पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद और अपराधी से राजनेता बने शहाबुद्दीन के कटाक्ष 'परिस्थितिजन्य मुख्यमंत्री' का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने उन्हें शासनादेश दिया है। मुख्यमंत्री ने मीडिया से यह भी कहा कि ऐसे लोगों को तवज्जो देकर अपना समय और जगह बर्बाद न करें। शहाबुद्दीन ने भागलपुर सेंट्रल जेल से शनिवार को बाहर निकलने के तुरंत बाद कहा था कि उनके नेता राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं।
नीतीश कुमार ने कहा,’मुझे किसी के या सभी के बयानों पर प्रतिक्रिया देने के लिए जनादेश नहीं मिला है। दुनिया को मालूम है कि बिहार की जनता का क्या मैंडेट है।’ उन्होंने सवालिया लहजे में आगे कहा,’क्या मुझे इसलिए जनादेश मिला है कि मैं किसी की भी बात पर प्रतिक्रिया देता रहूं? कोई कुछ बोल रहा है तो हम उस पर ध्यान क्यों दें? हम तो जनादेश के मुताबिक ही काम करेंगे।’
राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन ने शनिवार को भागलपुर जेल से रिहा होने के बाद कहा, ‘नीतीश कुमार परिस्थितिजन्य मुख्यमंत्री हैं, हमारे नेता लालू प्रसाद थे, हैं और रहेंगे। नीतीश कुमार परिस्थिति के अनुसार अपना रुख बदल लेते हैं। वह मेरे नेता नहीं हैं। लालू हमेशा मेरे नेता रहेंगे।’ इस बयान का जनता दल (युनाइटेड) के श्याम रजक, नीरज कुमार और संजय सिंह जैसे कुछ नेताओं ने प्रतिकार किया था। इन्होंने कहा था कि जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के सत्तारूढ़ महागठबंधन ने वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर चुनाव जीता था।
शहाबुद्दीन शनिवार को 11 साल तक विभिन्न मामलों में जेल में रहने के बाद पटना हाईकोर्ट द्वारा राजीव रोशन की हत्या मामले में जमानत मिलने के बाद रिहा हुए हैं। जेल से बाहर निकलने के बाद उनके सैकड़ों समर्थकों ने जश्न मनाकर उनका स्वागत किया। शहाबुद्दीन ने दावा किया कि उन पर आपराधिक मामले मढ़े गए हैं और पटना हाईकोर्ट से चार दिनों पहले एक गवाह की हत्या के मामले में मिली जमानत का राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है।
शहाबुद्दीन पर हत्या, रंगदारी और अपहरण के 35 आपराधिक मामले चल रहे हैं। 7 मामलों में उन्हें दोषी करार दिया जा चुका है। वर्ष 2005 में गिरफ्तारी से पहले वह राष्ट्रीय जनता दल के सांसद थे। वर्ष 1996 से 2009 तक वह चार बार सीवान से राष्ट्रीय जनता दल के सांसद रह चुके हैं। शहाबुद्दीन का सीवान में करीब दो दशकों तक आतंक रहा है। शहाबुद्दीन को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या के लिए भी जाना जाता है। इनमें जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चंद्रशेखर की वर्ष 1997 में हुई हत्या भी शामिल है।
वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव तक सीवान की सड़कों पर दूसरे राजनीतिक दलों के प्रचार वाहन को चलने की इजाजत नहीं थी। प्रतिद्वंद्वी दलों के कार्यकर्ता उत्तर बिहार के चुनाव क्षेत्रों में पोस्टर लगाने से डरते थे। वर्ष 2005 में राष्ट्रपति शासन के दौरान क्रमश: सीवान के जिलाधिकारी और एसपी रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सी.के. अनिल और भारतीय पुलिस सेवा के रतन संजय ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की थी और उन्हें जिला से बाहर भागना पड़ा था।
शहाबुद्दीन को पहली बार वर्ष 2007 में भाकपा (माले) के छोटे लाल गुप्ता के अपहरण के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। तब से आधे दर्जन और मामलों में सजा हो चुकी है। शहाबुद्दीन ने जेल से निकलने के बाद यह भी कहा है,’मुझे अपनी इमेज नहीं सुधारनी है, जनता को मेरी यही इमेज पसंद है।’