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Parshuram Jayanti 2022: परशुराम ने 21 बार धरती को किया था क्षत्रिय विहीन, जानिए क्या थी उनके क्रोध की वजह

परशुराम जयंती इस बार 3 मई को है। जानिए भगवान परशुराम ने क्यों 21 बार क्षत्रिय संहार किया था।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : May 03, 2022 12:47 IST
Parshuram Jayanti 2022- India TV Hindi
Image Source : PIXABAY Parshuram Jayanti 2022

धर्म डेस्क: वैशाख मास की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के साथ-साथ परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम कलयुग में भी जीवित है। भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं। भगवान परशुराम एक ऐसे देवता हैं जिन्हें क्रोध बहुत ही जल्दी आता है। इस क्रोध में आकर यह कुछ भी कर देते थे। इनकी एक कथा है कि इन्होंने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया। आखिर ऐसा क्या हुआ जो भगवान परशुराम ने ऐसा कदम उठाया। हिंदू धर्म के पुराणों में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। 

21 क्षत्रियों के संहार की कथा

महिष्मती नगर के राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के है। इस वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे | सहस्त्रार्जुन का वास्तवीक नाम अर्जुन था। उन्होने दत्तत्राई को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। दत्तत्राई उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा तो उसने दत्तत्राई से 10000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया।  इसके बाद उसका नाम अर्जुन से सहस्त्रार्जुन पड़ा। इसे सहस्त्राबाहू और राजा कार्तवीर्य पुत्र होने के कारण कार्तेयवीर भी कहा जाता है।

माना जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में इतना चूर हो गया कि उसे कुछ भी याद न रहा और वह धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चुका था। उसके अत्याचार व अनाचार से पूरी जनता परेशान हो चुकी थी। वह इतना घंमड में चूर हो गया था कि उसने वेद –पुराण और धार्मिक ग्रंथों को तक नहीं छोड़ा। उन्हें गलत बताकर ब्राह्मण का अपमान करता ऋषियों के आश्रम को नष्ट कर उनका वध कर देता था। इससे ज्यादा तब परेशान हो गए जब  वह अपनी खुशी और मनोरंजन के लिए अबला स्त्रियों को उठा कर उनता सतीत्व खत्म करने लगा।

एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ झाड–जंगलों से पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन को आश्रम का मेहमान समझकर स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। कहते हैं ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इन्द्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक अदभुत गाय थी।

महर्षि ने उस गाय के मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते पूरी सेना के भोजन का प्रबंध कर दिया। कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु की मांग की। ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई।

जब परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तब उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए। पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया।

परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया।

सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। तब मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने सहयोगी क्षत्रियों की मदद से तपस्यारत महर्षि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनका वध कर दिया |

सहस्त्रार्जुन पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों का वध करते हुए, आश्रम को जला डाला। माता रेणुका ने सहायतावश पुत्र परशुराम को विलाप स्वर में पुकारा। जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।

यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह जब तक उस वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। पुराणों के उनुसार उन्होने इस वचन को पूरा भी किया था। भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करके उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र के पांच सरोवर को भर कर अपने संकल्प को पूरा किया। कहा जाता है कि महर्षि ऋचीक ने स्वयं प्रकट होकर भगवान परशुराम को ऐसा करने से रोक दिया था तब जाकर किसी तरह क्षत्रियों का विनाश भूलोक पर रुका। तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपने पितरों के श्राद्ध क्रिया किया और उनके आज्ञानुसार अश्वमेध और विश्वजीत यज्ञ भी किया।

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