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सिर्फ 'शारीरिक संबंध' कहने से नहीं साबित होगा दुष्कर्म, साक्ष्य जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि साक्ष्यों के बिना महज “शारीरिक संबंध” शब्द का इस्तेमाल दुष्कर्म या शील भंग के मामलों को स्थापित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।

Edited By: Amar Deep @amardeepmau
Published : Oct 21, 2025 06:47 pm IST, Updated : Oct 21, 2025 06:47 pm IST
दिल्ली हाई कोर्ट।- India TV Hindi
Image Source : PTI/FILE दिल्ली हाई कोर्ट।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि साक्ष्यों के बिना महज “शारीरिक संबंध” शब्द का इस्तेमाल दुष्कर्म या शील भंग के मामलों को स्थापित करने के लिये पर्याप्त नहीं है। अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए की, जिसमें उसने बलात्कार के मामले में अपनी दोषसिद्धि और 10 वर्ष के कारावास को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था। 

कोर्ट ने युवक को किया बरी

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने 17 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा, “इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का प्रयोग, बिना किसी सहायक साक्ष्य के, यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है।” कोर्ट ने कहा, “आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि कायम रखने योग्य नहीं है।” 

निचली अदालत ने युवक से नहीं पूछे सवाल

कोर्ट ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए कहा कि वह मामले का निर्णय उसके गुण-दोष के आधार पर करने के लिए बाध्य है। फैसले में कहा गया है कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता ने बार-बार कहा कि “शारीरिक संबंध” स्थापित किए गए थे, हालांकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि इस अभिव्यक्ति का क्या मतलब था। कोर्ट ने कहा, “कथित कृत्य का कोई और विवरण नहीं दिया गया है। दुर्भाग्य से, अभियोजन पक्ष या अधीनस्थ अदालत ने पीड़ित से कोई प्रश्न नहीं पूछा, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि याचिकाकर्ता पर लगाए गए अपराध के आवश्यक तत्व सिद्ध हुए हैं या नहीं।” 

2023 के मामले की चल रही थी सुनवाई

कोर्ट 2023 में दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें 16 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसके रिश्ते के भाई ने 2014 में शादी का झूठा झांसा देकर एक साल से अधिक समय तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। व्यक्ति ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी और हाई कोर्ट ने उसकी अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल मौखिक साक्ष्य पर आधारित है, जो कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता की गवाही है तथा रिकॉर्ड में कोई फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं है। 

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा कि “शारीरिक संबंध” शब्द का प्रयोग या परिभाषा न तो आईपीसी के तहत दी गई है और न ही पॉक्सो अधिनियम के तहत। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि नाबालिग पीड़िता का “शारीरिक संबंध” शब्द से क्या तात्पर्य है और क्या इसमें शील भंग का प्रयास शामिल था। (इनपुट- पीटीआई)

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