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अध्ययन, जिसमें 30 वर्षों के 450 से अधिक शोध पत्रों की समीक्षा की गई, उसमें दावा किया गया है कि सदी के अंत तक पृथ्वी की जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्से के विलुप्त होने का खतरा है।
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5 दिसंबर को साइंस में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार, यदि वर्तमान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अनियंत्रित जारी रहा, तो साल 2100 तक पृथ्वी की एक-तिहाई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
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धरती पर बढ़ रहे तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि अभी भी लगभग 180,000 प्रजातियों - दुनिया भर में 50 में से 1 - को विलुप्त होने के खतरे में डाल सकती है।
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कनेक्टिकट विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानी मार्क अर्बन द्वारा किए गए शोध में प्रजातियों के अस्तित्व पर विभिन्न वार्मिंग परिदृश्यों के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।
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दुनिया भर के स्तनधारियों, पक्षियों और उभयचरों के प्राकृतिक तौर पर रहने वाले आवासों को औसतन 18 फीसदी का नुकसान हुआ है। यह नुकसान अगले 80 वर्षों में लगभग 23 फीसदी तक बढ़ सकता है।
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प्रजातियों का विलुप्त होना इस बात पर निर्भर करता है कि प्रजाति कितनी खतरे में है। प्रभावी संरक्षण रणनीतियों को तैयार करने के लिए बेहतर समझ की आवश्यकता होती है।
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खराब जलवायु हमें वास्तविक तबाही की स्थिति में डाल देगा। समुद्र स्तर में वृद्धि 80 सेंटीमीटर से अधिक हो सकती है। तटीय शहरों में बाढ़ आना तथा क्षेत्रों का लुप्त होना भी संभव है।
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अगर दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित पशु प्रजातियों में से एक को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो अफ्रीकी हाथी दो दशकों के भीतर गायब हो जाएगा।
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इंग्लैंड की ब्रिस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी हालिया रिसर्च में कहा है कि अगले 25 करोड़ सालों में इंसान और दूसरे सभी स्तनधारी विलुप्त हो जाएंगे।
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100 वर्षों में, कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं या अत्यधिक संकटग्रस्त हो सकती हैं। क्रिल, ब्लू व्हेल, हॉक्सबिल कछुए और रिंग्ड सील के अगली सदी में विलुप्त होने का खतरा है क्योंकि उनका भोजन और आवास गायब हो जाएगा।