Friday, March 29, 2024
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व्यापम के बाद मध्य प्रदेश में एक और बड़ा मेडिकल घोटाला, जानिए कैसे मिली 278 लोगों को बिना पढ़े डिग्री

इस पूरे मामले की शुरुआत 16 अगस्त, 2021 को होती है, जब सात याचिकाकर्ताओं ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ये याचिका कर्ता कोर्ट में कहते हैं कि यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों में 2018-19 परीक्षाओं में शासन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है।

India TV News Desk Edited By: India TV News Desk
Published on: November 10, 2022 13:16 IST
medical scam in Madhya Pradesh- India TV Hindi
Image Source : PIXABAY मध्य प्रदेश में एक और बड़ा मेडिकल घोटाला

मेडिकल की पढ़ाई को लेकर मध्य प्रदेश हमेशा से सुर्खियों में रहा है। आपको याद होगा कुछ समय पहले कैसे व्यापम घोटाले को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा था। अब ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर से सामने आया है, जहां एक मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी ने 278 ऐसे लोगों को डिग्री दे दी, जिन्होंने कभी कॉलेज में क्लास ही नहीं ली। कुछ का तो यहां तक कहना है कि जिन लोगों को ये डिग्री दी गई है, वो कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र ही नहीं हैं।

क्या था पूरा मामला?

इस पूरे मामले की शुरुआत 16 अगस्त, 2021 को होती है, जब सात याचिकाकर्ताओं ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ये याचिका कर्ता कोर्ट में कहते हैं कि यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों में 2018-19 परीक्षाओं में शासन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। ऐसे में इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। याचिकाकर्ताओं के इन दावों पर विचार करते हुए अदालत ने राज्य सरकार को 4 अक्टूबर, 2021 को एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया। इस समिति में एक रिटायर्ड हाईकोर्ट के जज, एक पुलिस अधिकारी और तीन एक्सपर्ट को शामिल किया गया। इसके सात दिन बाद, राज्य सरकार ने केके त्रिवेदी को समिति का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया।

समिति ने जांच को लेकर क्या कहा

समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि यूनिवर्सिटी ने कोर्सेज में एडमिशन लेने वाले और डिग्री हासिल करने वाले 278 छात्रों के बीच का जो डाटा दिया वो डाटा मेल नहीं खाता है। रिपोर्ट में आगे बताया जाता है कि यूनिवर्सिटी ने केवल कुछ उम्मीदवारों और संस्थानों के संबंध में ही काम किया है। जबकि इनमें से ज्यादातर मामलों में, अन्य उम्मीदवारों के नाम पर मार्कशीट जारी की गई थी, जबकि एनरॉलमेंट नंबर पर एक अलग ही नाम था।

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