, जबकि वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा था।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Mar 04, 2025 03:47 pm IST, Updated : Mar 04, 2025 03:47 pm IST
Supreme court- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय से जुड़ी टिप्पणी को लेकर अहम बात कही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहना भले सुनने में ठीक नहीं लगता हो, लेकिन ऐसे मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा अपराध नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में यह टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान के तहत एक आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा कि यह टिप्पणी, हालांकि अनुचित थी, लेकिन आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए जरूरी कानूनी बाध्यता को पूरा नहीं करती।

मामले में क्या आरोप?

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने 11 फरवरी को ये फैसला सुनाया। आरोपी पर एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने का आरोप था, जबकि वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा था।

मामला उप-विभागीय कार्यालय, चास में एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क (सूचना का अधिकार) की तरफ से दर्ज एफआईआर से जुड़ा था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जब वह आरटीआई आवेदन के संबंध में जानकारी देने के लिए अपीलकर्ता से मिलने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया। साथ ही आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन को रोकने के लिए आपराधिक बल का इस्तेमाल किया।

इसके बाद अनुवादक ने आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज कराई। जांच के बाद निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत भी आरोप तय करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को तीनों आरोपों से किया मुक्त

झारखंड हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने के अनुरोध वाली आरोपी की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उसे जानबूझकर अपमान करने के अपराध से मुक्त कर दिया और कहा कि धारा 353 के अलावा ‘‘उसकी ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया, जिससे शांति भंग हो सकती हो।’’ कोर्ट ने कहा, ‘‘हम हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हैं, जिसमें निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा गया था। हम अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हैं तथा अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए तीनों आरोपों से मुक्त करते हैं।’’

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में क्या कहा?

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 353 के तहत आरोप को कायम रखने के लिए हमले या बल प्रयोग का कोई सबूत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहना गलत होगा, लेकिन इससे उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं माना जाएगा। अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द आदि बोलना) के तहत आरोप से एक व्यक्ति को मुक्त कर दिया। (भाषा इनपुट्स के साथ)

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