नई दिल्ली: मेजर सोमनाथ शर्मा भारत के पहले ऐसे योद्धा थे जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया था। वह मेजर सोमनाथ शर्मा ही थे, जिनकी जाबांजी के आगे पाकिस्तान के नापाक इरादों को अपने घुटने टेकने पड़े थे और श्रीनगर एयरपोर्ट पर कब्जा करने का उनका ख्वाब अधूरा ही रह गया था। आज, 3 नवंबर को, मेजर सोमनाथ शर्मा की शहादत के दिन भारतीय सेना के साथ-साथ पूरा राष्ट्र उन्हें याद कर रहा है और श्रद्धांजलि दे रहा है।
तब के पंजाब और आज के हिमाचल में हुआ था जन्म
सोमनाथ का जन्म 31 जनवरी 1923 को तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया के पंजाब प्रांत में दाढ़ नाम के गांव में हुआ था। आज यह जगह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में पड़ती है। सोमनाथ के पिता भी सेना में अफसर थे। उनके कई अन्य रिश्तेदार भी भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दे चुके हैं। शर्मा की स्कूली शिक्षा नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में हुई थी। इसके बाद वह देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिटरी कॉलेज चले गए और वहां से ब्रिटेन के सैंडहर्स्ट में स्थित रॉयल मिलिटरी कॉलेज।
बचपन में भगवद्गीता से प्रभावित थे सोमनाथ
सोमनाथ के जीवन पर भगवद्गीता का खासा प्रभाव पड़ा था। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गीता के ज्ञान ने उन्हें काफी प्रभावित किया था। 1942 में रॉयल मिलिटरी कॉलेज से लौटने के बाद सोमनाथ ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट में अफसर बन गए। सोमनाथ ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तरफ से जापानियों से भी लोहा लिया था।
चोट के बावजूद जंग पर जाने की जिद की
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में हमला बोल दिया। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना का एक दल इसके जवाब में घाटी पहुंचा। कुमाऊं रेजिमेंट की डी कंपनी मेजर शर्मा के नेतृत्व में श्रीनगर पहुंची। इस समय मेजर शर्मा चोटिल थे और उनके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था, और उन्हें लड़ाई पर जाने से मना कर दिया गया था। लेकिन उनके मजबूत इरादों के आगे अफसरों की एक न चली और उन्हें जंग के मैदान में जाने की इजाजत दे दी गई।
गोलियां बरस रही थीं लेकिन जवाब देने की इजाजत नहीं थी
3 नवंबर को बडगाम में सेना की तीन कमांड्स को भेजा गया था। लेकिन दुश्मनों की तरफ से कोई गतिविधि न देखकर तीन में से दो कमांड वापस श्रीनगर लौट गए। शर्मा को शाम के 3 बजे तक बडगाम में डटे रहने के लिए कहा गया था। 2 बजकर 35 मिनट पर बडगाम के घरों से उनकी कंपनी पर भयंकर गोलाबारी शुरू हो गई। भारतीय सेना को जवाब में गोलियां दागने की इजाजत नहीं थी ताकि आम नागरिकों को कोई नुकसान न पहुंचे।
और 700 पाकिस्तानियों पर काल बनकर टूट पड़े सोमनाथ
गोलीबारी हो ही रही थी कि अचानक 700 कबीलाइयों का एक दल गुलमर्ग की तरफ से बडगाम के लिए बढ़ा। अब यदि मेजर शर्मा अपनी पोजिशन छोड़ देते तो श्रीनगर का एयरपोर्ट खतरे में आ जाता और फिर कश्मीर पर कब्जा बने रह पाना मुश्किल हो जाता। शर्मा के पास बमुश्किल 100 सैनिक थे लेकिन वे काल बनकर पाकिस्तानी कबायलियों पर टूट पड़े। मेजर शर्मा ने लगभग 6 घंटे उन 700 पाकिस्तानी जवानों को रोके रखा और अपने उच्चाधिकारियों को तुरंत अतिरिक्त सैन्यबल भेजने को कहा। अतिरिक्त सैन्यबल के आने तक सोमनाथ अपनी जगह से एक इंच नहीं हिले। इसी बाच शर्मा को एक मोर्टार आकर लगा और भारत मां का यह सपूत शहीद हो गया। हालांकि उन्होंने शहादत देकर श्रीनगर एयरपोर्ट को दुश्मनों के कब्जे में जाने से बचा लिया था।
परमवीर चक्र से हुए सम्मानित
21 जून 1950 को मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। शर्मा यह सम्मान पाने वाले देश के पहले शख्स थे। सोमनाथ शर्मा ने लड़ाई के वक्त भेजे गए अपने संदेश में कहा था, 'दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है। हम संख्या में उनके मुकाबले काफी कम हैं। भारी गोलाबारी हो रही है। लेकिन जब तक मेरे पास एक भी सैनिक और एक भी गोली बचती है, मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा।'