RJD, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बयानों से ये तो साफ है कि विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल पार्टियां अयोध्या के मुद्दे पर कन्फ्यूज़्ड हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बीजेपी के आक्रामक रुख़ को कैसे काउंटर करें। इसी कन्फ्यूजन में गलतियां हो रही हैं, बेतुके बयान आ रहे हैं।
राहुल गांधी ने अडानी के नाम को मोदी पर हमले का हथियार बना लिया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने अडानी को क्लीन चिट दे दी, तो राहुल कहीं दिखाई नहीं दिए। उन्होंने कोई ट्वीट नहीं किया।
2014 में लोकसभा चुनाव से पहले जब मोदी ‘आप की अदालत’ में आए थे, तो उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं मुस्लिम नौजवानों के एक हाथ में कुरान हो और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो। अगर वो प्रधानमंत्री बने तो 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे पर काम करेंगे। मोदी ने दस साल तक इसी थीम पर काम किया।
मुझे इस बात को लेकर कोई गिला नहीं कि ललन ने झूठ बोला या तेजस्वी ने गलत बयानी की। जनता जानती है कि इस तरह की बातें करना इन सबकी आदत है। मेरी शिकायत इस बात से है कि इन दोनों ने पत्रकारों पर लांछन लगाया। इन्होंने अखबारों और मीडिया चैनल्स पर निहायत ही घटिया आरोप लगया।
क़तर की गुप्तचर एजेंसी स्टेट सिक्यूरिटी ब्यूरो ने पिछले साल अगस्त में कतर की एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे नौसेना के आठ पूर्व अफसरों को जासूसी के इल्जाम में गिरफ्तार किया था।
राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने से पहले अयोध्या में एक छोटा राम मंदिर बनाने का ही प्लान था लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में रामलला की जीत हुई, तो मंदिर के मूल डिजाइन में बदलाव किया गया।
जिस दिन बृजभूषण ने कहा था कि दबदबा कायम रहेगा, उसी दिन मैंने कहा था कि वक्त बदलते देर नहीं लगती, ये अहंकार ज्यादा वक्त नहीं रहेगा, बेटियों के आंसू बेकार नहीं जाएंगे।
नीतीश कुमार जानते हैं कि अब बिहार में उनकी पारी खत्म हो चुकी है, वो किसी तरह समय काट रहे हैं। उन्होंने बड़े जोश से मोदी-विरोधी पार्टियों को इकट्ठा किया था।वो इस गठबंधन के नेता बनना चाहते थे लेकिन पहले कांग्रेस ने राहुल गांधी के लिए उनको आउट कर दिया, फिर ममता ने खरगे का नाम चलाकर रही सही कसर भी पूरी कर दी।
बृजभूषण और उनके परिवार के किसी सदस्य पर फेडरेशन का चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई लेकिन इसके बाद भी बृजभूषण बहादुर पहलवान बेटियों पर हंसते नजर आए।
अपनी गलतियों के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराना राहुल गांधी की आदत हो गई है। वो कैसे कह सकते हैं कि MPs के सस्पेन्शन पर मीडिया में चर्चा नहीं हुई? खूब हुई।
विरोधी दल बड़ी संख्या में सांसदों के सस्पेंशन को मुद्दा बना रहे थे, सरकार पर तानाशाही का इल्जाम लगा रहे थे, लोगों की सहानुभूति भी विपक्ष के साथ थी, लेकिन अब इस हरकत ने सारा गुड़ गोबर कर दिया।
चूंकि सरकार के कई महत्वपूर्ण विधेयक लम्बित हैं, सरकार जल्द से जल्द ये सारे बिल पास करवाना चाहती है और विपक्ष सरकार को वॉकओवर देने को तैयार नहीं है।
ये संयोग है या प्रयोग? इसका जवाब मिलता पाता उससे पहले ही पार्लियामेंट का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया, न बहस का मौका मिला, ना बात करने का ।
मुझे लगता है संसद में जो हंगामा हुआ और उसके बाद जो निलम्बन हुआ, दोनों की जरूरत नहीं थी। इससे बचा जा सकता था।
जिस संसद भवन की दर्शक दीर्घा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा के तीन-तीन स्तरों से गुजरना पड़ता है, जहां कोई पेन, सिक्का और मोबाइल तक नहीं ले जा सकता, वहां 2-2 शख्स गैस कैनेस्टर्स लेकर कैसे पहुंच गए?
भजन लाल शर्मा बीस साल से संगठन में काम कर रहे थे, चार बार प्रदेश के महामंत्री रहे, लेकिन सिर्फ इस आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी।
1947 में जम्मू-कश्मीर रियासत का जब भारत में विलय हुआ, उसके बाद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देना एक अस्थायी व्यवस्था थी क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे।
महुआ के खिलाफ एक्शन का सियासी असर ये हुआ कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान जो विपक्ष बिखरा हुआ दिख रहा था, विरोधी दलों के जिस गठबंधन में दरारें दिख रही थीं, महुआ की सजा ने उस मोर्चे के सभी नेताओं को फिर एक साथ खड़ा कर दिया।
कांग्रेस के नेताओं ने अपने चेहरे पर ये जो कालिख लगाई है वो तो धोने से उतर जाएगी लेकिन कांग्रेस के चेहरे पर हार की जो कालिख लगी है, उसके दाग इतनी जल्दी नहीं मिटेंगे।
नोट करने वाली बात ये है कि अब तक जितने क़त्ल हुए हैं, उसमें उन्हीं दहशतगर्दों की मौत हुई है जिनका भारत में हुए हमलों में बड़ा रोल रहा है।
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